Monday, August 24, 2015

नहीं होगी बात तो यहीं तलक रह जायेगी

घर के कुमाणस पड़ोसी से छुटकारे का उपाय है, बात गले तक आने पर अनुकूलता बनते ही आप घर बदल सकते हैं। पड़ोसी देश यदि ऐसा हो, उससे छुटकारे का कोई विकल्प नहीं है। भारत-पाकिस्तान संबंधों को लेकर अपनी यह बात 'विनायक' ने एकाधिक बार दोहराई है। पिछले वर्ष प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में बनी राजग सरकार से मतदाताओं ने जो उम्मीदें बांध बहुमत दिया उनमें एक बड़ी उम्मीद पाकिस्तान के साथ रोज-रोज की इन परेशानियों से छुटकारे की उम्मीद थी जिनके चलते सीमाओं पर रोज की गोलाबारी की नौबत भी है और सीमा पार से आए आतंकियों की हिंसा का शिकार भी जब तब होना पड़ता है।
नरेन्द्र मोदी अपने चुनाव अभियान के दौरान अपनी पीठ खुद इसलिए थपथपाते रहे कि पड़ोसी देश की बेजा हरकतों को डपटने के लिए छप्पन इंच के सीने की जरूरत होती है और साथ ही यह अपरोक्ष  भरोसा भी वह देते रहे कि ऐसा छप्पन इंचीय सीना उनके पास है। जनता ने मोदी के कहे पर भरोसा भी किया और ऐसे पूर्ण बहुमत की सरकार बनवा दी जिसकी उम्मीद खुद उनको भी नहीं थी।
अन्तरराष्ट्रीय संबंधों और कूटनीति की समझ के लिए सीने की क्या भूमिकाएं होती है, पता नहीं लेकिन चुनाव अभियान के दौरान मोदी के दिए अन्य सभी भरोसों, वादों और जुमलों की तरह ही यह छप्पन इंचीय भरोसा धराशायी होता दीख रहा है। केन्द्र में इस नई सरकार के बाद भारत-पाक सीमा पर केवल घुसपैठ बढ़ी है, बल्कि पिछले वर्षों की तुलना में गोलाबारी की अधिकता से चिन्ता में भी बढ़ोतरी हुई है।
पाकिस्तान में कभी लोकतांत्रिक शासन होता भी है तो उसके हाथ पूरी तरह खुले नहीं होते। कई कारणों के चलते सेना का पूरा हस्तक्षेप रहता है जिनमें आंतरिक उग्रवादी गतिविधियां और सहोदर पड़ोसी भारत का भय मुख्य है। ऐसे में लोकतान्त्रिक तौर पर चुने शासक भी कुछ खास करने की स्थिति में नहीं होते। अपनी पिछली मुलाकात में भारत-पाकिस्तान के प्रधानमंत्रियों ने तय किया था आपसी समस्याओं पर बातचीत फिर शुरू हो। इसी के अनुसरण में आयोजित होने वाली राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार स्तर की बातचीत रद्द हो गई। भारत का मानना है कि यह बातचीत केवल आतंकवाद पर होनी थी, कश्मीर इसके ऐजेन्डे में ही नहीं था। जबकि पाकिस्तान यह मानता रहा है कि भारत-पाकिस्तान के बीच मुख्य समस्या ही कश्मीर है। अपनी इस बात को पुख्तगी देने के लिए पाकिस्तान की कोशिश रहती है कि वह भारत के साथ हर बातचीत के दौरान उन कश्मीरी अलगाववादियों से मिले जिनका झुकाव पाकिस्तान की तरफ है। उधर भारत-पाक संबंधों के जानकारों का मानना है कि पाक सेना कभी चाहती ही नहीं है कि भारत-पाकिस्तान मित्र भाव से रहें। यदि ऐसा होता है तो उनकी हड़पी ताकत कम हो जाएगी। पाक सेना ने बड़ी चतुराई से देश में उग्रवादी गुटों को हर अनुकूलता देकर अपनी ताकत बढ़ाने की जरूरत बनाए रखी है।
बात अब भारत की कर लेते हैं। पूरी तरह बदल चुके अन्तरराष्ट्रीय परिदृश्य के चलते और पाकिस्तान के भी परमाणु ताकत बनने के बाद करगिल जैसे सीमित युद्ध भले लड़े जाएं, व्यापक सीमाई थल, वायु और जलीय युद्ध भयावह हो सकते हैं। हो सकता है भारत की नई सरकार ऐसे युद्धों को समाधानों के रूप में देखती हो क्योंकि वर्तमान राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार डोभाल ऐसी मंशा यह कहते हुए जता चुके हैं कि परमाणु युद्ध भी हुआ तो भारत नाम-निशान जितना ही सही फिर भी बच जायेगा, पाकिस्तान कितना बचेगा वह देखे। उम्मीद करते हैं कि ऐसी मंशा वाले सलाहकारों के चलते इस क्षेत्र को कभी उन विध्वंसनशील स्थितियों से गुजरना पड़े।
मानवीय समस्या का समाधान बातचीत से हो उसे जारी रखने से परहेज उचित नहीं है। रही कश्मीर की बात तो भारत-पाकिस्तान के बीच मुख्य समस्या ही कश्मीर है। कश्मीर यदि भारत का है तो यह क्यों भूल जाते हैं कि उसका एक बड़ा हिस्सा पाकिस्तान के हिस्से में है। जैसा एक फेसबुक मित्र आशुतोष कुमार ने कहा कि कश्मीर पर बात नहीं करोगे तो इसका सन्देश कहीं यही तो नहीं दिया जा रहा कि पाक अधिकृत कश्मीर को भारत ने अन्तिम रूप से पाकिस्तान का हुआ मान लिया। पूरा कश्मीर भारत का है तो उसके पाक अधिकृत हिस्से को क्या बिना कश्मीर पर बात के हासिल कर सकते हैं।
भारत की इस सरकार को पहले तो यह मान लेना होगा कि कश्मीर की स्थिति देश की उन दूसरी-दूसरी रियासतों की समस्याओं की तरह की नहीं है जिनका विलय आजादी बाद भारत में हुआ था। इसे नजरअन्दाज करना समस्या के शान्तिपूर्ण हल की ओर बढऩा नहीं है। रही बात पाक द्वारा की जाने वाली आए दिन की कुचरनी की तो पाकिस्तान भी यह मानता है कि पूर्वी पाकिस्तान में अलगाववादियों को भारत ने हवा देकर बांग्लादेश बनवाया था। इस घाव को पाकिस्तान के 'राष्ट्रवादी' सूखने नहीं देते। पाकिस्तान का यह भी आरोप है कि पाकिस्तान के जिन इलाकों में अलगाववादी सक्रिय हैं उनको भारत शह और साधन दोनों देता है। ऐसे में रास्ता यही है पाकिस्तान के तमाम बहानों के बावजूद भारत को बातचीत का माहौल बनाए रखना चाहिए। युद्ध हल नहीं है।
इतिहास गवाह है कि युद्ध ने कोई समाधान नहीं दिए हैं। छप्पन इंच का सीना जनता को बरगलाने के लिए चुनावी जुमला ही ठीक है, जिस किसी का होता भी है तो उनमें से अधिकांश को मोटापे के चलते अस्वस्थ ही माना जाता है। पाकिस्तान जिन स्थितियों से गुजर रहा है ऐसे में कैसी भी परिस्थिति में खोने को उसके पास कुछ नहीं है। भारत को बहुत कुछ खोना पड़ सकता है।

24 अगस्त, 2015

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