यह अखबार आपके हाथों में जब होगा तब तक आज के शिक्षक दिवस की सभी रस्में लगभग अदा हो चुकी होंगी।
वहां भी जहां छठे वेतन आयोग की सिफारशें लागू होने के बाद अध्यापकों को अट्ठाईस से अड़तालीस हजार के बीच मासिक वेतन और सेवानिवृत्ति के बाद जीवित रहने तक पेंशन के साथ कई प्रकार के लाभ और सुरक्षाएं हासिल हैं। यह भी कि कितनी ड्यूटी करनी है, स्कूल आना है या नहीं आना है, स्कूल आ गये तो क्लास में जाना है या नहीं जाना है, कई अध्यापक इसे खुद ही तय करते हैं।
और वहां भी जहां पन्द्रह सौ से पांच हजार के बीच मासिक वेतन है। वेतन से दुगुने तिगुने वाउचर पर हस्ताक्षर करना, दस बारह घंटे तक की ड्यूटी करना, बंधुवा मजदूर जैसा बर्ताव। उस पर भी जब मरजी आए तब यह सुनने को तैयार रहना होता है कि तुम्हें कल से नहीं आना है।
राष्ट्रपति भवन से लेकर राज्यों के राजभवन तक और सरकारी स्कूलों से लेकर गली-मोहल्लों और गांवों में चल रहे छोटे-बड़े निजी स्कूलों में खूब सारी आदर्श की बातें हुई होंगी। बड़े भ्रम के साथ आदर्श की बातें कहने और सुनने का शिक्षक दिवस भी एक बड़ा अवसर है। भ्रम इसलिए कि यह बातें करने वाले सभी असलियत से वाकिफ होते हैं।
अपवाद स्वरूप बहुत से अध्यापक और संस्थाएं उपरोक्त सब से ठीक विपरीत अपनी ड्यूटी का निर्वहन पूरी निष्ठा के साथ करते होंगे। वे सलाम और सम्मान के असली हकदार हैं। नहीं जानते कि उन्हें यह हक हासिल है या नहीं और हासिल होगा तो कब।
सरकार को और अन्ना के भ्रष्टाचार के खिलाफ जन जागरण के बाद समाज को भी शिक्षकों के इन दो वर्गों के बीच की इस गहरी खाई व विषम स्थितियों पर गहराई से विचार करने का अवसर आज के शिक्षक दिवस को बनाना चाहिए था। उम्मीद करते हैं कि अगले वर्ष के 5 सितम्बर तक हम इस ओर पांच कदम बढ़ सकें।
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भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी नवीन जैन के गायब होने का समाचार जब टीवी पर सुना गया तभी ‘विनायक’ डेस्क पर यह बात हो गई थी कि जिस तरह ये गये हैं दो-तीन दिन में वैसे ही लौट भी आयेंगे। दो-तीन दिन में ना सही पांच दिन में आ गये और सकुशल।
जाने से पहले अपनी पत्नी को दिये सन्देश में नवीन जैन ने जाने का कारण लगभग साफ कर दिया था, जो कि आई.ए.एस. की ट्रेनिंग से गुजरने वालों के लिए इतना बड़ा कारण नहीं हो सकता गायब होने का।
सरकार को और भारतीय प्रशासनिक सेवा के नियामकों को इस पर गम्भीरता से विचार करना चाहिए कि क्या नवीन जैन की मनःस्थिति आई.ए.एस. जैसी गम्भीर और जिम्मेदाराना सेवा के लिए उपयुक्त है। आज की परिस्थितियों में केवल ईमानदार होना मात्र पर्याप्त नहीं होता। उसके लिए ईमानदार होेने के साथ जुझारूपन होना भी पहली शर्त हो सकती है।
वर्ष 1 अंक 14, सोमवार, 5 सितम्बर, 2011
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