Friday, August 7, 2015

जजों को धमकी न्याय को चुनौती

याकूब मेमन की फांसी माफी की सुनवाई से जुड़े न्यायाधीश दीपक मिश्रा को धमकी मिलने के बाद दिल्ली पुलिस उनकी सुरक्षा के लिए जेड प्लस जैसी व्यवस्था कर रही है। साथ ही इस मुकदमे से जुड़े अन्य न्यायाधीशों और महान्यायवादी की सुरक्षा भी बढ़ाई गई है।
मौत की सजा को अमानवीय मानते हुए यह भी मानना है कि इस तरह की धमकियां न्याय में केवल बड़ी बाधा हैं बल्कि न्याय में भरोसा कम करने वाली भी हैं। जैसा कि सभी जानते हैं कि याकूब मेमन को फांसी की सजा पूर्ण न्यायिक और शासकीय प्रक्रिया के बाद ही दी गई। भारतीय कानूनों के अनुसार मुकदमा चला, याकूब को पैरवी के लिए विद्वान वकील मिले, देश के मौजिजों ने फांसी माफी की गुहार लगाई। यही नहीं, अंतिम घंटों तक आधी रात बाद उच्चतम न्यायालय की-सुनवाई पीठ बैठी। यानी आजादी बाद फांसी की सजा पाए किसी अपराधी को ऐसी न्यायिक और मौजिजी पैरवी शायद ही कभी मिली हो। यह बात अलग है कि इस सबके बावजूद याकूब को तय समय फांसी के फंदे पर लटका दिया गया। गुंजाइश विवेक संबंधी ही थी और न्यायाधीशों के विवेक ने छूट दी और ही देश के राष्ट्रपति के विवेक ने। बाकी देशों की जानकारी नहीं है लेकिन भारतीय न्याय व्यवस्था में ऐसा है कि न्यायाधिपति जिस समय फैसला लिखते हैं तब सजा में थोड़ी घटत-बढ़त की गुंजाइश उनके विवेक पर निर्भर करती है। बाकी सजाओं पर कोई बात नहीं लेकिन जब तक देश में मौत की सजा का प्रावधान समाप्त हो तब तक ऐसी सजा के किसी मुजरिम का फैसला लिखते समय यह उम्मीद की जानी चाहिए कि वे अपने विवेक की तराजू का पलड़ा बजाय न्यायिक पक्ष के मानवीय पक्ष की ओर झुकाएं। ज्यादा से ज्यादा सजा यह हो सकती है कि जब तक मुजरिम जीए, उसका शेष जीवन जेल में ही बीते।
यह तो हुई एक बात जिस पर इसी धारणा से पहले कई बार चर्चा हो चुकी है। धमकी का मामला ताजा है और इस तरह यदि किसी न्यायाधीश को धमकाने का कोई दुस्साहस करता है तो इसके मानी यही है कि न्यायिक फैसलों को प्रभावित करने की प्रवृत्ति बढ़ेगी। वह भी तब जब इस तरह की प्रवृत्ति समाज और व्यवस्था के अन्य अंगों में भी लगातार बढ़ रही है, इसलिए यह चिन्ताजनक ज्यादा है। सभी जानते हैं, मुम्बई बम धमाकों के लिए याकूब से ज्यादा और बड़े दोषी टाइगर मेमन और दाऊद पड़ोसी पाकिस्तान और खाड़ी देशों में बैठकर केवल अपना अवैध धंधा चलाते हैं बल्कि अपने गुर्गों के जरिए धमकियां देकर भारत में भी अपनी धाक बनाए रखने में अकसर सफल होते हैं। उम्मीद की जाती है कि सरकार इस धमकी पर कोई लापरवाही नहीं दिखाएगी। इसी में ही क्यों, ऐसे अन्य मामलों में भी मुस्तैदी से कार्यवाही की जरूरत है। इस तरह की प्रवृत्तियां बढ़ती हैं और ऐसे सौ में एक-आध में भी सफल होते हैं तो दुस्साहस और बढ़ेगा ऐसे दुस्साहसियों की संख्या बढ़ते देर नहीं लगेगी। कानून और व्यवस्था का शासन अराजकता में बदलते देर नहीं लगेगी। ऐसी स्थितियां दुनिया के कई देशों में हैं जहां की स्थितियां भयावह तो हैं ही, अमानवीय भी हैं।
इस सब के बावजूद हमें विचार इस पर तो करते ही रहना चाहिए कि दुनिया के नब्बे देश जब मौत की सजा खत्म कर चुके हैं और अन्य अनेक ने मौत की सजा का प्रावधान होते हुए भी अघोषित तौर पर मौत की सजा देना तय कर रखा है, ऐसे में बुद्ध, महावीर और गांधी का झंडा उठाए रखने वाले इस देश में इस तरह की सजा का मानवीय पक्ष बेहद कमजोर है। इस सजा को खत्म करवाने की बात करने वालों के अपने पुख्ता तर्क और आधार हैं जिनकी उपेक्षा नहीं की जा सकती।

7 अगस्त, 2015

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