Friday, August 21, 2015

निकाय चुनावों के परिणामों के मानी

लोकतांत्रिक अनुष्ठान चुनाव के विभिन्न चरणों यथा, पंचायत, जिला परिषद, नगर निगम-परिषद-पालिका, विधानसभा और लोकसभा के नुमाइन्दों को एक निश्चित समय सीमा में चुनना तय करने की बात 'विनायक' ने पहले भी कही है। इस समय सीमा को तीन से छह माह के बीच चुनाव विशेषज्ञ तय कर सकते हैं। बाद इसके बचे साढ़े चार वर्ष यह सभी व्यवस्थापिकाएं बिना अपनी एकाग्रता को भटकाए लोक कल्याण के अपने उद्देश्यों में संलग्न रहे, ताकि कुछ सार्थक हो सके। यद्यपि इस पर छिट-पुट विचारों के अलावा कोई प्रभावी चर्चा ध्यान में नहीं आई है। लेकिन लगता है अब इस पर बात होनी चाहिए अन्यथा जब-तब बारहों महीने इसी में खप जाते हैं।
129 स्थानीय निकायों के चुनावों के परिणाम कल आए। इनके लिए मतदान 17 अगस्त को हुआ था। जब से इन नगर निगमों, परिषदों, पालिकाओं के चुनाव पार्टी चिह्नों पर होने लगे, तब से ही कुछ अपवादों को छोड़ देखा गया है कि मतदाता उसी पार्टी का बोर्ड बनवाता है, जिसकी सरकार सूबे में होती है। संभवत: उसे लगता होगा कि इसके चलते निकाय को संसाधन मिलने में सुविधा रहेगी। यद्यपि ऐसा कुछ होता-जाता देखा नहीं गया है। निकाय व्यवस्था जिस कदर भ्रष्टाचार, हरामखोरी और ठेकाई-शिकंजों में कस गई, जिसके चलते सामान्य उम्मीदें भी परवान चढ़ती नहीं दीखती, कुछ अतिरिक्त वे कर सकें, इसकी गुंजाइश कहां?
2013 के विधानसभा, 2014 के लोकसभा और बाद इसके 2014 में ही हुए स्थानीय निकाय चुनावों के अन्य चरण में भारतीय जनता पार्टी ने साख बनाए रखी। इस दौरान दूसरे प्रमुख दल कांग्रेस हार-दर-हार के बाद लुंज-पुंज होता गया और उसकी हिम्मत ही नहीं रही कि इस पस्तगी में मुकाबले में खड़ा रह सके। ये तो इन आठ महीनों में कांग्रेस द्वारा जैसे-तैसे जुटाई हिम्मत के चलते परिणाम उसमें कुछ आत्मविश्वास लौटाते से लगे हैं। लेकिन जनता ने जो ये परिणाम दिए, वे विचित्र हैं। मोदी के उतरे पानी का तो ज्यादा असर नहीं कह सकते लेकिन अभूतपूर्व बहुमत के साथ सत्ता में आयी वसुन्धरा का पौने दो वर्ष का निकम्माई कार्यकाल का कुछ असर इन परिणामों में जरूर देखा जा सकता है। केवल वे खुद के विधानसभा क्षेत्र झालरापाटन बल्कि उसी से लगते झालावाड़ के निकाय परिणामों ने मुख्यमंत्री को आईना दिखा दिया। झालावाड़ वसुन्धरा के बेटे और सांसद दुष्यंतसिंह का लोकसभा क्षेत्र है। इसी तरह प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट के लोकसभा क्षेत्र अजमेर के निगम चुनावों के परिणामों ने भी पायलट का मान नहीं रखा। नेता प्रतिपक्ष रामेश्वर डूडी जिस तरह की राजनीति करते रहे हैं उसके चलते खुद उनके विधानसभा क्षेत्र का परिणाम तभी चौड़े गया जब नोखा के पैंतीस वार्डों में से कांग्रेस मात्र छह वार्डों में ही प्रत्याशी खड़े कर पाई, उनमें से भी जीत एक ही सका। अति महत्त्वाकांक्षी डूडी पता नहीं अपने राजनीतिक तौर-तरीकों की समीक्षा करते हैं कि नहीं लेकिन ऐसा ही चलता रहा तो हालात डॉ. बीडी कल्ला के से ही हो जाने हैं। वैसे राजनीति करने के डूडी और कल्ला दोनों के उद्देश्य दूसरे हैं, तो भी ये दोनों ठीक-ठाक राजनीतिक हैसियत भी नहीं रख पाए तो अपने अन्य उद्देश्यों के हासिल  में बाधाएं आते देर नहीं लगेगी। लगातार दो चुनाव हार चुके कल्ला इसे भुगतने लगे हैं।
रही प्रदेश स्तर की बात तो डूडी और कल्ला दोनों के आपे से सभी परिचित हो गए हैं। इन्हें वहां सामान्य तवज्जो मिलना इसका प्रमाण है। वैसे भी बुरे समय में चतुर राजनेता जैसा है वैसा ही सहेज कर रखने का प्रयास करते हैंडूडी की थोड़ी-बहुत हेन-तेन अन्य नेताओं की इसी मजबूरी के चलते है।
निकाय चुनावों के इन परिणामों का कुल जमा तलपट इतना ही है कि मोदी और वसुन्धरा दोनों का पानी उतरने लगा है। कांग्रेस जिसके पास खोने को कुछ था ही नहीं, इन चुनावों में जो भी हासिल किया वह नफा ही है, लेकिन उसे यह नहीं मान लेना चाहिए कि उसकी साख बनने लगी है। यह ठीक वैसे ही है जैसे 2013 के विधानसभा और 2014 के लोकसभा चुनावों में केन्द्र की मनमोहन सरकार के मरे पानी ने वसुन्धरा और मोदी को पल्लवित होने का मौका दिया। इसी तरह कल आए चुनाव परिणाम यही बता रहे हैं कि मोदी-वसुंधरा के उतरते पानी में कांग्रेस की जगह बनी है, ये हासिल कांग्रेस का नहीं है। जनता की समझ इतनी भर है कि वह बारी-बारी से कुआं-खाई को चुनती है, किसी विकल्पी सतह का निर्माण कर उसे चुनने की उकत आना बाकी है। अरविन्द केजरीवाल जैसे आते जरूर हैं लेकिन ऐसे आने वाले भी अपने राजनीतिक चाल-चलन को पुराने ढर्रे से अछूता कहां रख पाते हैं।

21 अगस्त, 2015

No comments: