Tuesday, August 4, 2015

कांग्रेस-भाजपा और पीबीएम

शहर में सार्वजनिक सेवाओं के स्थान और सरकारी दफ्तर तो बहुतेरे हैं, पर फिलहाल निशाने पर पीबीएम अस्पताल ही है। अभिनव नागरिकों का समूह लगभग एक पखवाड़े की सक्रियता के बाद 27 जुलाई से सुस्त है। वे कहते हैं, कुछ समय बाद फिर सक्रिय होंगे, ठीक हुई लापरवाहियां पुन: देखी गईं तो वही घोड़े और वही मैदान होंगे। वैसे 27 जुलाई को उनके अभियान के चरम दिवस पर पूछताछ वाले खण्ड यानी पीबीएम अस्पताल के बीच वाले प्रवेश द्वार पर बने महिला और पुरुषों के शौचालय-मूत्रालय, दोनों ही ऐसे नहीं थे कि उनका कोई उपयोग कर सके। वहीं पास में किसी 'दाता' की लगवाई प्याऊ के चारों नल सूखे पड़े थे। पता नहीं अभिनव नागरिकों की चौकसी में ये चूक कैसे रही।
अभिनव नागरिकों के पखवाड़े की उस बहती गंगा में जहां सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी की स्थानीय इकाई ने भी कान भिगोए वहीं, कांग्रेस ने तब भी डुबकियां लगाईं और अभी तक पुण्य कमाने में लगी है। विपक्ष में है तो अपने जिन्दा होने के सबूत देने के अवसर कांग्रेस केन्द्र से लेकर तहसील-जिलों तक लपकती रहती है। जरूरी भी है, अन्यथा वामपंथियों और समाजवादियों के हश्र को प्राप्त होते देर नहीं लगेगी।
लोकसभा में बहुत कम हैसियत के बावजूद कांग्रेस 'हाकानीति' से अपनी उपस्थिति दर्ज कराती है तो राज्यसभा में सत्ताधारी भाजपा असहाय अवस्था में पायी जाती है। देश की विदेश मंत्री सुषमा स्वराज को कल राज्यसभा में दयनीय हालात में गिड़गिड़ाते देखा गया। प्रधानमंत्री मोदी इस तरह राज करने के आदि नहीं हैं। वे राज को चलाना नहीं, हांकना जानते हैं, गुजरात जैसी अनुकूलताएं केन्द्र में नहीं हैं। इसलिए मोदी को अपने पूर्ववर्ती मनमोहनसिंह की मौनी अवस्था में ही अनुकूलता लगने लगी है।
इधर बीकानेर का सत्ताधारी भाजपा संगठन जहां स्थानीय दिग्गजों की आपसी खींचतान में व्यस्त है वहीं इस विपत्तिकाल में कांग्रेस एकजुट होने में लगी है। पैंतीस साल से सर्वेसर्वा होने की कोशिश में लगे बीडी कल्ला यहां का अपना प्रवास जहां लगातार बढ़ा रहे हैं वहीं उनके 'भाईजी' जनार्दन कल्ला लगता है वानप्रस्थी हो लिए हैं। शहर कांग्रेस अध्यक्ष यशपाल गहलोत लगातार इस कोशिश में लगे हैं कि कैसे कैसे कांग्रेस को गहन चिकित्सा इकाई से बाहर लाया जाए। यशपाल सभी को एकजुट करने की कोशिश में सफल भी होने लगे हैं।
पिछली बरसात के बाद हमेशा की तरह पीबीएम परिसर में कई जगह छोटी-छोटी तलाइयों का भरना तय ही था। जबकि वहां केवल सीवर लाइन है बल्कि अस्पताल के पिछवाड़े मेडिकल कॉलेज रोड पर बरसाती नाला भी है। लेकिन इन्हें दुरुस्त रखने की जिम्मेदारी पता नहीं किनके जिम्मे हैं। अस्पताल के प्रशासक और डॉक्टर दबाव में फिलहाल में कुछ मुस्तैद हों, लेकिन वे कुछ करते भी हैं तो अहसान भाव से ही करते हैं, उनके डॉक्टर बनने पर सार्वजनिक धन के चाहे लाखों खर्च हुए हों या चाहे लाखों की सालाना तनख्वाह उठाते हों, 'प्रिवीयर्स' ही मानते हैं। अन्यथा कोई कारण नहीं कि अस्पताल गंदा रहे या बारिश में इस गत को हासिल हो जाए कि मरीज और उसके परिजन सुभीते से इलाज हासिल करने पहुंच सके।
रही कांग्रेस-भाजपा की बात तो ये मान चुके हैं कि जनता मौका बारी-बारी से ही देगी। विपक्ष की मांगे तौर-तरीके तय हैं, सरकार में आने पर सुधारा कर दिया तो विपक्षी के पास करने को कुछ नहीं रहेगा। कुल जमा बात यह है कि इनकी इस नूरा-कुश्ती में ठगा तमाशबीन जनता को ही जाना है। देखना यही है कि जनता कब चेतन होती है, जब तक नहीं होगी, भुगतते जाना है और ज्यों-ज्यों समय गुजरेगा भुगतने की मात्रा और तीव्रता बढ़ेगी ही।

4 अगस्त, 2015

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