Thursday, April 20, 2017

पाती श्री आरके दास गुप्ता के नाम : यह सत्याग्रह नहीं, हठधर्म है गुप्ताजी !

मान्य आरके दासजी
अभिवादन! कोटगेट और सांखला रेल फाटकों के बार-बार बन्द होने से यातायात में आने वाली बाधा बीकानेर शहर की सबसे बड़ी समस्या है। इसी मुद्दे पर आपने 18 अप्रेल, 2017 को महात्मा गांधी रोड के कुछ व्यापारियों के साथ प्रेस कॉन्फ्रेंस की। इसमें आपने कहा कि इस समस्या के समाधान के लिए बनने वाली एलिवेटेड रोड तो मेरी लाश पर बनेगा। इसमें आपने भ्रमित करने वाला बयान यह भी दिया कि यहां के अधिकांश लोग विरोध में हैं जबकि आपको भली-भांति यह मालूम ही है कि 2006-07 में आरयूआईडीपी की बनाई इस योजना पर स्थानीय प्रशासन और राजस्थान पत्रिका ने अलग-अलग रायशुमारी करवाई जिसमें 98 प्रतिशत से ज्यादा लोगों ने उस एलिवेटेड रोड पर सहमति जताई थी।
गत 6 अप्रेल के 'विनायक' में इसी समस्या के समाधानों पर जो सवाल खड़े किए गये थे, उम्मीद यह थी कि प्रेस कॉन्फ्रेंस में आप उन सवालों को सुलझा कर रखेंगे। लेकिन हुआ यह कि बजाय उन सवालों पर तार्किक होने के आप अति भावुक हो लिए। भावुक होने को मानवीय गुण तो माना गया है लेकिन  उस पर एक अन्य मानवीय गुण विवेक की लगाम भी दी गई है। इस मसले पर भावुक होने के भावनात्मक बहाने मेरे पास भी कम नहीं है। मैं इसी सांखला फाटक के एक कोने के घर में जन्मा हूं, बचपन और किशोरवय में इसी सांखला फाटक के इर्द-गिर्द मुहल्ले के संगी-साथियों के साथ लगभग प्रतिदिन लुका-छिपी और पकड़म-पकड़म खेली है। और तो और, जब यह सांखला फाटक परम्परागत तरीके का लकड़ी का बना था और आम दरवाजों की ही तरह ही खुलता बन्द होता था, तब झूलने के लोभ में अक्सर उस पर चढ़ गेटमैन की अनगिनत झिड़कियां और दुत्कारें भी खाईं हैं। मतलब यही कि अपनी इस उम्र के आधे से ज्यादा, यानी तीस वर्ष इस फाटक की बगल में ही गुजारे हैं बावजूद इसके अपने विवेक पर मैंने भावुकता को कभी हावी नहीं होने दिया, बल्कि अपनें लगभग पन्द्रह सौ आलेखों में से तीस से ज्यादा में स्वाध्याय-अध्ययन और तकनीकि विशेषज्ञों के साथ चर्चाओं के नतीजे के तौर पर इस समस्या के समाधानों पर ही विमर्श किया है।
आपकी इस प्रेस कॉन्फ्रेंस की यदि मुझे सूचना भी होती तो बिना निमन्त्रण के ही मैं चला आता। प्रेस कॉफ्रेंस खत्म होने के बाद एक मित्र ने आपकी उक्त भावुक घोषणा की सूचना दी। इस सूचना पर मन में विचार आया कि आरके दास गुप्ता जैसे वरिष्ठ वकील जिनका पेशा ही तर्क करना है, वे तर्क छोड़ इमोशनल ब्लैकमेलिंग पर क्यों उतर आए। ऊपर उल्लेखित 6 अप्रेल का मेरा आलेख प्रेस कॉन्फ्रेंस में बोलने वाले व्यापारियों ने भी ध्यान से पढ़ा होता तो वहां अपनी बात कहने में वे अज्ञानता जाहिर नहीं होने देते। उस आलेख की प्रासंगिकता कल इस प्रेस कॉन्फ्रेंस के बाद भी कायम है और जो विचार करने में विश्वास रखते हैं उन्हें इसे पढऩा चाहिए, उसकी प्रति मैं उपलब्ध करवा सकता हूं, नेटवर्क से अनुकूलता है तो इस समस्या से संबंधित उक्त आलेख सहित अन्य आलेख मेरे ब्लॉग deepsankhla.blogspot.in पर भी पढ़े जा सकते हैं।
गुप्ताजी! आपकी इस बात से कोई असहमति नहीं है कि इस तरह की समस्याओं का आदर्शतम समाधान बायपास बनाना ही है। लेकिन यह भी आपसे ज्यादा अच्छी तरह कौन जानता होगा कि आदर्श हमेशा आभासी ही साबित होते आए हैं व्यावहारिक नहीं (इस समास्या के समाधानों की व्यावहारिकता पर उक्त उल्लेखित आलेख में विस्तार से मैंने चर्चा की है)।
कहने को तो इस शहर के लिए आप आदर्श जनप्रतिनिधि हो सकते हैं लेकिन 1977 के हबीड़े में मिले वोटों से जीतने के अलावा बाद के किसी भी चुनाव में मतदाताओं ने सम्मानजनक वोट भी आपको नहीं दिए और तो और बीकानेर पूर्व से 2008 में लड़े गए चुनाव में भी जनता ने आपको मात्र 1184 वोट ही दिए जबकि जिन सिद्धिकुमारी ने 60591 वोट पाकर चुनाव जीता, क्या उन्हें आप आदर्श जनप्रतिनिधि कहना चाहेंगे? इसी तरह मेरी इस बात से आप भी सहमत हो सकते हैं कि शहरी विकास मात्र विकास का आदर्श मॉडल नहीं हो सकता। लेकिन देश और दुनिया में लगातार वही हो रहा है बल्कि विकास के इस शहरी मॉडल की बदौलत ही कोटगेट और सांखला रेल फाटकों से उपजी ऐसी यातायात समस्याएं सामने आ रही हैं।
गुप्ताजी! सार्वजनिक जीवन में आप जैसे संजीदा व्यक्तियों से उम्मीद यह की जाती है कि कोई बिना वजह भ्रमित हो तो उनके भ्रम दूर कर कोई व्यावहारिक समाधान सुझाएं। 18 अप्रेल की प्रेस कॉन्फ्रेंस की टीवी बाइट्स में एक व्यापारी को कहते सुना कि एलिवेटेड रोड बनने के बाद सांखला और कोटगेट दोनों रेल फाटकों को रेलवे बन्द कर देगा। पहली बात तो यह कि कोटगेट फाटक को बन्द करने का रेलवे के पास कोई कारण ही नहीं है। दूसरा यह कि एलिवेटेड रोड का एमओयू जब रेलवे के साथ होगा तब राज्य सरकार उसमें यह प्रावधान करा दे कि सांखला फाटक बन्द नहीं होना है, तो रेलवे इसे परमानेट बन्द नहीं कर सकेगी। एक अन्य व्यापारी ने सौन्दर्यीकरण नष्ट होने की हवाई बात तो की लेकिन यह नहीं बताया कि एलिवेटेड रोड बन जाने पर क्षेत्र का सौन्दर्यकरण नष्ट किस तरह से हो जाएगा। व्यापारियों में यह भ्रम भी है कि एलिवेटेड रोड बनने के बाद उनके व्यापार में बाधा आएगी। वे यह क्यों नहीं समझना चाहते कि महात्मा गांधी रोड और स्टेशन रोड पर वर्तमान में जो भीड़-भड़ाका और जाम रहता है वह उन लोगों के कारण ज्यादा है जिन्हें इन बाजारों से कोई लेना-देना ही नहीं होता, ऐसे लोग और वाहन केवल गुजरने के लिए इन मार्गों का उपयोग करते हैं। मोटा-मोट हिसाब से ऐसे लोग और वाहन इन मार्गों से गुजरने वाले यातायात का अनुमानित सत्तर प्रतिशत हिस्सा हैं, एलिवेटेड रोड यदि बन जाता है तो ऐसे गैर खरीददारों का यातायात सामान्यत: उसी से होकर गुजरेगा। ऐसे में इन बाजारों के जो असली खरीददार हैं उन्हें ना केवल इतमीनान से खरीददारी करने के लिए 'स्पेस' मिलेगा वरन् ऐसे कई खरीददार जो अभी भीड़-भड़ाके के डर से इन बाजारों में नहीं पहुंचते, वे भी इन बाजारों में खरीदी करने का हौसला जुटा सकेंगे।
