Tuesday, April 25, 2017

अशोकजी से और मुख्यमंत्रीजी से भी! ( 03 अक्टूबर, 2011)

लोक में प्रचलित है कि आजादी से पहले बीकानेर का एक बाशिन्दा कोलकाता पहली बार पहुंचा। हावड़ा स्टेशन से निकला तो हावड़ा ब्रिज देखते ही बोल उठावाहरे गंगासिंह तब के बीकानेर के शासक गंगासिंह ने अपने शासन की गोल्डन जुबिली मनाने के बहाने शहर में विकास के कई काम करवाये थे। कहा जाता है कि वह बीकानेरी कुछ-कुछ उसी खुमारी में था।
1967 के विधानसभा चुनाव में तब के जनप्रिय नेता और समाजवादी मुरलीधर व्यास को चुनाव में हरा कर कांग्रेस के गोकुलप्रसाद पुरोहित जीत गये थे। मुरलीधर के समर्थक लंबे समय तक इसे झेल नहीं पाये। शहर की टूटी सड़क पर चाहे तांगा धचके या साइकिल वे बोल उठते किऔर द्यो गोकुळजी ने बोट
उक्त दोबानगियां यह बताने के लिए कि बीकानेरी किस तरह रिएक्ट करते हैं। वैसे सभी जगह के ग्रामीण, कस्बाई और शहरी अपने-अपने तरीके से रिएक्ट करते ही हैं।
मुख्यमंत्रीजी! पिछले कई वर्षों से शहर के कई नेता यह बात स्थापित करने की असफल कोशिश करते रहे हैं कि बीकानेर के विकास में सबसे बड़ी बाधा अशोक गहलोत ह्ंैरकोई भी प्रोजेक्ट, राज्य स्तरीय संस्थान या रेलगाड़ियां जो बीकानेर को मिलनी थी, गहलोत जोधपुर ले गये। ऐसा कहते पाये जाने वालों में कांग्रेसी ज्यादा और विपक्षी कम होते हैं। शायद इसलिए कि वे और उनके आका अपने को एक सक्षम जनप्रतिनिधि के रूप में स्थापित करने में असफल जो रहे हैं। वे ये सीखने की बजाय कि अशोक गहलोत अपने क्षेत्र से किस तरह प्यार करते ह्ंैरशहर के विकास के लिए वे अपने जोधपुर प्रवास के दौरान संबद्ध जिला और शहरी विभागों के अधिकारियों के साथ देर रात तक बैठकें लेते ह्ंैररेलवे बोर्ड के अधिकारियों से डिनर-डिप्लोमैसी में नई-नई गाड़ियां ले आते हैं और रेलवे से संबंधित विकास के कई कार्यक्रम अपने क्षेत्र के लिए निकलवा लेते हैं।
हमारे शहर के जनप्रतिनिधियों का अहम् और हेकड़ी इस सबके बीच बाधा है शायद। अशोक गहलोत के नजदीकी यह बताते हैं कि अहम् तो उनका भी कम नहीं है लेकिन वे बखूबी जानते हैं कि उसे कहां अप्लाई करना है। बस इतना ही फर्क है बीकानेर और जोधपुर के जनप्रतिनिधियों के बीच।
तभी तो स्वतंत्रता दिवस 2008 के बहाने बीकानेर में हुए सड़कों के काम और सूरसागर की सफाई के बहाने शहर की दोनों सीटें विपक्षी पार्टी जीत ले गई। (वैसे सड़कों के विकास कार्य शहर में अभी भी कम नहीं हो रहे हैं। देखते हैं कांग्रेसी इसे कितना कैश करा पायेंगे। अगर चुनाव जीतने का यही पैमाना है तो) जबकि और जैसा कि कांग्रेस कहती है कि सूरसागर प्रोजेक्ट का पूरा बजट पिछली कांग्रेस सरकार का दिया हुआ है। अगर सचमुच में ऐसा है तो शहर के कांग्रेसी विधानसभा चुनाव में इसे भुना पाये और ही अभी तक इसे स्थापित कर पाये हैं।
अशोक गहलोत पर पक्षपात का आरोप लगाने वाले उनके बीकानेरी सहयोगी शुरू में दिये लोक प्रचलित दो उदाहरणों की तरह उनके सौतेले व्यवहार को लोक में अभी तक स्थापित तो नहीं कर पाये हैं पर आरोप लगाने वाले यह भूल जाते हैं कि अशोक गहलोत मुख्यमंत्री होने से पहले एक क्षेत्र के जनप्रतिनिधि भी हैं और हमारे शहर के नेताओं को उनसे एक कुशल जनप्रतिनिधि होने के गुर तो सीख ही लेने चाहिए।
बाद इसके अशोक गहलोत पूरे राजस्थान के मुख्यमंत्री हैं तो उन्हें भी यह ध्यान रखना होगा कि राजस्थान में कहीं भी उन पर ऐसे आक्षेप लगें।

वर्ष 1 अंक 38, सोमवार, 03 अक्टूबर, 2011

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