Friday, April 21, 2017

मंडी चुनाव और निश्चेतन क्रिया ( 27 सितम्बर, 2011)

कोई भी व्यवस्था या तकनीक अच्छी या बुरी नहीं होती है। व्यवस्था और तकनीक के परिणामों को उसे चलाने वाले ही तय करते हैं।
लोकतंत्र को ही लें। देश आजाद हुआ तो उस समय और देश के नियन्ताओं ने संसदीय लोकतंत्र को चुना। एक आदर्श लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए स्थानीय निकाय और पंचायतों के माध्यम से सरकार को गांव और गली-मोहल्ले तक ले जाने के पुख्ता प्रबंध किये गये। सत्ता के इस विकेन्द्रीकरण को कागजों में देखें तो एक लगभग विकेन्द्रीकृत आदर्श लोकतांत्रिक व्यवस्था है।
पंचायती राज के पिछले चुनावों में सरपंची पचास-पचास लाख में बिकने के समाचार सुने गये। इस तरह के मौकों पर जनधन को हड़पने के लिए पक्ष-विपक्ष गलबहियां करते देखे जाते हैं।
ज्यादा दूर क्यों जाये्ंरबीकानेर के नगर निगम बोर्ड में दोनों पक्षों की नूरा-कुश्ती आये दिन देख सकते हैं। अधिकतर पार्षद निगम के ठेके सम्हालते हैं। जिसे नजर की शर्म कहते हैं वह भी अब नहीं रही है। कभी-कभार होने वाले मत विभाजन में अपने नाजायज हितों को ढकने के लिए पार्टी की इज्जत उघाड़ने में अब तो राई-रत्ती संकोच भी नहीं होता। नैतिकता की बात करने का कोई मतलब ही नहीं।
सोमवार को हुए मंडी अध्यक्षों के चुनाव को ही लें। जिले की सभी मंडियों के चुनाव निर्विरोध हुए हैं। लोकतंत्र में ऐसे निर्विरोध चुनाव आदर्शतम स्थिति कहे जा सकते हैं। लेकिन जैसा दीखता है वैसा सचमुच में है क्या? सभी विजेता राज्य में सत्ताधारी पार्टी के समर्थक हैं, एक पार्टी के समर्थक होते हुए भी एक गुट से चार और दो अलग-अलग गुटों से एक-एक अध्यक्ष चुना गया। तीनों गुटों के सरदार एक ही जातीय समूह से आते हैं पर आधिपत्य अपने अलग-अलग हैं। अखबारों में आये विज्ञापनों से लगता है कि इनमें से एक सरदार फिलहाल बाकी के दो सरदारों से चार गुना भारी हैं।
लेकिन विचारणीय यह है कि पिछले विधानसभा चुनावों में जिस पार्टी को जिले की सात सीटों में से चार सीटें हासिल हुईं और इसी पार्टी के राज्य क्षत्रप अगले चुनाव में सरकार बनाने का दावा भी कर रहे हैं। इसी विपक्षी पार्टी को इन मंडी चुनावों में सांप सूंघ गया या सूंघणी सुंघा* दी गई?
तकनीक पर फिर कभी बात करेंगे।

*शल्य चिकित्सा से पहले निश्चेतन क्रिया को स्थानीय बोली में सूंघणी सुंघाना कहते हैं।

वर्ष 1 अंक 33, मंगलवार, 27 सितम्बर, 2011

No comments: