Tuesday, May 2, 2017

अफसराई की ट्रेनिंग और टीम अन्ना (29 अक्टूबर, 2011)

भ्रष्टाचार और जनलोकपाल की जगह इन दिनों खबरों में टीम अन्ना ज्यादा जगह लेने लगी है। खासकर टीम अन्ना के दो स्वयंभू अहम सदस्य अरविन्द केज़रीवाल और किरण बेदी। दुर्योग से ये दोनों ही प्रशासनिक सेवा से आये हैं। उसी प्रशासनिक सेवा से जिसकी ट्रेनिंग में ही यह सिखाया जाता है कि जनता से, जननेताओं से और जन-प्रतिनिधियों से कैसे निबटा जाना है। देखा जाय तो जिस ट्रेनिंग से यह आये हैं उसके चलते यह दोनों ही अच्छे नेता साबित होने चाहिए थे। क्योंकि जिस काउंटरपार्ट से निबटने की ट्रेनिंग इन्हें दी गई थी उसी काउंटरपार्ट का रोल वे अब अदा कर रहे हैं। यानी जनता, जननेताओं और जनप्रतिनिधियों की समझ उनकी ट्रेनिंग का अहम हिस्सा होना चाहिए था। अगर ट्रेनिंग ऐसी ही थी तो फिर यह मानना चाहिए कि अरविन्द केज़रीवाल और किरण बेदी की ट्रेनिंग अधूरी थी। अगर ट्रेनिंग पूरी होती तो शायद ये दोनों ही टीम अन्ना की प्रकारान्तर से भ्रष्टाचार के मुद्दे की भद्द नहीं पिटवाते और वे अपना यह पार्ट भी बखूबी अदा करते। यदि ऐसा नहीं है तो क्या पाठ्यक्रम में कोई कमी है? और अगर पाठ्यक्रम में कोई कमी है तो सरकार को ट्रेनिंग के इस पाठ्यक्रम पर फिर से विचार करना चाहिए। केजरीवाल और बेदी के व्यवहार से तो लगता यही है कि प्रशासनिक अधिकारियों की ट्रेनिंग में केवल हेकड़ी ही सिखायी जा रही है। अफसर बनने के बाद जिनसे रोज का साबका पड़ना है उनको जानने-समझने की ट्रेनिंग नहीं दी जा रही है।

वर्ष 1 अंक 59, शनिवार, 29 अक्टूबर, 2011

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