Saturday, September 16, 2017

अकबर को महान इसलिए भी कहा जाता है। (जगदीश्वर चतुर्वेदी की टिप्पणी)

सम्राट अकबर के मायने
अकबर के शासन में भारत की जो इमेज बनी वह हम सबके लिए गौरव की बात है। एक शक्तिशाली राष्ट्र के रूप में भारत को निर्मित करने में अकबर का अतुलनीय योगदान था। भारत को शक्तिशाली राष्ट्र बनाकर अकबर ने भारतीय जनता की जो सेवा की है उसके सामने सभी मुस्लिमविरोधी आलोचनाएं धराशायी हैं। भारत के मुसलमान कैसे हैं और कैसे होंगे अथवा भारत के नागरिक कैसे होंगे, यह तय करने में अकबर की बड़ी भूमिका थी । राहुल सांकृत्यायन ने लिखा है अकबर के जमाने में हिन्दू जितने रुढ़िवादी और कूपमंडूक थे, उसकी तुलना में मुसलमान उदार हुआ करते थे। मसलन्, हिन्दुओं में इक्का-दुक्का लोग ही विदेश जाते थे जबकि मुसलमानों का बड़ा हिस्सा हज करने के बहाने मक्का यानी विदेश जाता था। अकबर के जमाने में भारत में यूरोपीय लोग गुलाम की तरह बिकते थे, यह रिवाज अकबर को नापसंद था। उसने अनेक यूरोपीय गुलामों को मुक्ति दिलाई और उनको पोर्तुगीज पादरियों के हवाले कर दिया, इनमें अनेक रुसी थे। दुखद पहलू यह है अकबर के बाद जो शासक सत्ता में आए उनमें वैसी अक्ल और विवेक नहीं था, फलतः अकबर के जमाने में शुरू हुईं अनेक परंपराएं आगे विकसित नहीं हो पायीं।

अकबर को इस बात का श्रेय जाता है कि उसने पहलीबार जनाना बाजार की अवधारणा साकार की, मीना बाजार का निर्माण करवाया। अकबर यह भी चाहता था कि भारत में बहुपत्नी प्रथा बंद हो और एकपत्नी प्रथा आरंभ हो। लेकिन वह इस मुतल्लिक कानून बनाने में असफल रहा। अकबर की धारणा थी कि भारत की औरतें आजाद ख्याल हों और उन पर कोई बंधन न हो। मीना बाजार के बहाने अकबर ने पहलीबार औरतों को पर्दे, महलों और घरों की बंद चौहद्दी से बाहर निकाला। मीना बाजार में औरतें खूब आती थीं, एक-दूसरे से मिलती थी, औरतें ही दुकानें चलाती थीं। जिस दिन जनाना बाजार लगता था उसे “खुशरोज” (सुदिन) कहा जाता था। मीना बाजार में यदि कोई लड़की पसंद आ जाती थी तो लड़का-लड़की में प्रेम हो जाता था। जैन खाँ कूका की बेटी का सलीम यहीं आशिक हुआ था, तब तक लड़की की शादी नहीं हुई थी, मालूम होने पर अकबर ने खुद शादी कर दी। अकबर के जमाने में बाजार में प्रेम की परंपरा की नींव पड़ी, अकबर ने इसे संरक्षण दिया और आज यह परंपरा युवाओं में खूब फल-फूल रही है। पर्दा प्रथा की विदाई तभी से हुई।

अकबर की एक और विशेषता थी कि वह दासता का विरोधी था। उसने अपने दासों को मुक्त कर दिया था। अबुलफजल के अनुसार अकबर ने सन् 1583 में दासमुक्ति का आदेश दिया। लेकिन समाज में दासों की समस्या बनी रही। अकबर का एक आदर्श रूप उसका दाढ़ी विरोधी नजरिया भी था। अकबर और उसका बेटा दाढ़ी नहीं रखते थे। दाढ़ियों से अनेक रुढ़ियां चिपकी हुई थीं, इसलिए अकबर ने दाढ़ी को निशाना बनाया। अकबर और उसके शाहजादे ने दाढ़ी नहीं रखी। जहाँगीर ने सारी जिन्दगी दाढ़ी नहीं रखी। लेकिन शाहजहाँ और उसके बाद के जमाने में दाढ़ी लौट आयी। अकबर के दाढ़ी न रखने का आम जनता में व्यापक असर पड़ा और हजारों लोगो ने अपनी दाढ़ियां मुडवा दीं।

अकबर का दिमाग पूरी तरह आधुनिक था उसने भारत में व्यापक स्तर पर बारुद का इस्तेमाल किया। बारुदी हथियारों का प्रयोग किया। जबकि बाबर ने ईरान के शाह इस्माइल के सहयोग से बारुद और तोपों के इस्तेमाल की कला सीखी और तोपों का सबसे पहले प्रयोग किया। अकबर पहला ऐसा शासक था जिसको मशीनों से प्रेम था, मशीनों के जरिए आविष्कार करना उसे पसंद था। जेस्वित साधु पेरुश्ची के अनुसार “चाहे युद्ध सम्बन्धी बात हो या शासन सम्बन्धी बात हो या कोई यांत्रिक कला, कोई चीज ऐसी नहीं है, जिसे वह नहीं जानता या कर नहीं सकता था।” राहुल सांकृत्यायन ने लिखा है “अकबर ने महल के अहाते के भीतर भी कई बड़े-बड़े मिस्त्री खाने कायम किये थे, जिनमें वह अक्सर स्वयं अपने हाथ से हथौड़ी-छिन्नी उठाने से परहेज नहीं करता था। उसने हथियारों और यन्त्रों में कई आविष्कार किये थे, जिनका उल्लेख ‘आईन अकबरी’ में अबुलफजल ने किया है। चित्तौड़ के आक्रमण के समय उसने अपनी देख-रेख में आध-आध मन के गोले ढलवाये। बन्दूक चलाने में वह बड़ा ही सिद्धहस्त था, उसका कोई निशाना शायद ही खाली जाता था।”
--जगदीश्वर चतुर्वेदी 

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