Friday, July 17, 2015

पायलट, डूडी और गहलोत

धन के लालच ने समर्थ समाज से मूल्यों को तो बेदखल किया ही है, लिहाज को भी हिचकोले खाते देख सकते हैं। जिस किसी पेशे में पैसे की सीधी आमद हो या हासिल पद-प्रतिष्ठा के माध्यम से हो वैसों के यहां अधिकांशत: देखने को मिलेगा कि बजाय खुद बेहतर होने के, खुद से बेहतर को कमतर साबित करने या आंकने का प्रदर्शन होता है। उदाहरण देने की जरूरत नहीं, तटस्थ और अन्वेषी होकर नजर उठाएंगे तो भान हो जाएगा।
राजनीति अब मिशन नहीं रहा। इसे पेशे में तबदील हुए अरसा हो लिया है। यह एक ऐसा पेशा है जिसमें धन जिनका सीधे आते दीखता है उससे कई गुना अधिक किस तरह आता है बता नहीं सकते। चूंकि इस धंधे में दिखावा यह करना होता है कि सेवा कर रहे हैं, सेवा के अलावा अन्य कोई मकसद नहींऐसे में राजनेताई के इस धंधे में सफल उसी को होते देखा गया है जो केवल चतुर ही नहीं शातिर भी हो। साथ ही यह भी कि वह कितने लोगों को अपने पर एक साथ लट्टू किए रख सकता है। लट्टू करने के लिए व्यावहारिक और मिलनसार भी रहा जा सकता है और भ्रमित कर मीठी गोलियां देकर लम्बे समय तक काम चलाया जा सकता है। राजनीति में दोनों तरह के लोगों को सफल होते देखा सकता है।
आज यह सब इसलिए उगलने की जरूरत हुई कि कांग्रेस के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष कल पड़ोस के श्रीगंगानगर और हनुमानगढ़ जिलों के दौरे पर थे। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट और नेता प्रतिपक्ष रामेश्वर डूडी का उनके साथ होना जरूरी थाप्रदेश के दिग्गज और पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत भी वहां थेलेकिन सूरतगढ़ हवाई पट्टी में तैनात विशेष सुरक्षा दल (एसपीजी) ने अशोक गहलोत को यह कहकर हवाई पट्टी पर घुसने से रोक दिया कि दी गई सूची में उनका नाम नहीं है। इसमें एसपीजी का कोई दोष नहीं है, उन्हें प्रशिक्षण और हिदायतें ऐसी ही मिली होती हैं। यद्यपि बाद में सचिन ने एसपीजी से मगजमारी कर गहलोत को प्रवेश दिलवाया, सही इसे भी नहीं कहा जा सकता क्योंकि यह एसपीजी के कर्म में सीधा दखल था।
बात यहां पर समाप्त नहीं होती। प्रदेश पार्टी अध्यक्ष होने के नाते आयोजन के औपचारिक मेजबान सचिन पायलट थे। उनकी तरफ से जो सूची एसपीजी को दी गई उसमें अशोक गहलोत का नाम होने को मात्र चूक नहीं कहा जा सकता। इस तरह की करतूतें करने की छूट भीतर पैठी हीनता उन सबको देती है जिन्हें व्यक्तिविशेष से असुरक्षा का अंदेशा होता है।
केन्द्र की संप्रग सरकार की साख के खत्म होने, पार्टी शीर्ष पर प्रभावी नेता के होने और विपक्षी भाजपा में 'खिलाड़ी' नेता के धमकाने से पिछले विधानसभा चुनावों में प्रदेश में कांग्रेस पार्टी बुरी गत को प्राप्त हुई। इस लोकतांत्रिक देश में पार्टियों के सर्वसत्तावादियों को आलाकमान कहा जाने लगा है। इन आलाकमानों को अपनी कमियों के सबक दूसरों को पढ़ाने होते हैं। राजस्थान में यह सबक अशोक गहलोत को पढ़ाया गया और हार पर बिना किसी मूल्यांकन के पार्टी ने प्रदेश की कमान सचिन पायलट को सौंप दी। इसमें दो राय नहीं है कि कांग्रेस में गहलोत के बाद जो भी नेता हैं उनमें सर्वाधिक संजीदा और धीरज वाले सचिन ही हैं लेकिन बीते डेढ़ साल में अवाम पर प्रभाव छोडऩे वाली कूवत वे भी नहीं दिखा पाए। राजनेताई पेशे में ऐसी कूवत पहली जरूरत है। नेता प्रतिपक्ष रामेश्वर डूडी में तो ऐसे कोई गुण हैं भी नहीं, वे समुदायविशेष से ऊपर का अपने को मानते भी नहीं, इसलिए कोई प्रयास भी नहीं करते। राजस्थान विधानसभा में लगभग मार्जिन गत को हासिल कांग्रेस को जातीय मजबूरियों के चलते रामेश्वर डूडी को नेता प्रतिपक्ष बनाना पड़ा। कल के आयोजन में विश्लेषकों को लगा कि सचिन पायलट और रामेश्वर डूडी मिलकर भी अपने कद को गहलोत के बराबर सहज नहीं पा रहे थे, ये दोनों ऐसे सहमें थे कि गहलोत कहीं उन पर सवार हो जाएं। भविष्य में क्या होगा ये देखने के लिए अभी साढ़े तीन साल इंतजार करना होगा लेकिन पायलट डूडी ने कल के अपने व्यवहार से यह जाहिर तो कर ही दिया कि गहलोत के रहते इनकी हैसियत सुरक्षित नहीं है।

17 जुलाई, 2015

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