Thursday, April 27, 2017

बारिश, दीपावली और रीत का रायता (15 अक्टूबर, 2011)

राजस्थानी में कहावत हैरीत के रायता कहें तो यह कहावत सार्वजनिक कामों के वास्ते सटीक है। साल की छह ॠतुएं, ॠतुओं का धर्म और धर्म से बंधे उनके कर्म। गर्मियों के बाद बारिश, बारिश के बाद शरत् और शरत् में दीपवाली। दीपावली हमारे क्षेत्र का एक बड़ा त्योहार। इस बहाने घर-बाहर की मरम्मत, रंगाई-पुताई, सफाई। इन सबसे स्वच्छता और बाद इनके सजावट।
इन्हीं सब की रस्म अदायगी प्रशासन, स्थानीय निकाय और अन्य सार्वजनिक विभाग भी करते हैं। यह त्योहार बारिश के बाद आता है। बारिश में शहर की सड़कें बदहाल इसलिए हो जाती है कि इन सड़कों की जब भी योजना बनी या बनती है तब यह बिलकुल भी ध्यान नहीं रखा जाता कि यहां बारिश भी होती है। जब बारिश होगी तो सड़कों पर जहां-तहां कम और ज्यादा पानी इकट्ठा होगा ही। मूषक-बिडाल वैर की तरह पानी-डामर वैर भी है। इस वैर के चलते सड़कें बडी माता (चेचक) और कोढ़ जैसे रोगों से ग्रसित हो जाती हैं। दशहरे के रावण दहन के पटाखों से प्रशासन और स्थानीय निकायों की नींद खुलती है और उन्हें दीपावली की ड्यूटी का अहसास होता है।
रीत के रायतेनिभाने को आनन-फानन में टेंडर होते हैं, सड़कों के भी और रोड लाइटों के भी। धड़ा-धड़ काम होता है। इन दिनों सड़कों से गुजरोगे तो यह नजारा आम होगा कि बिना मानक और मापक का ध्यान रखे काम हो रहा है। बिना पूरी कुचराई और साफ-सफाई के पेचवर्क हो रहा है। चार वर्ग-फुट की कारी की जरूरत को दस से बीस वर्ग-फुट की कारी बनाना आम बात है।
यही हाल रोड लाइटों का है। हड़बड़ी के बहाने कईयों के घर रोशन होते हैं। जो लाइटें फ्यूज नहीं भी है इस मौके बदल दी जाती हैं। इसके बाद भी कई नहीं जलती तो फाल्ट वायरिंग में मिलता है। मुहल्ले वालों का रोशनी का योग हो तो वायरिंग बदली  जायेगी हो तो मुहल्ले वाले दीपावली अंधेरे में ही मनाने के कुयोग को कोस सकते हैं।

वर्ष 1 अंक 49, शनिवार, 15 अक्टूबर, 2011

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