Saturday, July 23, 2016

हिंसक मन के लिये दोषी कौन/ भवानीसिंह राजावत द्वारा चप्पल फेंकना

रविवार को देवली में प्रदीप ने खुद का और पत्नी सहित पांच जीवन समाप्त कर दिये। सोमवार को राज्य प्रशासनिक सेवा के अधिकारी रामदेवसिंह ने बल्ले से अपनी पत्नी की हत्या कर दी। हत्या के बाद रामदेवसिंह रोजमर्रा की तरह ऑफिस भी पहुँच गये। प्रदीप ने यह जघन्य अपराध अपने जिस पुत्र के लिए किये उसके ननिहाल में चार हत्याएं करने के बाद उसे अपनी बहिन के यहाँ छोड़ा और वहीं अपनी बात सार्वजनिक करने के बाद खुद को भी खत्म कर लिया।
यह दोनों घटनाएं ऐसी नहीं है कि इससे पहले इस तरह का कुछ हुआ नहीं हो। बड़ा आसान हैं कि आज के समय को कोसते हुवे कह दें कि समय ही ऐसा है कि मनुष्य से चैन और शान्ति छिन गई है।
इस वाक्य से जाहिर होता है व्यक्ति का कोई दोष नहीं है, यह सब समय ने करवाया है। इस समय को ऐसा किसने बनाया? अपनी पात्रता से ऊपर और हक से ज्यादा पाने की अंधी दौड़ ने व्यक्ति को धैर्यहीन बना दिया और दोष समय को देते हैं।
इन दो घटनाओं में प्रत्यक्षतः तो दोषी प्रदीप और रामदेवसिंह ही हैं लेकिन हमेशा यह सच नहीं होता है। खुद को इस अपराध से रोक पाने का दोष तो है ही इन दोनों का। कई लोग प्रदीप और रामदेवसिंह की मनःस्थिति में पहुँचते ही होंगे। वे सब यदि अपने को रोक पाते तो जाने कितनी ऐसी घटनाएं समाचारों से मिलती।
अहम, जिद और जैसा कि ऊपर कहा कि पात्रता से ऊपर और हक से ज्यादा पाने की जिद यह सब करवा देती है। ऐसी घटनाओं पर विचार करते समय हमें इस तरह भी सोचना चाहिए।
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विधान सभा में सोमवार को जो घटित हुआ उस पर भी बात कर लेते हैं, भवानीसिंह राजावत विपक्ष के वरिष्ठ विधायक हैं, जनता ने चुन कर भेजा है, पार्टी में जिस मुकाम तक पहुँचे हैं, कुछ काबलियत भी होगी काबलियत सही कोई दावं-पेच जानते होंगे। और अगर दावं-पेच से ही सब हासिल किया है तो कौन-सा दावं कब चलाना है इतनी समझ भी होगी लेकिन कल उन्हें दांवं की जगह चप्पल क्यों चलानी पड़ी, क्या उनसे भी समय ने ही ऐसा करवाया है।
इस चप्पल के चलते राज्य सरकार ने चार विधेयक पारित करवा लिए, बिना किसी बहस के। इनमें से एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण लोकसेवा गारंटी योजना वाला विधेयक भी था, विधायकों को कम से कम इस विधेयक पर लम्बी और गम्भीर चर्चा करनी थी।
वर्ष 1, अंक 9, मंगलवार, 30 अगस्त, 2011


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