राजस्थान पत्रिका, भास्कर और ईटीवी
जैसे मास-मीडिया स्रोत किसी राजनेता से संबंधित कुछ सुरसुरी छोड़ते हैं तो चुनावी
राजनीति करने वाले नेता बिना व्याकुल हुए नहीं रहते। ईटीवी राजस्थान ने पट्टी चलाई
कि बीकानेर भाजपा में सब ठीक-ठाक नहीं है। बड़े नेताओं की आपस में पटती नहीं है।
इसके चलते न तो राज्य सरकार के और ना ही केन्द्र की सरकार के किए-धरे का प्रचार,
जैसा होना चाहिए, वैसा नहीं हो पा रहा।
वैसे तो दोनों ही जगह की सरकारें अभी तक कुछ कर नहीं पायी हैं फिर भी
केन्द्रीय स्तर के नेता और मंत्री इस पोल में भी ढोल बजाने दो दिन शहर में होंगे।
देखना यह है कि ढम-ढम सुर में होती है या बेसुरी। लेकिन जैसा कि शुरू में कहा—स्थानीय भाजपा संगठन में अधिकांश बेसुरा ही है।
बुधवार को एक स्थानीय कार्यक्रम में सांसद अर्जुनराम मेघवाल आए तो ईटीवी के लक्ष्मण
राघव के मुखातिब होते ही ईटीवी पर चलाई गई पट्टी पर बात होनी ही थी। बातचीत में एक
ने कह दिया कि आप तो वरिष्ठ हैं इस नाते सब में सामंजस्य बिठाने की जिम्मेदारी
आपकी है। इस पर मेघवाल ने कह ही दिया कि उन्हें कोई वरिष्ठ माने तो सही।
भारतीय प्रशासनिक सेवा की नौकरी छुड़वा कर राजनीति में लाए गए अर्जुनराम
मेघवाल सात वर्ष से ज्यादा समय से राजनीति में हैं, बावजूद इसके वे यहां फिट नहीं हो पा रहे हैं। एक कारण तो
यही माना जा रहा है कि मेघवाल अपने अफसराना तौर-तरीकों से मुक्त नहीं हो पा रहे है
जिसके चलते इस राजनीतिक व्यवसाय में सबको साधने का जरूरी गुण अभी तक आत्मसात् नहीं
कर पाए हैं। स्थानीय तो क्या उनकी इस कमी के चलते सूबे की नेता वसुंधरा राजे से ही
सब कुछ ठीक-ठाक नहीं रख पाए। अब कुछ साधने की कोशिश भी हुई तो भी वैसा कुछ नहीं है
जैसा मेघवाल के राजनीति में आने के समय था। एक और बात तब की है जब नरेन्द्र मोदी
गुजरात के मुख्यमंत्री थे और नये-नये सांसद बने अर्जुनराम मेघवाल ने पार्टी की
किसी बैठक में मोदी से उथला कर लिया। फिर क्या, मोदी ने सर्पिणी की माफिक मेघवाल की उस छवि को अपने
मस्तिष्क में जमा कर लिया। कहते हैं केन्द्रीय मंत्रिमंडल में उन्हें शामिल न करने
का बड़ा कारण यही था। राजस्थान से केन्द्रीय मंत्रिमंडल में निहालचन्द का बीकानेर
संभाग से होना और दलित भी होना अर्जुनराम मेघवाल के लिए भी बाधा का काम कर रहा है।
इस तरह अब निहालचन्द के केन्द्रीय मंत्रिमंडल से बिना हटे अर्जुनराम मेघवाल मंत्री
बन नहीं सकते। अर्जुनराम यदि इसी कुण्ठा को स्थानीय नेताओं पर निकाल रहे हैं तो
इसे उनकी अपरिपक्वता ही माना जाएगा।
अर्जुनराम यह भूल रहे हैं कि पहला चुनाव वे इसलिए जीत गये थे कि कांग्रेस ने
उनके खिलाफ अविश्वसनीय और फ्यूज हुए रेंवतराम पंवार को उतारा था और अर्जुनराम एकदम
नया चेहरा थे। दूसरी बार की उनकी जीत इसलिए हुई कि कांग्रेसनीत संप्रग-2 की सरकार ने साख पूरी तरह खो दी थी और मोदी उस
चुनाव को लूट ले गये थे। पहले कार्यकाल में तो उनके पास जवाब था कि उनकी सरकार
नहीं थी लेकिन इस कार्यकाल में उनके पास कोई बहाना नहीं होगा। बीत गए दो वर्षों
में अपने क्षेत्र के लिए उन्होंने ऐसा कुछ नहीं किया है जो उल्लेखनीय हो और शेष
तीन वर्ष में वे कुछ कर पाएंगे इसका भरोसा इसलिए नहीं कि वह ऐसी साख बनाने में
असफल रहे हैं कि अपने क्षेत्र को लेकर उनके पास कोई दृष्टि या कहें विजन है,
जिसकी बदौलत बचे तीन वर्ष में वह कुछ कर
पाएंगे। ऐसे में अर्जुनराम को यह अहसास नहीं है कि अगले चुनाव में यदि कांग्रेस ने
कोई फ्रेश चेहरा उनके सामने उतार दिया तो उनके लिए चुनाव जीतना आसान कतई नहीं
होगा। और तब और भी मुश्किल होगा जब स्थानीय लगभग सभी मैदानी नेताओं से वे पक्के
उथले कर चुके होंगे।
पांव जमाए नेताओं में देवीसिंह भाटी और गोपाल जोशी के साथ अर्जुनराम का छत्तीस
का आंकड़ा है। ऐसे में डॉ. विश्वनाथ और सुमित गोदारा से उनके रिश्ते कैसे हो सकते
हैं, कहने की जरूरत नहीं।
किसनाराम नाई और पार्टी से निकाले जा चुके मानिकचन्द सुराना से संबंध ठीक रहे तो
भी अगले चुनाव में से दोनों अर्जुनराम के लिए कुछ कर पाएंगे, कहा नहीं जा सकता। बिहारी बिश्नोई अगले चुनावों
तक दूसरों को लाभ पहुंचाने की अपनी हैसियत बना पाते हैं तो ही कुछ कर पाएंगे।
पार्टी के सांगठनिक नेता जो बीकानेर के हैं वे खुद भी वार्ड मेम्बरी का चुनाव
जीतने का वजूद नहीं रखते तो ऐसे में अर्जुनराम को वे क्या निहाल करेंगे। संगठन के
अधिकांश नेता तो अपनी हैसियत सोडा-वाटर जितनी ही पाते हैं। इसलिए वे किसी 'नीट' में मिलने को तत्पर रहते हैं। ऐसे में सोडा-वाटर टाइप ये नेता यदि अर्जुनराम
को 'नीट' मान 'मिक्स' भी होते हैं तो उनके बूते
किए उथले कीमत मांगे बिना नहीं रहेंगे।
अर्जुनराम मेघवाल के पास अब भी तीन वर्ष हैं, चाहें तो अपने क्षेत्र के विकास के लिए योजना बनाकर उसके
पुख्ता क्रियान्वयन के लिए क्षेत्र के नेताओं से सामंजस्य बनाकर लगेंगे तभी कोई
स्थाई मुकाम बना पाएंगे। इसके लिए उन्हें अपना आदर्श बजाय बीडी कल्ला के अशोक
गहलोत को बनाना होगा जो जोधपुर के विकास के लिए न केवल अपनी पार्टी के नेताओं से
बल्कि विरोधी भाजपा के स्थानीय नेताओं से बराबर सामंजस्य बनाए रखते हैं।
2 जून, 2016
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