Friday, April 14, 2017

ध्यानाकर्षण की अहिंसक करतूत (17 सितम्बर, 2011)

कल शुक्रवार को बीकानेर के डूंगर कालेज में वामपंथी विचार के विद्यार्थी संघ के एक मुखिया ने अपनी मोटर साइकिल को विरोधस्वरूप आग के हवाले इसलिए कर दिया क्योंकि सरकारी तेल कम्पनियों ने पेट्रोल के दाम तीन रुपये प्रति लिटर से ज्यादा बढ़ा दिये।
अखबारों में इससे मिलती-जुलती ही रिपोर्टिंग दिल्ली से हुई है जिसमें कल ही भाजपा कार्यकर्ताओं ने ऐसे ही विरोध स्वरूप एक छोटे स्कूटर को जला डाला।
हालांकि अभी हाल ही में अहिंसक तरीके से अन्ना ने वो कुछ कर दिखाया जिसे उक्त दोनों ही दो ध्रुवी विचारधारा वाली पार्टियां अपने सभी सहयोगियों के साथ मिल कर भी संभवतः संभव नहीं कर सकती थी।
आजादी के आन्दोलन में गांधी के अहिंसक करिश्मे को यह दोनों ही पार्टियां अब चाहे ना मानें। अन्ना ने किस तरह से अपनी मांगों और आन्दोलन को लेकर भारत सरकार और कांग्रेस पार्टी द्वारा दिये अधिकृत बयानों में से लगभग सभी को अनकहा करने को मजबूर किया, सभी ने इसे जीवंत देखा भी है। तो क्या यह दोनों ही विचारधाराओं के कार्यकर्ता पहले तो खुद को और फिर अपने से जुड़े लोगों को किसी ऐसे ही अहिंसक  तरीके के विरोध से सहमत नहीं करवा सकते थे। जैसे्रवे सभी विरोधस्वरूप कुछ दिन तक पेट्रोल से चलने वाले किसी वाहन या उपकरण का प्रयोग नहीं करेंगे्रया ऐसा ही कुछ और भी वे कर सकते हैं। मोटर साइकिल और स्कूटर को जला कर भी तो आपने ध्यानाकर्षण ही किया है। और ऐसा करने वालों केवल अपना आर्थिक नुकसान किया बल्कि पर्यावरण को भी प्रदूषित किया। अगर विरोधस्वरूप पेट्रोल के वाहन या उपकरणों का प्रयोग कुछ दिन करने का संकल्प लेते तो आर्थिक रूप से भी फायदा होता और पर्यावरण को भी दूषित होने से कुछ कुछ तो बचा रहे होते। ऐसा कुछ होता तो भी तय मानिये अखबार और टीवी वाले उतना ही स्थान देते जितना मोटरसाइकिल-स्कूटर जलाने दिया। हो सकता है मीडिया की अन्ना आन्दोलन की खुमारी में शायद ज्यादा सुर्खियां पाते।

नरेन्द्र मोदी और वाघेला के अनशन के 72 और 75 घंटे
शरीर के उपवास के साथ मन का उपवास हो तो वह दंभ में परिणत हो जाता है और हानिकारक सिद्ध हो सकता है।   --महात्मा गांधी

वर्ष 1 अंक 25, शनिवार, 17 सितम्बर, 2011

No comments: