Sunday, April 9, 2017

तो तुम्हारा क्या लिया (1 सितम्बर, 2011)

पैंतीस से चालीस वर्ष पहले शहर में एक स्थानीय अखबार (साप्ताहिक या पाक्षिक) तांगे पर लाउडस्पीकर लगा कर बेचा जाता था। तब शहर ने आज की तरह विस्तार नहीं खाया था। अखबार बेचने वाले माइक पर संक्षिप्त में सूचना देते और हर सूचना के बाद बोलतेतो तुम्हारा क्या लिया वे इस संवाद को इस तरह बोलते कि जिससे लगे कि सूचना देने वाला एक व्यक्ति है औरतो तुम्हारा क्या लियाबोलने वाला दूसरा। यानी जो सूचना देता था (जाहिर है सूचना कोई गैर-कानूनी या आपत्तिजनक ही होती थी) उसे सुनने वाला तत्काल टोकता था कि तो तुम्हारा क्या लिया।
इन पैंतीस-चालीस वर्षों में हुआ ये कि यह बोलने और सुनने वाले एकमेक हो गये हैं। अधिकतर लोगों को लगता तो है कि यह गलत हो रहा है लेकिन तत्काल ही वो खुद से कहता है कितो तुम्हारा क्या लिया जैसे--
--    शहर में अधिकतर निर्माण कार्य बिना इजाजत तामील के होते हैं।
--    इनमें से कई निर्माण 6 से 12 इंच या कई बार ज्यादा भी सड़क या आम रास्ते की ओर बढ़ जाते हैं; कॉर्नर का मकान हो तो वह दोनों ओर बढ़ने की कोशिश करता है।
--    कुछ दुस्साहसी तो ऐसे भी हैं कि वो घर के बाहर छोटा-मोटा गेरेज, शौचालय या स्नानघर ही बना लेते हैं।
--    सुप्रीम कोर्ट के दिशा निर्देशों के बावजूद भी जहां तहां धार्मिक स्थान बना लेते हैं-- और बिना यह सोचे कि शहर की आबादी लगातार बढ़ रही है और यह कितनी बड़ी बाधा बन सकते हैं।
--    सरकारी भूमि पर तो कब्जे इतने हुए हैं कि बहुतों ने तो कब्जा कर बेचने को व्यवसाय-उद्योग के रूप में अपना लिया है।
--    खाद्य पदार्थ जैसे सभी प्रकार के मसालें, आटा या दूध में मिलावट आम है। नकली देशी घी की तो बीकानेर पूरे उत्तर-पश्चिमी राजस्थान की बड़ी मंडी है।
--    सरकारी निर्माण कार्यों में जरूरत की सीमेन्ट ना मिलाना, नाप-तौल सही नहीं होना, सड़कों के निर्माण में पूरी प्रक्रिया अपनाना और ना पूरा डामर मिलाना और इससे भी ऊपर पूरी मोटाई में सड़क को ना बिछाना।
     यह तो बहुत थोड़ी सूचनाएं हैं विनायक के पाठकों के पास इससे कई गुना अधिक होगी आपका दूसरा पार्ट यह कहे कितो तुम्हारा क्या लिया तब उसे टोकें कि नहीं, जब वो हम सब का ले रहा है तो मैं अलग कैसे?
वर्ष 1 अंक 11, गुरुवार, 1 सितम्बर, 2011


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