Sunday, December 10, 2017

मध्यप्रदेश के पत्रकार जीतेन्द्र सुराना की पोस्ट : यह दौर आपातकाल से ज्यादा इस तरह भयावह है।


मैंने आपातकाल में भी पत्रकारिता की थी। जी हाँ 1975 से लेकर 1978 तक मैं मंदसौर से प्रकाशित दैनिक दशपुर दर्शन का नीमच संवाददाता था और अखबार के संपादक थे सुप्रसिद्ध कवि व साहित्यकार बालकवि बैरागी के अनुज श्री विष्णु बैरागी।
आपातकाल के उस दौर में एक दिन मैं अपनी साइकिल से नीमच के थाने के सामने से गुजर रहा था।मैंने वहाँ देखा कि थाने के खुले मैदान में एक लड़का और लड़की बैडमिंटन खेल रहे हैं और बैडमिंटन की नेट पकड़ कर खड़े हैं पुलिस के दो जवान! उस समय मेरी उम्र जरूर 20 वर्ष के आसपास थी लेकिन वो दृश्य देखकर मेरा न्यूज़ सेंस एकाएक जाग गया! मैं थाने में प्रवेश कर गया और वहाँ मौजूद दीवानजी  से बैडमिंटन खेल रहे बच्चों के ,एवं नीमच थाने के कुल पुलिस बल के बारे में जानकारी ली।
अगले ही दिन दशपुर दर्शन के मुख पृष्ठ पर समाचार प्रकाशित हो गया।उस समाचार में पुलिस स्टाफ की भारी कमी के साथ प्रमुख बात थी "मंदसौर के एसपी उत्पल के बच्चे नीमच के सेंट्रल स्कूल में पढ़ने के लिए एक निजी बस चित्तोड़-अरनोद, से आते हैं।स्कूल की छुट्टी और बस के मंदसौर वापसी के बीच करीब दो घंटे का अंतराल रहता था इस दौरान बच्चे थाना परिसर में ही रहते थे और चूंकि बच्चे एसपी साहब के थे तो पूरा स्टाफ उनकी सेवा और देखभाल में लगना स्वाभाविक ही था सो समाचार में पुलिस स्टाफ की कमी के साथ ही आरक्षकों की अलग अलग जगह लगने वाली ड्यूटी के साथ यह बात भी प्रमुखता से प्रकाशित हुई कि स्टाफ की कमी के बावजूद एसपी उत्पल के बच्चे जब थाना परिसर में बैडमिंटन खेलते हैं तो पुलिस के दो जवान नेट पकड़कर अपनी ड्यूटी बजाते हैं!
एसपी और उनके बच्चों को लेकर इस तरह की खबर छपने के बाद स्वाभाविक है बवाल तो मचना ही था। उस समय नीमच के एसडीओ पुलिस थे स्वराज पुरी(जो कि बाद में मध्यप्रदेश के डीजीपी बने) उन्होंने मुझे इस समाचार पर मेरा बयान लेने के लिए उनके कार्यालय पर बुलाया।संपादकजी से चर्चा की तो उन्होंने आश्वस्त किया कि डरने की कोई बात नही है,बेख़ौफ़ होकर बयान दो!मैं बयान देने पहुंचा और स्वराज पूरी ने मुझसे फुसलाकर यह उगलवा लिया कि पुलिस बल की संख्या की जानकारी किसने दी तो मैंने बचपने में पुलिस के दीवानजी बनेसिंहजी का नाम बता दिया। दूसरे दिन मुझे पता चला कि पुरी साहब ने उन दीवानजी को लाईन हाजिर कर दिया है।
लेकिन आपातकाल के उस आतंक के माहौल में पुरी जैसे दबंग आईपीएस की हिम्मत नही थी कि मुझ जैसे एक कम उम्र के नौजवान पत्रकार पर हाथ डाल दे!
और अब देखिए आज का दौर जबकि नीमच से 350 किमी दूर खरगोन में मेरे फेसबुक मित्र वहां के डीआईजी ए के पांडे को शासन के एक निर्णय पर कसे एक व्यंग और तंज पर इतना बुरा लग जाता है कि खरगोन थाने में मेरे विरुद्ध बलात्कार सहित कई गंभीर धाराओं में मुकदमा दर्ज हो जाता है! यह है आज को दौर जो शायद आपातकाल से भी कई गुना बदतर है!

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