Thursday, January 7, 2016

गणतंत्र दिवस समारोह : हरी होती दीखती उम्मीदें

सूबे के संवैधानिक मुखिया राज्यपाल और कामकाजी मुखिया मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे, दोनों को 26 जनवरी पर्व पर इस बार बीकानेर में होना है। गणतंत्र दिवस के राज्य स्तरीय समारोह का आयोजन यहां तय किया गया है। अत: हो सकता है कि मुख्यमंत्री कम से कम एक दिन पहले तो बीकानेर आ ही जायें।
दीपावली पूर्व आसोज में जिस तरह साफ-सफाई और रंगरोगन का दौर-दौरा घरों में चलता है, कुछ-कुछ वैसा ही माहौल खासकर शहर के उन क्षेत्रों में दिखाई देने लगा है, जहां-जहां इन अतिविशिष्टों को जाना या जिन-जिन स्थानों से गुजरना है। जून, 2014 में 'सरकार आपके द्वारÓ के समय मुख्यमंत्री यहां कई दिनों तक रहीं, यद्यपि उन्होंने तब कुछ खास ऐसी उम्मीदें नहीं दी कि उन्हें फिर आगामी यात्रा में बगलें झांकनी पड़े। लेकिन शहर की कुछ जरूरतें और कुछ नाक के सवाल ऐसे हैं जिन पर वसुंधरा को ध्यान यहां आने पर देना होगा।
शहर की पहली और बड़ी जरूरत तो कोटगेट और सांखला रेल फाटकों के चलते दिन में कई-कई बार लगने वाले जाम का समाधान देना हैं। इसके समाधान की यहां के शहरी लगभग पिछले पचीस वर्षों से बाट जोह रहे हैं। लेकिन बाइपास, अण्डरपास और एलिवेटेड रोड के समाधानों में से कोई-सा भी सिरे नहीं चढ़ रहा। इसके लिए सर्वाधिक जिम्मेदार तो यहां के नेता और चुने जनप्रतिनिधि हैं जिन्होंने इस समस्या को कभी गंभीरता से लिया ही नहीं। जो लेते तो जनता की एकराय बनवाते और फिर उसकी क्रियान्विति के लिए प्रयास ही करते। इसके प्रस्तावित समाधानों पर हुआ यह कि कुछ मुखर लोग सबसे खर्चीले-बाइपासी-समाधान पर अड़े हैं जिसे अंजाम तक पहुंचाना इतना दूभर है कि यह नामुमकिन सा हो गया। अन्यथा सात से पन्द्रह वर्ष के बीच निर्माण की यह योजना इन पचीस वर्षों में कभी जमीन पर आ लेती और यहां के बाशिंदे सुकून का अनुभव कर लेते। इस पर अटके लोग आज भी इसी समाधान को झाले बैठे हैं। वे यह भी समझना नहीं चाह रहे हैं कि आर्थिक तंगी का रोना-रोने वाली सरकारें दो हजार करोड़ राशि के इस समाधान को मंजूर भी कर लेगी तो इसके क्रियान्वयन तक शहर पंद्रह वर्षों तक क्या यंू हीं और भी बदतर तरीके से भुगतता रहेगा।
बाइपासी समाधान के आग्रह को कायम रखते हुए भी जब तक यह समाधान जमीन पर उतरे तब तक एलिवेटेड रोड जैसी डेढ़-दो वर्षीय योजना पर अब शहरियों को एकराय हो लेना चाहिए और इसके शिलान्यास का उचित अवसर भी गणतंत्र दिवस समारोह के आगामी राज्य स्तरीय आयोजन पर हासिल कर लेना चाहिए। यदि ऐसा होता है तो सूबे की यह सरकार 2018 के चुनावों में अपनी पार्टी का मुंह लेकर शहर के दोनों विधानसभा क्षेत्रों में आसानी से जा सकेगी।
दूसरा, नाक का सवाल बन चुके तकनीकी विश्वविद्यालय की पुनस्र्थापन की उम्मीद है। हो सकता है सरकार इसकी घोषणा अब 2017 में करे, तब तक पिछली कांग्रेसी सरकार का इसके लिए किया-धरा सब धुल जायेगा और इस विश्वविद्यालय की चमक का श्रेय अकेले इसी सरकार को हासिल हो जाए।
तीसरा, एक और मुद्दा जिसे समर्थों और उनसे हांके जाने वाले मीडिया ने नाक का सवाल बनाया है, वह हवाई सेवा शुरू करने का है। 'सरकार आपके द्वार' कार्यक्रम के समय संबंधित मंत्रालय के दो केन्द्रीय मंत्रियों और स्वयं मुख्यमंत्री ने आकर नाल सिविल टर्मिनल का उद्घाटन किया था और सभी संभावनाओं को टटोलने का पूरा भरोसा दिलाते हुए कहा भी कि निजी क्षेत्र की कोई कंपनी भले यह सेवा शुरू न करे पर एयर इण्डिया को इसके लिए राजी कर लिया जायेगा। पहले से भारी घाटे में चल रही एयर इण्डिया भी अब इतनी सयानी हो गई है कि महीने में दो-पांच दिन की फायदे की उड़ानों की नियमित सेवा वह भी अब शुरू करती नहीं। ऐसे में निजी एयरलाइनों से कुछ उम्मीद करना दिवास्वप्न-सा ही है। इसके उद्घाटन के समय ही ऐसी सभी आशंकाएं 'विनायक' ने जाहिर करते हुए जता दिया था कि जब तक उड़ानों का असल समय आएगा तब तक इस टर्मिनल के नवीनीकरण का समय आ लेगा। यह आशंका आज डेढ़ वर्ष बाद भी कायम है।
खैर, अपने शहर से सचमुच प्रेम करने वालों को इस पूरे महीने मुस्तैदी दिखानी चाहिए और कोटगेट और सांखला रेल फाटकों की समस्या का समाधान ले पडऩा चाहिए।

7 जनवरी, 2016

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