Tuesday, June 23, 2015

अतिक्रमणों को रोकना आखिर पड़ोसियों को ही होगा

लोकतंत्र के मानी हम भारतीयों ने अराजकता मान लिया और सार्वजनिक यानी सरकारी संपत्ति उसी की जिसका बस चले। यही कारण है कि सरकारी कामों के टेण्डर बाजार से भी ऊंची दरों पर पारित होते हैं और काम जितना हो सके घटिया।
जरूरतमंद झुग्गी डालकर कहीं बसेरा करता है तो समझ में आता हैवह आसमान में जाकर तो बस नहीं सकता। लेकिन जिनके पास खुद की जमीन हो या समर्थ है वह भी जब अपनी नीयत खराब करता है तो कारण लालच ही हो सकता है। ऐसा अधिकांशत: वही करते हैं जिन्हें या तो पूर्ण भरोसा होता है कि कोई चुनौती नहीं मिलेगी, कोई देगा तो किसी किसी सत्ता रूप के सहारे से उसे संभाल लेंगे।
बीकानेर में पुराने शहर की बसावट यूं भी बेतरतीब और संकरी है। ऊपर से हर कोई सड़क की ओर छह इंच से लेकर छह-आठ फीट तक बढऩे को होता है। खास कर नया मकान बनाने वाला छह-बारह इंच सड़क की ओर बढ़े तो उसे लगता है कमजोर समझ लिया जायेगा। ऐसे प्रत्येक की पीठ पर किसी--किसी छोटे-बड़े नेता का हाथ होता है। पुराने शहर की ही क्यों आधुनिक आयोजना से बसे रानी बाजार क्षेत्र का चौपड़ा कटला, शर्मा कॉलोनी और ब्रह्मचर्य आश्रम वाली सड़क के बाशिन्दों को देखें तो मध्यम वर्ग, उच्च मध्यम और अच्छे खासे धनाढ्य तक इतने बेशर्म हो लिए हैं कि यूं लगेगा जैसे किसी कब्जा कॉलोनी में लिए होंं। यही क्यों, नई बसी न्यास-आवासन मण्डल की कॉलोनियों में बाहर आए गैराज 'गूमड़ों' की तरह, वहीं मन भाए जैसे बनाए रैम्प मरे राक्षस की जीभ की तरह सड़क पर पसरे मिलेंगे। फुलवारी के नाम पर कई-कई फीट की तारबंदी भी अब आम हो गई है।
कई लोग पड़ोसियों की ऐसी हरकतों को नाजायज मानते हैं या परेशान भी होते हैं। लेकिन लिहाज करके या सुनवाई की उम्मीद होने की आशंका में मन मसोस कर रह जाते हैं। कुछ ऐसे भी होते हैं जो खुद वैसा ही करके संतोष धारते हैं। ऐसे में वे ये नहीं सोचते कि आखिर इसकी हद कहां जाकर होगी।
कुछ जो मन मार कर रह जाते हैं, उनके लिए सरकार ने 'सुगम पोर्टल' बनाया हैजहां ऐसी करतूतों की आप नामी-बेनामी शिकायतें दर्ज करवा सकते हैं। शासन में ऐसा तंत्र भी विकसित किया गया है कि ऐसी शिकायतों का निबटारा किया जाए। इसी के तहत शहरी अतिक्रमणों की बहुत सारी शिकायतें पहुंची। प्रशासन हरकत में आया और इसी सत्तरह जून को नगर निगम का अमला आधी-अधूरी तैयारी और अन्य महकमों से बिना पूरे समन्वय के सिटी कोतवाली क्षेत्र जा पहुंचा और कार्यवाही शुरू की। आश्चर्य की बात तो यह हुई कि इस तरह के कब्जे वाले इतने हो लिए हैं कि गिरोह के रूप में काउंटर करने लग गये। केवल काउंटर करने बल्कि सरकारी अमले को भी खदेडऩे में सफल हो लिए हैं।
सत्तरह जून की इस कार्रवाई पर लगे झपीड़ के बाद उन्नीस जून से शुरू होने वाला अतिक्रमण हटाओ अभियान सकपका गया। अतिक्रमण हटाने की कुछ रस्म अदायगियां जरूर हो रही हैं लेकिन मकसद पूरा कर पाएंगे इस पर संशय इसलिए हैं कि जिला कलक्टर यहां हैं, नगर निगम के सीइओ। न्यास सचिव सि$र्फ समय काट रहे हैं तो पुलिस अपने महकमे की इंटर रेंज खेलकूद में व्यस्त है।
इससे होगा यह कि जिनको सुगम से कुछ उम्मीद बनी थी उनकी उम्मीद दम तोड़ देगी। हो सकता है वे हताश होकर अपनी शिकायतों के पीछे लगना छोड़ दे।
इस सब में सबसे ज्यादा नंगे राजनेता हो रहे हैं। नेताई की ठुंगाई करने वाले ऐसे नेता लोगों के उकसावे में या उनकी अनदेखी में ही ये अतिक्रमण होते हैं। ये लोग तब नहीं बोलते जब अतिक्रमण होते हैं, लेकिन प्रशासन हटाने आता है तो हाथ चौड़े कर उसे रोकने को अतिक्रमणकारियों के साथ हो लेते हैं। नहीं जानते जनता ऐसे नेताओं को भाव ही क्यों देती है? सत्तरह को सिटी कोटवाली क्षेत्र में कांग्रेस और भाजपा के नेता पहुंच गए थे। कहा जाता है कि कांग्रेस में ठीक-ठाक हैसियत वाले नेता खुद ही वहां कब्जे किए जमे हैं। इस तरह ही तो प्रशासन निष्क्रिय होता जा रहा है। दो-तीन साल के लिए आया अफसर भी सोचता है जैसे-तैसे टाइमपास कर लो। फूटे भाग शहर के बाशिन्दों के। और हम बाशिन्दे हैं कि अपना ही फोडऩे में लगे रहते हैं। नहीं तो होना यह चाहिए कि मुहल्ले में जो कोई भी ऐसी हरकत की पहल करे उसे वहीं सामूहिक विरोध से रोका जाय, फिर चाहे कोई सूरमा ही क्यों हो।

23 जून, 2015

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