Tuesday, July 28, 2015

कलाम का स्मरण

भारत के ग्यारहवें राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम का कल निधन हो गया। पत्रकार मित्र विनोद शर्मा ने उन्हें कुछ यूं याद किया—'राष्ट्रपति कलाम के सरलतम व्यक्तित्व ने इस उच्चतम भारतीय पद की गरिमा बढ़ाई।'
कल लगभग पूरे दिन ही गुरदासपुर की आतंकी घटना से मीडिया और जागरूक नागरिकों का सुकून शाम पांच बजे तक अटका रहा। दिन भर चिन्ता यह भी रही कि खालिस्तानी समर्थकों ने तो कहीं पुन: हाव खोल लिए हों, यद्यपि मारे गये तीनों आतंकवादियों की अंतिम पुष्टि होना बाकी है। ये यदि पाकिस्तान की शह पर कश्मीर के लिए लडऩे वाले थे तो भी चिन्ताजनक है ही कि घाटी से उतर जम्मू होते हुए, पंजाब तक पहुंचने का दुस्साहस ये हासिल करने लगे हैं। फिर भी पंजाब पुलिस के जवानों ने आतंकवादियों के पास एके सैंतालीस जैसे आधुनिक हथियारों के होते हुए सामान्य बन्दूकों से धर लिया, समय भले ही कुछ ज्यादा लगा हो।
शाम तक इस ऑपरेशन के पूरे होने के सुकूनी समाचार के साथ ही यह समाचार भी गया कि देश के पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम को आइआइएम शिलांग में भाषण देते समय दिल का दौरा पड़ा है। शाम की इस खबर से नहीं लगा था कि वे यूं छोड़कर चले जाएंगे। लेकिन खबरों के 'प्राइम टाइम' तक वह समाचार भी गया, जिसकी उडीक नहीं की थी।
विज्ञान पेशेवर कलाम का जीवन इसलिए भी प्रेरणादायक उल्लेखनीय है कि वे एक साधारण भारतीय परिवार में जन्में और जीवन पर्यन्त अपनी ड्यूटी के प्रति समर्पित-सजग रहे। अपने देश में ही मिसाइलें बनाने और परमाणु बम के दूसरे परीक्षण में उनके योगदान को भुलाया नहीं जा सकता।
राष्ट्रपति पद पर रहते हुए भी वे मानवीय-निष्ठ रहे। अपने से ठीक पहले के राष्ट्रपति केआर नारायण की ही तरह फांसी के फैसलों पर उपेक्षा बरतते रहे। यही नहीं, कलाम के ठीक बाद इस पद पर आईं प्रतिभा पाटिल ने भी फांसी के मामलों में अपने इन्हीं दो पूर्ववर्तियों का अनुसरण किया। वर्तमान राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी अपनी स्मृतियां कुछ इस तरह से सहेज रहे हैं कि शायद कार्यकाल पूरा करने तक देश के ऐसे राष्ट्रपति के रूप में याद किये जाएं जिन्होंने फांसी की सर्वाधिक माफियां लौटाईं।
कलाम ऐसे भारतीय भी थे जो विभिन्न धार्मिक धाराओं और परम्पराओं का केवल अन्तर्मन से सम्मान करते थे बल्कि उन सबके प्रति जिज्ञासु भाव भी रखते थे। शायद यही वजह है कि देश को परमाणु शक्ति के रूप में सुदृढ़ करने वाले कलाम व्यक्ति के स्तर पर हरेक जीवन को महत्त्वपूर्ण मानते थे।
इन दिनों जब फांसी को लेकर उसके पक्षकार और विरोधी इसलिए सक्रिय हैं कि इसी तीस जुलाई को 1993 के मुम्बई बम धमाकों के एक अपराधी याकूब मेमन को फांसी दी जानी है। जब मौत की सजा के विरोधी अपने शाश्वत तर्कों के साथ हमेशा की तरह सक्रिय हैं तब कुछ ऐसे पक्ष-विपक्ष भी हैं जो इस पूरे मामले को धर्म के चश्मे से देखने में भी गुरेज नहीं करते।
सोशल साइट्स की बात करें तो परसों देर रात तक जिन मुद्दों पर सबसे ज्यादा चर्चा हो रही थी उनमें फांसी और याकूब मेेमन की मौत की सजा ही मुख्य थे। कल दिन भर गुरदासपुर की आतंकी घटना की चिन्ता छायी रही। कल देर रात से इन सोशल साइट्स पर कलाम ही कलाम छाएं हैं, वे इसके लायक भी हैं।
उम्मीद की जानी चाहिए कि ऐसी ही चर्चाओं से हम लोकतांत्रिक देश के नागरिक होने की अपनी निष्ठा और मनुष्य होने के मूल्यों की अपनी समझ को विकसित करते जाएंगेइन सबके लिए प्रतिकूल होते जा रहे इस माहौल में भी।

28 जुलाई, 2015

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