Friday, June 19, 2015

अधिनायकत्व और तानाशाही में अन्तर बताया जाने लगा

आजादी बाद की बड़ी घटनाओं में से एक आपातकाल की बरसी 25 जून को है, जिसकी व्यथा मीडिया में कुछ तो रस्म अदायगी भर के लिए और शोक के बहाने कुछ गंभीरता से अभिव्यक्त हो जाती है। कल इंडियन एक्सप्रेस ने भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी का साक्षात्कार प्रकाशित किया जिसमें उन्होंने कहा कि आपातकाल की तरह नागरिक अधिकारों को मुल्तवी करने की आशंका कायम है। उन्होंने कहा कि मौजूदा दौर में लोकतंत्र को दबाने वाली ताकतें सक्रिय हैं। कल से ही इसके बहाने चोर की दाढ़ी में तिनका ढूंढने की तर्ज पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की कार्यशैली को इस बयान के बहाने से समझा जाने लगा है।
पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में आने के बाद भाजपा तब भारी दबाव में दिखाई दी जब इसी सप्ताह आइपीएल के पूर्व कमिश्नर और खेलों के धंधेबाज ललित मोदी के पोत चौड़े आए। ललित मोदी आर्थिक अपराधों के चलते भारतीय न्याय व्यवस्था में आरोपी हैं, यदि आज यहां होते तो संभवत: वे जेल गए होते। इसी भय से वे इंग्लैण्ड में रह रहे हैं। भारत के विदेश मंत्रालय ने उनका पासपोर्ट स्थगित कर रखा है। बिना पासपोर्ट वे इंग्लैण्ड से कहीं -जा नहीं सकते। बीमार पत्नी का इलाज पुर्तगाल में चल रहा है। पिछले वर्ष ऑपरेशन होना था सो पति के हस्ताक्षर की औपचारिक जरूरत को पूरा करने उन्हें पुर्तगाल जाना था। भारत की विदेश मंत्री ने अपने मंत्रालय की व्यवस्था को ताक पर रख ब्रिटिश सरकार से इस पर छूट की आधिकारिक सिफारिश कर दी। उक्त खुलासे के साथ एक कबाड़ा और सामने गयाराजस्थान की मुख्यमंत्री ने लगभग तीन साल पहले इन्हीं ललित मोदी को ब्रिटेन में रहने देने की सिफारिश अपनी पूरी हैसियत जता कर की थी।
आपातकाल की बात के बीच इस प्रकरण का उल्लेख इसलिए जरूरी लगा कि पारदर्शिता की दुहाई देने वाले नरेन्द्र मोदी के प्रवक्ता आजकल न्यूज चैनलों पर इस शर्त पर ही आते हैं कि ललित मोदी प्रकरण पर बात नहीं होगी। भांडा फूटने के बाद एक दिन आए भी तो पार्टी का बचाव करना तो दूर वे अपने चेहरे को ही नहीं बचा पाए थे। दो दिन पहले ही ललित मोदी कांड पर भाजपा प्रवक्ता के तौर पर जीवीएल नरसिम्हाराव और विजय गोयल आए तो सही लेकिन जवाब देते घिघियाने लगे
कल एनडीटीवी इंडिया के शो 'प्राइम टाइम' में आपातकाल पर चर्चा होनी थी। भाजपा प्रवक्ता संबित पात्रा इसी शर्त के साथ आए कि ललित मोदी, सुषमा स्वराज और वसुंधरा राजे पर बात नहीं होगी, भई क्यों नहीं होगी? खरे हो तो क्यों मुंह छुपा रहे हो? खैर, इन चैनलों को चौबीस घण्टे चलाना होता है सो शर्त भी मानी। हां, एंकर रवीशकुमार ने अपने दर्शकों को भाजपा की शर्त से जरूर अवगत करवा दिया। आडवाणी की आशंका ऐसी ही कुछ करतूतों से निसरती है।
संबित पात्रा आपातकाल पर भी अपनी पार्टी के तथाकथित 'दिग्गजतम' आडवाणी के साक्षात्कार को परोट नहीं पाए। चर्चा में संबित तानाशाही के बरअक्स अधिनायकत्व की पैरवी करने लगे। लगता है उन्हें कोई भान ही नहीं है कि अधिनायकवाद और तानाशाही में कोई खास अन्तर नहीं है। जहां अधिनायकतंत्र का मतलब एक व्यक्ति या व्यक्ति समूह का स्वेच्छापूर्ण शासन है वहीं तानाशाही का मतलब है अधिनायकत्व या स्वेच्छाचारिता। इतना ही नहीं, वे सिंगापुर के अधिनायकवादी शासन को सराहने लगे। संवित एक तरफ तो आडवाणी की आशंका का संबंध राजग की वर्तमान सरकार और नरेन्द्र मोदी से होने को खारिज कर रहे थे, वहीं दूसरी ओर वे अधिनायकत्व की पैरवी भी कर रहे थे। ऐसी मानसिकता वाले लोगों के सत्ता में रहते उन्हें सावचेत रहना ज्यादा जरूरी है जो लोकतांत्रिक मूल्यों में विश्वास रखते हैं। क्योंकि इस बार तानाशाही आपातकाल की खाल में नहीं विकास की नई अवधारणा की खाल ओढ़े सकती है जिसमें सिंगापुर-सी चकाचौंध होगी।

19 जून, 2015

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