गुप्ताजी! जो सर्वे वर्तमान में फोरलेन एलिवेटेड रोड का हो रहा है वह मात्र वैसी ही सरकारी कवायद साबित होगा जैसा अधिकांशत: होता है। क्योंकि फोरलेन की यह योजना किसी तरह से व्यावहारिक नहीं है। एलिवेटेड रोड की जो योजना 2006-07 में बनी, वह तब चन्द व्यापारियों और नासमझ जनप्रतिनिधियों के अविवेकी तथा स्वार्थी विरोध के चलते सिरे तक नहीं चढ़ पाई। अन्यथा यह पूरा शहर उस पर से इतमीनान के साथ आवागमन करता और जिन्हें महात्मा गांधी रोड और स्टेशन रोड से खरीददारी करनी होती वे सुकून के साथ खरीददारी करते। 2006-07 की इस योजना में ना तो किसी की एक इंच जमीन अधिगृहीत होनी थी और ना ही किसी का भवन और दुकान एक इंच भी टूटना है। गुप्ताजी! अब भी उम्मीद है कि आप प्रयास यह करें कि उसी एलिवेटेड योजना को अमलीजामा पहनाया जाय। रेलवे के लिए अनेक समस्याओं को न्योतने वाली और राज्य सरकार के हजारों करोड़ खर्च कराने वाली बायपास योजना कभी सिरे नहीं चढऩे वाली है। इसे धैर्य से समझने की जरूरत है। 6 माह बाद राज्य सरकार 'चुनावी मोड' में आ जानी है और बीकानेर के लिए यह जरूरी समाधान फिर दो-तीन वर्षों के लिए लटक जायेगा। एलिवेटेड रोड नहीं बनती है तो शहर के बाशिन्दे भुगतेंगे और भुगत ही रहे हैं। सन्तोषी बाशिन्दों को भुगतना ही होता है, अन्यथा अधिकांश शहरों के बीच से रेलवे लाइनें गुजरती हैं। सभी जगह जरूरत अनुसार अण्डरपास, ओवरब्रिज या एलिवेटेड रोड में समाधान समझ लिए जाते हैं। ऐसी समस्याओं के समाधान अन्य शहरों में इसी तरह से हो रहे हैं। देश के किसी एक भी शहर में ऐसी समस्याओं के लिए बायपास बना है तो कृपया बताएं।
गुप्ताजी! यह शहर आपका सम्मान करता है और आपसे प्यार भी पाता रहा है। पर यह गूंगा शहर इसे कभी अभिव्यक्त नहीं कर पाया, शायद इसीलिए आप नाराज हैं और यह नाराजगी आप इस तरह प्रकट कर रहे हैं। आपसे अनुरोध है कि इसे समझें और शहर को फिर एक लम्बे समय के लिए इस समस्या में ना धकेलें। आपकी महती जिम्मेदारी है कि आगे आएं और सरकार को और सरकारी कारकुनों को यह समझाएं कि 2006-07 में आरयूआईडीपी द्वारा बनाई गई एलिवेटेड रोड योजना ही कोटगेट क्षेत्र की यातायात समस्या का सर्वाधिक व्यावहारिक हल है।
मैं तो क्या इस शहर में कोई नहीं चाहेगा कि एलिवेटेड रोड आपके शव पर बने। रही बात मेरी तो आपकी उक्त उल्लेखित प्रेस कॉन्फ्रेंस के तुरंत बाद मेरे एक मित्र ने जब आपकी इस 'भावनात्मक भयादोहन' वाली धमकी की जानकारी दी तब तत्काल मैंने जो ट्वीट किया उसमें आपके शतायु होने की कामना निहित है। मेरा ट्वीट : बीकानेर के कोटगेट क्षेत्र की यातायात समस्या का समाधान कम से कम पचीस वर्ष तो अब नहीं होना है।
आशा है मेरे इस पत्र को आप सकारात्मक लेंगे और अपना स्नेह मेरे प्रति पूर्ववत बनाए रखेंगे।
आपका अनुजवत्
दीपचन्द सांखला

   20 अप्रेल, 2017

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