Thursday, October 29, 2015

सहिष्णुता को पलीता न लगाने दें

पिछले वर्ष भी अक्टूबर में ही श्रीडूंगरगढ़ में दो समुदाय के बीच बदमजगी हुई। 'श्रीडूंगरगढ़ यूं लगता है सामाजिक सद्भाव के पलीता' शीर्षक से 'विनायक' में लिखे सम्पादकीय की चार-छह लाइन से बात शुरू करना प्रासंगिक लगा।
'ऐसे लोग भूल जाते हैं कि कुछ लोगों के अहम् की तुष्टि के लिए कितने लोगों का सुख-चैन छीन रहे हैं.....समाज के हेकड़ीबाज और संकीर्ण मानसिकता वाले लोग अच्छे-भले शांत माहौल को किस तरह खराब करवा देते हैं। श्रीडूंगरगढ़ कस्बा इसका ताजा उदाहरण।' (पूरा आलेख 8 अक्टूबर 2014 की तारीख  मे deepsankhla.blogspot.com पर पढ़ा जा सकता है।)
पिछले वर्ष लिखी 'विनायक' सम्पादकीय की इन पंक्तियों को हाल की बदमजगी पर ज्यों का त्यों चस्पा किया जा सकता है। ताजा घटनाओं के मूल में पिछले वर्ष का भूखण्ड विवाद ही है जिस पर वहां के नेताओं ने न समय रहते दृढ़ता दिखाई और न ही हाल ही के विवाद के बाद प्रशासन मुस्तैद हुआ। नतीजतन सामाजिक सौहार्द के इस आदर्श गांव के सद्भाव को चन्द हेकड़ीबाजों ने पलीता लगा दिया।
ताजा घटना में प्रशासनिक लापरवाही साफ दीख रही है। अब इसके लिए जिम्मेदार वहां के उपखण्ड अधिकारी हैं या पुलिस उपाधीक्षक, इसका निर्णय उच्च प्रशासनिक अधिकारियों को करना है। वर्षों से घटना स्थल पर यह व्यवस्था रही है कि मेले-मगरियों के पदयात्रियों को बजाय मस्जिद वाले रास्ते के, वैकल्पिक रास्ते से ही गुजारा जाता रहा लेकिन इस बार ऐसा नहीं किया गया। क्यों नहीं किया गया समझ से परे है। पदयात्रियों के लिए यातायात की व्यवस्था पूर्ववत: होती तो वर्तमान स्थितियों से बचा जा सकता था। शनिवार 24 अक्टूबर को मुहर्रम था, सभी जानते हैं इस्लाम में यह त्योहार नहीं गम का दिन है। मुहर्रम की पूर्व रात को इशा की नमाज के बाद देर रात तक कुरान का पाठ होता है और मरसिया (शोकगीत) गाए जाते हैं। लगभग इसी समय मस्जिद के पास से सालासर के पदयात्री डीजे के साथ गुजर रहे थे। वहां खड़े मुस्लिम युवकों ने उन्हें वहां डीजे बन्द करने को कहा। कहते हैं पदयात्री न तो इसके लिए तैयार हुए बल्कि अपशब्द बोलते हुए वहीं खड़े होकर नाचने लगे। मुस्लिम युवकों का भी धैर्य जवाब दे गया, हाथापाई की नौबत आ गई। दूसरे गांव के इन पदयात्रियों ने श्रीडूंगरगढ़ चौराहे पहुंच के श्रीडूंगरगढ़ के कट्टरपंथियों को क्या बुलाया मानों स्थानीय असहिष्णु हेकड़ीबाजों को अवसर ही दे दिया। इस पूरे घटनाक्रम के बीच श्रीडूंगरगढ़ के किसी भले आदमी ने बीच-बचाव की कोशिश की हो, इसकी जानकारी नहीं। किसी ने कोशिश की भी होगी तो उसे मान नहीं दिया गया और इसके बाद जो कुछ हुआ, सबके सामने है। आगजनी में ज्यादातर नुकसान मुस्लिम समुदाय का ही हुआ है। रातभर दुकानें और थडिय़ां आग के हवाले की जाती रहीं। बावजूद इसके जिले की पुलिस और प्रशासन का मुस्तैद होना तो दूर की बात बल्कि दूसरे दिन दोपहर तक तो ये सब जिला मुख्यालय पर आयोजित खेलकूद प्रतियोगिता में ही मशगूल रहे। बाद इसके ही उन्होंने श्रीडूंगरगढ़ कस्बे की सुध लेने की ठानी।
परिवार में जिस तरह दो भाइयों के झगड़े में अक्सर मारपीट, मुकदमेबाजी, यहां तक, कई बार हत्याएं तक हो जाती हैं। देश के संदर्भ में बात करें तो ऐसी ही बदमजगियां दो समुदायों के बीच कुछेक नामसझों के चलते हो जाती हैं। ऐसे में यदि कोई समझदार बीच-बचाव में नहीं आए या आए तो उसकी नहीं मानें तो सुख-चैन तो सभी का छिनता है।
श्रीडूंगरगढ़ की स्थिति एक मानी में यूं भी भिन्न है कि यहां भाजपा के विधायक हैं। कहा जाता है कि भाजपा की पितृ संस्था राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अन्य संगठनों के पदाधिकारियों का विधायकजी से छत्तीस का आंकड़ा बना रहता है। देश-प्रदेशों में बनी नई सरकारों के बाद बहुसंख्यक असहिष्णु और हेकड़ीबाज इनमें अनुकूलताएं देखने लगे हैं। यह अकारण नहीं है कि बहुसंख्यक और उच्चवर्गीय मानसिकता वाली भाजपा के वर्चस्व के समय अल्पसंख्यकों और दलितों से अपनी 'औकात' में रहने की उम्मीदें की जाने लगी है और इनमें कुछेक लोग ऐसे भी होते हैं कि मौका मिलते ही इस हेतु सबक देने से भी नहीं चूकते।
पूरे देश की सनातन सहिष्णुता को इस बिना पर ताक पर धरा जा रहा है कि अन्य जो भी कमजोर हैं वे समर्थों के हिसाब से बरताव करें। देश में ज्यों ही बदमजगियां बढ़ेंगी ताक में बैठे दूसरे देश इसमें अनुकूलता देखने लगेंगे। पड़ोसी देश पाकिस्तान, अफगानिस्तान सहित खाड़ी के भी अनेक देश कट्टरपन के नतीजे भुगत रहे हैं। हम यह भूल रहे हैं कि कट्टरपन का एक्शन एक जैसा ही होता हैफिर वह चाहे मुसलमानों का हो या ईसाइयों का और फिर वह हिन्दुओं का ही क्यों न हो।
ऐसी परिस्थितियों को भुगतते सब हैं लेकिन ज्यादा वह भुगतते हैं जो कमजोर हैं, सामथ्र्यहीन हैं यानी अपने देश में अगर कुछ भी बदमजगी होती है तो दलित-पिछड़े और अल्पसंख्यकों की ही शामत आनी है। नागरिक सजग और सावचेत नहीं रहेंगे तो भारत के नरक में बदलते देर नहीं लगेगी। नई सरकार आने के बाद वे सब समूह मुंह उठाने लगे हैं जो देश की सहिष्णु तासीर बदलना चाहते हैं।

29 अक्टूबर, 2015

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