Thursday, June 15, 2017

हेरिटेज वॉक और रात्रि पर्यटन : शहर के परकोटे पर संभव हो सकते हैं यों

होटल भंवर निवास और राजस्थान पत्रिका का एक संयुक्त आयोजन हुआ, जिसमें बीकानेर में रात्रिकालीन पर्यटन की संभावनाओं की पड़ताल की गई। पत्रिका में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार कई सुझाव आए। व्यावहारिक सुझावों को क्रियान्वित किया जाना चाहिए लेकिन ऐसा करेगा कौन आम आदमी को इसके लिए अवकाश नहीं है, जिन्हें अवकाश है तो भी संसाधन-सुविधाएं और अनुकूलताएं उनके लिए कौन जुटाएगा? जिस तरह की प्रशासनिक व्यवस्था है उसमें ऐसे कामों के लिए पर्यटन विभाग नाम से एक महकमा मुकर्रर है। लेकिन सरकारी महकमों की जैसी ठस कार्यप्रणाली है उसमें तय और रूढ क्रियान्वयन से भिन्न कुछ करने-कराने की गुंजाइश होती ही कहां है? सरकार का यह पर्यटन महकमा भी दो हिस्सों में बंटा हैएक शुद्ध सरकारी और दूसरा सरकारी उपक्रम के तौर पर निगम। दोनों की गत किसी से छिपी नहींये दोनों महकमें खुद अपने बोझ को ही संभाल नहीं पा रहे हैं तो ऐसे सुझावों को अमलीजामा पहनाने को संसाधन कहां से देंगे। ऐसे में इन आयोजनों में हुई बातों को 'मसाणिया बैराग' से ज्यादा क्या कहेंगे। या यूं कहें आयोजन में कहे-सुने को वहीं झाड़ कर लौटने के अलावा कोई चारा नहीं।
पर्यटक अपने ठिकाने से दूरस्थ कहीं भिन्न जगह सुकून की उम्मीद से जाता है, यानी जो कुछ उसे अपने यहां हासिल है, उससे कुछ भिन्न माहौल, संस्कृति, खान-पान आदि-आदि की अनुभूति की आकांक्षा ही उसे पर्यटन को प्रेरित करती है। पर्यटन को बढ़ावा देने के उद्देश्य से यदि नवाचारों के नाम पर हम वैसा ही कुछ सजाने की जुगत में लगेंगे जो सामान्यत: उसके यहां उपलब्ध है तो पर्यटक हमारे यहां क्यों आयेगा? दूसरी बात, परम्परागत तौर पर कुछ भी अनूठापन हमारे पास था और है, उसे हम सहेज कर नहीं रख पा रहे हैं। आधुनिकता का संक्रमण धरोहरों को सहेज कर रखने ही कहां देता है।
 बीकानेर के स्थापत्य के हवाले से बात करें तो पुरानी विरासती हवेलियां कई तरह के दबावों के चलते अस्तित्व खो रही हैं और जो नई बन रही हैं, वह उन्हीं सम्पन्न देशों और क्षेत्रों की भोंडी नकल के आधार पर बन रही हैं, जहां के पर्यटक सामान्यत: हमारे यहां आते हैं। बीकानेर में देशी पर्यटक सामान्यत: गुजरात और बंगाल से आते हैं और विदेशी कुछ यूरोपियन देशों से। उनके लिए विशेष आकर्षण यहां कोई है भी नहीं। इनमें से अधिकांश लोग वे होते हैं जिन्हें सम के धोरे देखने होते हैं या सोनार किला ये दोनों जैसलमेर में हैैं। चूंकि जैसलमेर का एक रास्ता बीकानेर होकर भी जाता है तो एक पड़ाव बीकानेर भी हो लेता है। हवेलियों की बात करें तो हो सकता है हजार हवेलियों का जुनून सिर उठाने लगे और बात फिर हवेलियों को बचाने पर ही न आ टिके । हवेलियां धरोहर नहीं विरासत हैं, क्योंकि ये हवेलियां किसी ना किसी की निजी संपत्ति हैं, और इनके मालिक अपनी सुविधानुसार इनका कुछ भी करने को स्वतंत्र हैं। कोई उन्हें इसके लिए रोक-टोक नहीं सकता।
