Thursday, August 13, 2015

रेल फाटकों के समाधानों पर सकारात्मक होने की जरूरत

राजस्थान उच्च न्यायालय के हुड़े के चलते प्रदेश का शासन बीकानेर की सबसे बड़ी समस्या कोटगेट और सांखला रेल फाटकों पर सक्रिय हुआ है। समाधान ढूंढऩे के क्रम में इसी 10 अगस्त को मुख्य शासन सचिव के सान्निध्य में दूसरी बैठक हुई। इसमें जनता के प्रतिनिधि के रूप में पूर्व विधायक और रेल बाइपास बनाओ आन्दोलन के कर्णधार आरके दास गुप्ता शामिल हुए। सभी जानते हैं कि गुप्ता इस समस्या का एक मात्र समाधान रेल बाइपास को ही मानते हैं। इस समाधान में कम होती जनसुविधाएं और पन्द्रह सौ-दो हजार करोड़ के सार्वजनिक धन का खर्च नजरअन्दाज करें तो इससे बेहतर कोई समाधान नहीं है। लेकिन जब किसी समाधान पर उदारता से विचारें तो कई बातें देखनी समझनी होती हैऐसा तब और भी जरूरी है जब यातायात समस्या पर बाइपासी समाधान के उदाहरण देश में किसी भी नगर, महानगर और कस्बे में नहीं मिलते रेल फाटकों की समस्या के जो वैकल्पिक समाधान माने गये हैं उनमें रेल अण्डरब्रिज, रेल ओवरब्रिज और एलिवेटेड रोड मुख्य हैं, इनमें से किसी एक समाधान को उसकी तकनीकी, आर्थिक और व्यावहारिक अनुकूलताओं के आधार पर क्रियान्वित किया जाता है।
कोटगेट फाटक की समस्या का नगर विकास न्यास द्वारा सुझाया अण्डरब्रिज समाधान कई कारणों से व्यावहारिक नहीं माना गया कोटगेट और सांखला, दोनों ही रेल फाटकों की जमीनी हकीकत ऐसी है कि दोनों में से किसी भी क्रॉसिंग पर रेल ओवरब्रिज बन नहीं सकता ऐसे में व्यावहारिक समाधान एलिवेटेड रोड ही बचता है। रेल बाइपास, रेल अण्डरब्रिज और एलिवेटेड रोडइन तीनों समाधानों पर 'विनायक' ने अपने 17 जून, 2015 के अंक में सकारात्मक ढंग से चर्चा की। इसलिए विस्तार में जाने की जरूरत फिलहाल नहीं है।
इस समस्या पर आज बात करना इसलिए जरूरी लगा कि दैनिक भास्कर के आज के स्थानीय संस्करण में आरके दास गुप्ता के हवाले से इसके समाधान पर चर्चा के लिए जयपुर में हुई उक्त बैठक की जानकारी दी गई है। लगता है यह जानकारियां या तो आधी-अधूरी हैं या कुछ बातों को खोला नहीं गया है।
खबर के अनुसार गुप्ता के इस सवाल पर कि 'एलिवेटेड रोड बनने से क्या क्रॉसिंग हट जाएंगे।' समझा जाय तो यह सवाल बनता ही नहीं है क्योंकि एलिवेटेड रोड की अवधारणा तो यातायात का मार्ग बदलने भर से है। वहीं मण्डल रेल प्रबन्धक के इससे संबंधित उत्तर का उल्लेख ही अस्पष्ट है। रेलवे का कायदा है कि आरयूबी, आरओबी और एलिवेटेड रोड जैसे समाधानों में क्रॉसिंग क्षेत्र का निर्माण वह यदि अपने खर्चे पर करवाता है तो ऐसी स्थिति में वह उस क्रॉसिंग को हमेशा के लिए बन्द करके 'गेटमैन' जैसों का वेतन बचाता है। रेल नीति में यह भी स्पष्ट है कि यदि स्थानीय शासन क्रॉसिंग क्षेत्र का निर्माण खर्च वहन कर लेता है तो रेलवे एलिवेटेड रोड, अण्डरब्रिज और ओवरब्रिज वाले क्रॉसिंग को बन्द नहीं करेगी।
ऐसे में सांखला रेल फाटक के सन्दर्भ से ही बात की जानी चाहिए क्योंकि एलिवेटेड रोड इसी फाटक पर प्रस्तावित है। जब
 राज्य सरकार लगभग एक हजार मीटर की एलिवेटेड रोड के निर्माण का खर्च उठाती है तो वह क्रॉसिंग ऊपर के मात्र 10-12 मीटर के हिस्से का निर्माण खर्च भी स्वयं उठाकर रेलवे क्रॉसिंग पर बने फाटक के खुलने-बन्द करने के विकल्प को क्यों नहीं यथावत रहने देगी। दैनिक भास्कर की आज की खबर में दूसरा बड़ा सम्प्रेषणीय अभाव यह है कि इसकी हैडिंग ही यह लगाई गई है कि '....तो कोटगेट क्रॉसिंग के दोनों तरफ खड़ी होगी दीवार' जो पूरी तरह भ्रमित करने वाली है। जिस प्रस्तावित एलिवेटेड रोड के सन्दर्भ से यह खबर बनी है उसे कोटगेट फाटक से गुजरना ही नहीं है तो रेलवे इस फाटक पर दीवार क्यों बनाएगा और सांखला फाटक के ऊपर एलिवेटेड रोड के दस-बारह मीटर के निर्माण का खर्च भी यदि राज्य सरकार वहन कर लेगी तो रेलवे को भी फाटक को सुचारु रखना पड़ेगा।
उम्मीद की जाती है कि शहर की इस सबसे बड़ी समस्या के समाधान की बात सकारात्मक विचारना के साथ की जाय 'विनायक' को तब और भी खुशी होगी जब इस समस्या का समाधान रेल बाइपास जैसे अनोखे समाधान से हो, क्योंकि देश में ऐसे समाधान का यह एकमात्र उदाहरण होगा। लेकिन यह संभव भी तभी होगा जब राज्य सरकार पन्द्रह सौ से दो हजार करोड़ रुपये के इस समाधान पर तैयार हो जाए और इसी सरकार के रहते इसके निर्माण का कार्य शुरू हो सके क्योंकि जमीन अधिग्रहण की प्रक्रिया ही कम समय खाऊ नहीं होती।

13 अगस्त, 2015

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