Thursday, April 19, 2018

पुष्करणा स्टेडियम और नरसिंह भवन के बहाने जनता की भेड़ावस्था की बात


बीकानेर क्षेत्र के दिग्गज-दबंग राजनेता देवीसिंह भाटी ने 2003 का चुनाव अपनी जेबी पार्टी राजस्थान सामाजिक न्याय मंच से जीता। कोई राजनेता दिग्गज हो और साथ में दबंग भी तो वह भाजपा जैसी राष्ट्रीय पार्टी को भी ठेंगा दिखाने का दुस्साहस कर सकता है। अति महत्त्वाकांक्षी भाटी का दावं चुनाव जीतने के बावजूद उलटा पड़ा, विधानसभा में भाजपा को बहुमत मिला और वसुंधरा राजे मुख्यमंत्री हो गईं। समय बीतते 2008 के चुनावों की चुनौती देख वसुंधरा भी अपने को असुरक्षित समझने लगीं, भाटी को मनाने की नौबत आ गई। आज तो वसुंधरा को भाटी की असल हैसियत का भान है, लेकिन तब शायद नहीं था। पार्टी में लौटने की भाटी ने अपनी अन्य शर्तों में जो एक शर्त रखी और पूरी करवाई वह यह कि प्रदेश के रियासती राजे-रजवाड़ों, ठाकर-ठिकानों की जमीनें सीलिंग से बाहर कर दी जाएं। वसुंधरा ने यह शर्त मानी और कानून पारित करवा उक्त किस्म की जमीनें सीलिंग से बाहर भी करवा दी। यह निर्णय विशुद्ध रूप से समूहविशेष के लाभ के लिए लिया घोर अनैतिक निर्णय था, तब राजस्थान पत्रिका ने तत्संबंधी बड़ी खबर लगाई और तथ्यों के साथ बताया कि इस बदलाव से किस तरह देवीसिंह भाटी को बड़ा लाभ हुआ है, सीमान्त क्षेत्र की हजारों बीघा भूमि भाटी के लिए अधिकृत हो गई। इस खबर को भाजपा में ही भाटी के प्रतिद्वंद्वी नरपतसिंह राजवी द्वारा उपलब्ध करवाने की चर्चा को भले ही दरकिनार कर दें, लेकिन याद नहीं पड़ता कि वसुंधरा राजे के उस घोर अनैतिक निर्णय के खिलाफ कोई छोटा-मोटा उद्वेलन भी प्रदेश में कहीं हुआ हो।
उक्त प्रकरण की याद अभी तब आई जब दैनिक भास्कर के स्थानीय संस्करण में बीकानेर नगर निगम की एम्पावर्ड कमेटी की बैठक की खबर पढ़ी। खबर का शीर्षक था 'पुष्करणा स्टेडियम के मुद्दे पर भड़के विधायक बोले : मुझे जलील करने के लिए निकाली फाइल।' मामला था निगम क्षेत्र के उन भवनों का जिनका नगरीय विकास कर (यूडी टैक्स) बकाया है। ऐसे भवनों को कुर्क करने का निर्णय लिया जाना था। पुष्करणा स्टेडियम का प्रकरण रखने और नरसिंह भवन के प्रकरण को कमेटी के सामने न रखने का मकसद भले ही उपायुक्त का अनुचित होबावजूद इसके मंझे-मंझाए राजनेता गोपाल जोशी ने जो कहा वह उन्हें नहीं कहना था। जिस पुष्करणा स्टेडियम की देखरेख गोपाल जोशी लम्बे समय से कर रहे हैं अलबत्ता उसका यूडी टैक्स बकाया होना ही नहीं चाहिए था, जबकि उस स्टेडियम का उपयोग व्यावसायिक हो रहा है। उन्हें लगता है कि वह सरकार के नियम-कायदों का निर्वहन नहीं कर पा रहे हैं तो स्टेडियम जैसी संपत्ति को सरकार के सुपुर्द कर देते। जोशी 1971 में भी और हाल ही की सरकार के हिस्सा रहे हैं। कम से कम उन्हें तो शासकीय गरिमा का खयाल रखना चाहिए था। अच्छा तो यह होता कि जिस नरसिंह भवन का जिक्र उन्हें अपने लक्षित प्रतिद्वंद्वी जनार्दन कल्ला के हवाले से किया, उस प्रकरण को भी कमेटी में रखवाते और पुष्करणा स्टेडियम और नरसिंह भवन दोनों के फैसले करवाते। और यदि उन्हें लगता है कि पुष्करणा स्टेडियम जैसा परिसर यूडी टैक्स से मुक्त होना चाहिए तो राज उनका है, क्यों नहीं तत्संबंधी आदेश निकलवा लाते। जब तक टैक्स वसूलने का कानून है आप इस बिना पर संबंधित विभाग के अधिकारियों-कर्मचारियों को सार्वजनिक रूप से हड़का नहीं सकते कि वे पक्षपाती हैं या भ्रष्ट हैं। और जोशी कौनसा जानते नहीं है कि शहर के आम लोगों के आए दिन काम वाले दफ्तर नगर निगम और नगर विकास न्यास, दोनों ही महा बदनाम हैं। 84 पार के गोपाल जोशी से उम्मीद की जाती है कि ऐसे मौकों पर संजीदगी चाहे वे ना दिखा पायें, चतुराई से काम तो उन्हें लेना ही चाहिए।
रही बात जनता की तो आजादी के 70 वर्षों बाद भी वह भेड़चाल से नहीं निकल पा रही। इसके लिए वह कांग्रेस ही सर्वाधिक जिम्मेवार है जिसने देश पर सबसे ज्यादा शासन किया और अपनी अनुकूलता के लिए जनता को लोकतांत्रिक देश के बतौर नागरिक अशिक्षित बनाए रखा। गोपाल जोशी इस जिम्मेवारी से भी अपने को मुक्त इसलिए नहीं मान सकते कि उनके कुल राजनीतिक जीवन का अधिकांश हिस्सा एक कांग्रेसी के तौर पर ही बीता है। जनता जागरूक होती तो राजस्थान सरकार ने जब राजे-रजवाड़ों और ठाकर-ठिकानों के पक्ष में सीलिंग कानून में बदलाव किया तब कुछ बोलती। कांग्रेस भी इस ठकुरसुहाती से बरी नहीं है, 2008 में जब प्रदेश में अशोक गहलोत के नेतृत्व में पुन: सरकार बनी तब भी सीलिंग कानून के उस घोर अनैतिक बदलावों को उन्होंने न वापस लिया बल्कि चूं तक नहीं की।
कुल जमा बात यही है कि जब तक जनता अपने को भेड़ावस्था से बाहर नहीं ले आती तब तक इस लोकतांत्रिक व्यवस्था का दुरुपयोग यूं ही होता रहेगा। जिन्हें जनता जिता कर शासन सौंपती है वे ही जनता को भूल कर ना केवल अपना हित साधने में लगे रहते हैं बल्कि वे अपने को, अपने परिजनों को और अपने जातीय समाज को लाभ पहुंचाने में ही लगे रहेंगे। जन प्रतिक्रिया के अभाव में लोक कल्याण की भावना इन राजनेताओं में कब की समाप्त हो चुकी है।
दीपचन्द सांखला
19 अप्रेल, 2018

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