चेतें हलवाई!
पिछले कुछ वर्षों से चॉकलेट टॉफी बनाने वाली एक बहुराष्ट्रीय कंपनी के विज्ञापन टीवी और अखबारों में बहुतायत से देखे जाने लगे हैं। इस तरह के विज्ञापनों से यह कंपनी इस बात को स्थापित करने में लगी है कि उनका उत्पादन यह चॉकलेट टॉफी कोई टॉफी नहीं बल्कि मिठाई है। और यह भी कि दिवाली सहित अन्य सभी खुशी के मौकों पर मिठाई के रूप उनके उत्पादों का ही उपयोग करें। समर्थ घरों से आई नई पीढ़ी इससे पूरी तरह प्रभावित भी दीखती है।
इन्हीं टी.वी और अखबारों में ही पिछले कुछ वर्षों से परंपरागत मिठाइयों और उससे संबंधित उत्पादों में नुकसानदेह मिलावट की खबरें भी खूब आने लगी हैं। इन खबरों को गलत नहीं कहा जा सकता। मिठाइयां ही क्यों, खाने की लगभग सभी सामग्रियों में मिलावट आम होने लगी है। इस मिलावट को रोकने की जिम्मेदारी जिस विभाग की है वह कई कारणों और दबावों के चलते लगभग निष्क्रिय है।
चॉकलेट टॉफी बनाने वाली बहुराष्ट्रीय कंपनी के उस विज्ञापन को हलवाइयों को एक चुनौती के रूप में लेना चाहिए अन्यथा होगा यह कि धीरे-धीरे टॉफियां ही मिठाई के रूप में जानी जाने लगेंगी। अंग्रेजी में कहावत है कि एक झूठ को सौ बार बोलो तो वह सच का आभास देने लगती है।
इसलिए सभी हलवाइयों का यह व्यावसायिक कर्तव्य बनता है कि वे खुद ऐसे सामूहिक प्रयास करें जिससे उनके उत्पादों और उत्पादों में काम आने वाले घी, दूध औ़र मावे आदि की शुद्धता की प्रतिष्ठा बनी रह सकें। ऐसे भरोसे और विश्वास को वे कायम करने में असफल होते हैं तो उनके व्यावसायिक भविष्य पर इस तेज संचारयुग में ग्रहण लगते देर नहीं लगेगी।
आडवाणी की रथयात्रा
पिछले दो दिनों से आडवाणी की रथयात्रा का कार्यक्रम येदियूरप्पा की गिरफ्तारी के चलते इस अधरझूल में है कि उसे बैंगलुरू जाय या नहीं। हालांकि अब इसे लेकर असमंजस समाप्त हो गया है। जब से यह यात्रा शुरू हुई तब से ही इस में न केवल तकनीकी बाधाएं आ रही हैं बल्कि आम जन और यहां तक कि भाजपा कार्यकर्ताओं में भी कोई खास उत्साह नहीं देखा जा रहा है। यात्रा को लेकर नरेन्द्र मोदी से शुरू हुए, किन्तु-परन्तु भी अभी तक पीछा नहीं छोड़ रहे हैं। शनिवार को ही आडवाणी के पारिवारिक आत्मीय और इस रथयात्रा के संयोजक अनन्त कुमार और भाजपा प्रवक्ता रविशंकर प्रसाद में सार्वजनिक रूप से किरकिरी देखी गई। वहीं उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनावों के मद्देनजर कलराज मिश्र की वाराणसी से शुरू हुई यात्रा भी उनकी अस्वस्थता के कारण बीच में रोकनी पड़ी। देखने वाली बात है कि बीजेपी के इस प्रतिकूल समय में पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथसिंह की मथुरा से शुरू एक और यात्रा कैसे रंग दिखायेगी।
वर्ष 1 अंक 56, सोमवार, 24 अक्टूबर, 2011
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