कोटगेट क्षेत्र में यातायात समस्या बीकानेर के शहरवासियों के लिए सबसे
बड़ा संकट है, इसका भान हुए तीस
से ज्यादा वर्ष हो रहे हैं। इस दौरान सूबे की सरकार में कई-कई बार और अब तो
केन्द्र की सरकार में भी यहां की नुमाइंदगी के बावजूद स्थानीय बाशिन्दे इस आफत को
भुगतने को मजबूर हैं।
जैसे-तैसे ही सही, वर्ष 2016-17 के बजट में इस समस्या के सर्वाधिक व्यावहारिक
समाधान एलिवेटेड रोड का प्रावधान कर दिया और मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की चतुराई
कहें या सम्पर्क, बजट के तुरन्त
बाद केन्द्र की सरकार ने इस 135 करोड़ रुपये इस
के समाधान हेतु देने मंजूर भी कर दिए। सरकार के काम हैं, वह भी वैसी लोकतांत्रिक सरकार के जिसके कामकाजी तरीके उस
राजस्थानी कहावत को चरितार्थ करते जब-तब देखे जा सकते हैं, जिसमें कहा गया है कि 'किणरी भैंस कुण नीरे' यानी परायी भैंस को चारा कौन डालेगा? अर्थात सरकारी कामकाज में कोशिश यही रहती है कि धन सरकारी
है तो उसका कचूमर किस तरह निकाला जाय।
कोटगेट और सांखला रेल फाटकों की बाधा के चलते इससे प्रभावित क्षेत्रों की
यातायात समस्या के व्यावहारिक समाधान पर लगभग दस वर्ष पूर्व अच्छी कवायद हो चुकी
है। तब आरयूआईडीपी में कार्यरत और भारत सरकार के परिवहन मंत्रालय के सेवानिवृत्त व
काफी सुलझे इंजीनियर सरदार अजीतसिंह ने बीकानेर के अभियन्ताओं की टीम के साथ इस
समस्या का सर्वाधिक व्यावहारिक समाधान दिया। इसमें बीकानेर के ही अशोक खन्ना,
हेमन्त नारंग के साथ-साथ रेलवे के एन के शर्मा
जैसे अभियन्ताओं का भी सहयोग लिया गया था। तब एलिवेटेड रोड की योजना बनाते समय यह
ध्यान तो रखा ही गया था कि किसी की भी निजी संपत्ति का अधिग्रहण ना करना पड़े और
ध्यान यह भी रखा गया था कि इसके निर्माण के बाद प्रभावित केन्द्र के इर्द-गिर्द
भविष्य में बढऩे वाले यातायात हेतु आवागमन की जरूरतें भी पूरी हों—परिवहन यान्त्रिकी में यह माना जाता है कि घनी
बसावट वाले शहरी आबादी क्षेत्र में एक समय-सीमा के बाद यातायात में गुणात्मक
बढ़ोतरी नहीं होती। कोटगेट क्षेत्र का यातायात तब की योजना बनने तक उस समय-सीमा को
लांघ चुका था। अत: यही माना गया कि एलिवेटेड रोड की चौड़ाई डबल लेन की ही पर्याप्त
है। विदित ही है कि एलिवेटेड रोड पर पार्किंग जैसी कोई बाधा कभी आती नहीं इसलिए उस
पर से गुजरने वाला यातायात निर्बाध चलता रहता है। दूसरी बात यह कि नीचे की सड़कें
भी जब सुचारु हैं तो फाटकों के खुले रहने पर यातायात नीचे से भी गुजरते ही रहना
है। ऐसे में एलिवेटेड रोड के मात्र डबल लेन होने और नीचे के मार्ग के रेलवे फाटक
खुले रहने पर यातायात हेतु कम से कम चार लेन की सुविधा तो मिलती ही रहेगी।
दस वर्ष पूर्व यह योजना कुल जमा 24 करोड़ की थी। अब जब एकाएक ही इसके लिए 135 करोड़ रुपये मंजूर हो गए तो राजस्थानी की एक दूसरी कहावत
