Thursday, April 27, 2017

प्रशांत भूषण पर हमला/गोपालगढ़ में राहुल (13 अक्टूबर, 2011)

प्रशांत भूषण पर हमला
प्रशांतभूषण देश के जाने माने वकील और जनहित के मामलों के सक्रिय जानकार हैं। कल उनके साथ जिस तरह का बरताव हुआ, घोर निन्दनीय है। एक स्वतंत्रचेता समाज में कोई भी किसी दूसरे के विचार और मत से शत प्रतिशत सहमत हो, संभव नहीं है। लेकिन एक से निनानबे प्रतिशत असहमति के बावजूद भी क्या हमले और मारपीट को जायज ठहराया जा सकता है?
आजादी के बाद की कश्मीर तथा लगभग अन्य सभी राष्ट्रीय समस्याओं के मूल में छोटे-मोटे स्वार्थ, अधकचरी सोच और समझ एवं समस्याओं के शुरुआती दौर में उनसे निबटने के चलताऊ और अगंभीर प्रयास ही मुख्य कारणों में माने गये हैं। किसी भी समस्या पर विचार किये जाने वाले समय के सिनेरियो के आधार पर समाधान और परिणाम तय करेंगे तो सफलता संदिग्ध है। उसके लिए उस समस्या के मूल कारणों पर तटस्थ भाव से विचार करना जरूरी है। कश्मीर मुद्दे पर विचार करते समय इस तरह के तटस्थ भाव की ज्यादा जरूरत है। क्योंकि देश की आबादी के एक हिस्से द्वारा इस मुद्दे को अब तक केवल भावनाओं से ही जोड़ कर देखा गया और शायद इसीलिए यह मुद्दा लगातार पेचीदा भी होता गया। इस मुद्दे के कई कोण ह्ंैरदेश का बंटवारा, पाकिस्तान में लगातार फौजी या फौज से प्रभावित शासन, प्रभावशाली पड़ोसी चीन की कुचरनी की आदत, बांग्लादेश निर्माण में भारत की भूमिका, नेहरू और शेख अब्दुला जैसे दो मित्रों में अहम् का टकराव, केन्द्र में ज्यादातर शासन में रही कांग्रेस पार्टी का कश्मीर मुद्दे पर पार्टी हितों को तरजीह, जम्मू-कश्मीर का मुस्लिम बहुल होना, पाकिस्तान सहित पश्चिम एशिया के देशों में लगातार अशान्ति और भारत में कश्मीर मुद्दे को केवल भावात्मक मुद्दे के रूप में स्थापित करने के प्रयास, आदि-आदि। देश के जागरूक नागरिकों  खासकर युवकों को इन सब कारणों से बहुत ही जिम्मेदारी के साथ अवगत करवाना जरूरी है। अन्यथा प्रशान्त भूषण या किसी अन्य की अभिव्यक्ति पर हमले होते रहेंगे।
गोपालगढ़ में राहुल

राहुल गांधी की गुप्तगोपालगढ़ यात्रा पर अंगुलियां उठने लगी हैं। विपक्ष ने आरोप लगाया है कि राहुल जिस मोटर साइकिल पर घूमे वह एक अपराधी किस्म का व्यक्ति चला रहा था और यह भी कि उन्होंने केवल एक समुदाय का ही पक्ष सुना-जाना। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष ने सफाई में जो कहा है उसका भाव यह है कि लिफ्ट लेते वक्त पिछली सीट का खाली होना ही पर्याप्त है। शायद राहुल के सारथि के मामले में ऐसा नहीं था। जैसी सूचनाएं आई हैं उससे लगता है कि सबकुछ एक दिन पहले से ही तय था। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष की बात को सही मान भी लें तो भी गांधीजी के हिसाब से सार्वजनिक जीवन के व्यक्ति को सभी तरह की सावधानियां और शुचिता का पालन जरूरी है।

                                            वर्ष 1 अंक 47, गुरूवार, 13 अक्टूबर, 2011

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