धरोहर शहर का परकोटा था या कहें फसील थी, जिसे सहेजकर रखने की इच्छा किसी की भी नहीं लगती? उस सरकारी पुरातत्त्व महकमें की भी नहीं जिसकी ड्यूटी में यह आता है। इसे सहेज कर रखने के सख्त नियम-कायदे तय हैं, बावजूद इसके, यह दिन-प्रतिदिन छीज रही है। यह परकोटा या कहें फसील पर सुरक्षा कर्मियों के लिए बना पथ शहर में रात्रि पर्यटन का एक आदर्श स्थान हो सकता है, लेकिन इसे हम सुरक्षित रख पाएं तब ना।
बीकानेर घूमने के लिए हमेशा सर्दियां ही अनुकूल रहेंगी। जिस तरह की गर्मी यहां पड़ती है, उसे देखते हुए ग्रीष्म-पर्यटन की उम्मीद तो दूर की कौड़ी होगा। बीकानेरवासी चाहें तो पर्यटन विभाग और स्थानीय निकायों यथा नगर विकास न्यास और नगर निगम के सहयोग से चांदनी रात में देशी-विदेशी पर्यटकों हेतु इस परकोटे पर भ्रमण की अनुकूलताएं विकसित कर सकते हैं। इस परकोटे-पथ पर सुरक्षा कर्मियों के लिए बनी बुर्जों में स्थानीय लोक कलाएं प्रदर्शित की जा सकती हैं और कुछ ऐसे पॉइन्ट तय किये जा सकते हैं जहां पर रुककर पर्यटक चांदनी रात में क्षितिज को देख सकते हैं, चांद को निहार सकते हैं और कुछ ऐसे भी पॉइन्ट हो सकते है जहां से शहर की बसावट को दूर तक देखा जा सकता है। बीच में कुछ ऐसे खांचे भी चिह्नित किए जा सकते हैं जहां पर अलाव जलाए रखने की सुविधा हो, पर्यटकों को आवागमन में असुविधा न हो इसके लिए मध्यम रोशनी की फुट लाइटें भी लगाई जा सकती है। रात्रिकालीन पर्यटन का सीजन आसोज के शुक्ल पक्ष (शरद पूर्णिमा) से लेकर फागुन के शुक्ल पक्ष (होली) तक तय किया जा सकता है। सर्दियों में एक अनुकूलता यह भी रहेगी कि घरों की छतें खाली होती हैं, जबकि गर्मियो में यहां के अधिकांश लोग छतों पर सोने के आदी हैं और परकोटे पर भ्रमण से उनकी निजता भंग हुए बिना नहीं रहेगी।
परकोटे के इस चांदनी-भ्रमण का रूट गोगागेट से शुरू कर लक्ष्मीनाथ मन्दिर परिसर होते हुए नत्थूसर गेट तक का रखा सकता है। जहां-जहां से परकोटा टूटा है वहां उसे पुराने वास्तु के हिसाब से जोड़कर दुरुस्त करवाना होगा। और यदि कहीं कब्जें भी हो गए तो उन्हें पुरातात्विक संरक्षण के लिए बने कानूनों के हिसाब से हटाया जा सकता है।
इस रात्रि भ्रमण पथ के लगभग मध्य में आने वाले लक्ष्मीनाथ मन्दिर परिसर में एक छोटा हाटनुमा बाजार कुछ ऐसा विकसित किया जाए जिसका वास्तु स्थानीय प्राचीनता को संजोए हो, जिसमें बिकने वाली वस्तुएं परम्परागत और देशज ही हों। इस हाट बाजार में भी थोड़ी-थोड़ी दूरी पर जल रहे अलावों के बीच खान-पान की स्थानीय पहचान वाले पेय और पकवान की कुछ दुकानें सजाई जा सकती है। जिनमें तई का गर्म दूध, थाली में थर या मलाई, धामों में रबड़ी और गरमा-गरम दाल के बड़े विक्रय के लिए उपलब्ध हों। इन पेय और पकवानों का लुत्फ देशी-विदेशी पर्यटक तो उठाएंगे ही, धीरे-धीरे स्थानीय लोग भी रात्रि में वहां घूमने पहुंचने लगेंगे। शीतलागेट और लक्ष्मीनाथ मंदिर को जोडऩे वाले परकोटे के कोने में बने ठीक-ठाक निर्माण को थोड़ा दुरुस्त करवा उसमें देशी भोजनालय भी विकसित किया जा सकता है। जिस हेरिटेज वॉक की बात पिछले कई वर्षों से शहर में की जाती रही है और अब नई-नई लाई गई रात्रिकालीन पर्यटन की अवधारणा, कुल मिलाकर ये दोनों चांदनी रात में इस परकोटाई भ्रमण से चरितार्थ हो सकते हैं।

दीपचन्द सांखला
15 जून, 2017

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