चरितार्थ होती दीखने लगी! सेर की हांडी में सवा सेर ऊर देने की। जब इस समाधान के
लिए सर्वे जैसी पर्याप्त प्रक्रियाओं के बाद पारंगत अभियंताओं की टीम ने योजना बना
ही छोड़ी है और इसके पक्ष में शहर के नब्बे प्रतिशत बाशिन्दों की सकारात्मक राय भी
आ चुकी हो तब मात्र दस वर्ष के अंतराल पर इस पूरी प्रक्रिया को पुन: दोहराना
फिजूलखर्ची ही माना जायेगा।
खैर। जब फिजूल की यह कवायद हो ही रही है तो जिस एजेन्सी को यह ठेका दिया जाता
है, उसकी मंशा होती है कि
योजना को जितना बड़ा बनाएगी, उसका मानदेय उतना
ही बढ़ के मिलेगा। इसीलिए इस पूरी कवायद को कपड़छाण नहीं बल्कि कप'ट' छांण कहा है। इस नये सर्वे में एलिवेटेड रोड को चार लेन में प्रस्तावित करने
की योजना बनाई जा रही है। दस वर्ष पूर्व की 24 करोड़ की योजना के लिए जब 135 करोड़ के बजट का प्रावधान आ गया तब इसे 250 करोड़ तक ले जाना और वह भी ऐसी योजना जिसमें
कइयों के घर-व्यापार बिना जरूरत के उजाड़े जाने की बात की जा रही है, सर्वथा अनुचित है। ऐसे में बीकानेर के
जनप्रतिनिधियों से उम्मीद तो ये की जाती कि वे एलिवेटेड रोड के निर्माण के लिए
दुबारा सर्वे की जरूरत को ही खारिज करवाते। इससे ना केवल सर्वे और योजना बनाने में
लगने वाले सार्वजनिक धन की बचत होती बल्कि इस योजना के बहाने जो मेन स्ट्रीम
मीडिया गैर जिम्मेदाराना तरीके से सनसनीखेज खबरें लगाकर होते काम में बाधक बन रहे
हैं, उससे बचाव भी होता।
वर्ष 2006-07 की उस योजना में
मात्र इतने ही बदलाव की जरूरत है कि अभी जो इसका रेलवे स्टेशन वाला सिरा मोहता
रसायनशाला तक जाना बताया गया है, उसे डीलक्स-ग्रीन
होटल तक ही इसलिए उतारने की जरूरत है कि गंगाशहर की तरफ से जो इक तरफा यातायात
बिस्किट गली से आता है, उसे इस एलिवेटेड
रोड का लाभ सीधे मिल जाए।
महात्मा गांधी रोड और स्टेशन रोड के व्यापारियों को भी अब यह समझने की जरूरत
है कि अभी जो लगभग 70 प्रतिशत यातायात
इन मार्गों का उपयोग केवल गुजरने के लिए करता है, वह एलिवेटेड रोड से गुजरेगा जिससे उनके ग्राहक तसल्ली से
खरीददारी कर सकेंगे और अगर वर्तमान यातायात का यह 30 प्रतिशत इस बाजार से तस्सली से खरीद कर सकेगा तो यहां के
ग्राहकों के प्रतिशत में बढ़ोतरी ही होगी। जो ग्राहक भीड़-भड़ाके से बचने को इन
मार्गों पर खरीददारी करने अब नहीं आते, सुविधा मिलने पर वे खरीददारी करने इन बाजारों में आने लगेंगे।
शहर की इस सबसे बड़ी समस्या का एलिवेटेड रोड के अलावा कोई अन्य समाधान
व्यावहारिक नहीं है। अब विरोध करने वालों पर है कि क्या वे इस समाधान को जल्दी
हासिल करना चाहते हैं या विरोध करके इस सुविधा को और देरी से हासिल करेंगे। बाइपास
की लॉलीपोप चूसते उन्हें पचीस वर्ष तो हो लिए हैं 'ना नौ मन तेल होना है और ना ही राधा को नाचना है।'
23 मार्च, 2017
—दीपचन्द सांखला
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