Friday, April 28, 2017

सोने का सच / प्रधानमंत्री की मंशा (22 अक्टूबर, 2011)

सोने का सच
कल एक खबर थी कि लीबिया के तानाशाह कर्नल गद्दाफी के पास 143.8 टन सोना था। भारतीय मुद्रा के हिसाब से इसकी कीमत लगभग तीस हजार करोड़ बैठती है। गद्दाफी के पास इतना सोना होने की इस सूचना का स्रोत अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष को माना गया है। कहते हैं गद्दाफी अपनी अनेक सनकों के साथ और भी बहुत से शौक फरमाते थे।
आज एक खबर और है कि तामिलनाडु की मुख्यमंत्री जे. जयललिता जब आय से अधिक संपत्ति के एक मामले में बेगलूर की एक विशेष अदालत का सामना कर रही थी तब जज ने 1996 में जयललिता के घर से बरामद 28 किलो सोने के जेवरातों के बारे में भी पूछा। हालांकि उस छापे के दौरान सिल्क की सैकड़ों साड़ियां और हजारों सैंडिल होने के समाचार भी आए थे। देखा जाय तो गद्दाफी के यहां तीस हजार करोड़ का सोना होने की खबर के सामने जयललिता के यहां 1996 में बरामद 28 किलो सोने के आभूषण मामूली हैं। आज के भाव से यदि उनकी कूत भी करें तो वो लगभग साढे सात करोड़ रुपये ही बैठती है।
सोने को लेकर दक्षिण का पद्मनाभ मन्दिर भी इन दिनों सुर्खियों में है। कहते हैं कि ट्रावनकोर के शासकों ने अपने आभूषणों के अकूत भंडार को भगवान पद्मनाभ की सुरक्षा में दे दिया था और खुद उसके न्यासी बन गये। इस तरह यह रही तो उनकी विरासत ही।
इसके अलावा भी जब तब किसी के भी यहां छापे पड़ने के समाचार आते हैं तो उसमें सोने की बरामदगी जरूर होती है।
इन उदाहरणों से सोने के प्रति मोह और सोने में निहित संपन्नता की सुरक्षा और सुरक्षित भविष्य की धारणा पुख्ता ही होती है।
सोेने के प्रति मोह और उससे सुरक्षा की गारंटी की मानसिकता के प्रमाणों का उल्लेख हजारों सालों से मिलता है। तीस हजार करोड़ का सोना कर्नल गद्दाफी के तो काम नहीं सका है। देखना यह है कि यह मानसिकता किसके कितना काम आती है।
प्रधानमंत्री की मंशा
प्रधानमंत्रीजी के इन दिनों के भाषणों से तो लगता है कि वो देश से भ्रष्टाचार मिटा कर ही दम लेंगे। जैसे कल ही उन्होंने घोषणा की है कि ऐसा कानून लायेंगे कि निजी क्षेत्र में रिश्वत लेना भी जुर्म की श्रेणी में जायेगा। मनमोहन सिंह की व्यक्तिगत इच्छा पर तो संशय खड़ा करने की कोई वजह नहीं दीखती है। लेकिन देखा यह भी जाना चाहिए कि जो कानून सार्वजनिक और सरकारी क्षेत्र में रिश्वत लेने और देने के लिए बने हैं वे कितने कारगर हैं।
राजनीति में भी रिश्वत लेने-देने को जुर्म की श्रेणी में लाने का कानून भी क्या मनमोहनसिंहजी ला पायेंगे?

वर्ष 1 अंक 55, शनिवार, 22 अक्टूबर, 2011

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