Wednesday, May 6, 2015

दाउद के बहाने मोदी की बात

मुम्बई में 1993 के धमाकों का मुख्य आरोपी दाउद इब्राहिम मीडिया के लिए सुर्खियों का स्रोत हमेशा रहा है। इन धमाकों से पहले तक दाउद की करतूतें मुम्बई से संचालित होती थी। यह कहने की कोई आवश्यकता नहीं कि इसके क्रिया कलापों में कानूनी शायद ही कोई होते हों—हवाला, फिरौतियां, तस्करी, डराना-धमकाना, मार देना आदि-आदि ही उसकी आजीविका थी और है। इस सब की गुंजाइश वह भारत की कानून और व्यवस्था के अन्दर ही न केवल निकालता रहा बल्कि उस समय भी दाउद का करोड़ों का अवैध टर्नओवर था। यानी इस देश में कोई धार ले कि बिना नियम-कायदों को माने सब कुछ कर गुजरना है, वह कर गुजरता है। दाउद जैसों के कमोबेश काम समयानुसार परिवर्तनों के साथ आज भी हो ही रहे हैं।
धमाकों की उस भीषण घटना के बाद दाउद को लगा होगा कि उसकी यह करतूत उस श्रेणी की नहीं है जिससे कानूनी पकड़ से उसे बचाने वाले सरकारी कारकुन और विधि सलाहकार अब उसे बचा सकें। वह सपरिवार देश छोड़ भागा, जो उसके लिए बहुत मुश्किल नहीं था। ऐसी पोल का दूसरा देश इस देश का सहोदर पाकिस्तान ही हो सकता था। पाकिस्तान में उसके लिए धर्म-जात की अनुकूलताएं भी थी। तब से अब तक वह वहीं रह कर वैसा ही धंधा-पाणी कर रहा है। बल्कि उसका धंधा भारत में भी बदस्तूर जारी है।
साठ वर्ष का होने को आया दाउद अपने गुर्गों में भाई के नाम से जाना जाता है, इस भावनात्मक सम्बोधन में ही उसके लिए कुछ भी कर गुजरने की भावना निहित है। कहते हैं उसके ठाट-बाट और ऐयाशियां किसी कथानकीय रईस से कम नहीं है।
आज इस कथा को बांचने का मकसद यह है कि प्रधानमंत्री मोदी ने पिछले चुनावों में जिन-जिन शातिराना जुमलों से देश के आम-आवाम को बरगलाया उसमें एक यह भी था कि 1993 के मुम्बई बम धमाके का गुनहगार दाउद पड़ोसी पाकिस्तान के कराची में बैठा है और भारत की सरकार उसे आज तक पकड़ कर न ला पाई। मोदी ने आश्वस्त किया कि वे प्रधानमंत्री बने तो हर हाल में दाउद को खींच लाएंगे। ऐसा कहते मोदी यह भूल गये थे कि इन 20 वर्षों में 6 वर्ष उन्हीं की पार्टी की सरकार रही है। हो सकता है उन्होंने अटल बिहारी वाजपेयी को भी नाकारा प्रधानमंत्री मान कर ऐसा कहा हो।
अब जब मोदी को पद संभाले एक वर्ष होने को है, मोदी द्वारा किए वादे एक-एक करके जुमलों में तबदील हो रहे हैं। काले धन को लौटा लाना और प्रत्येक भारतीय के हिस्से पन्द्रह-पन्द्रह लाख दे देना, पाकिस्तान और चीन को छप्पन इंच के सीने की धौंस, आम जरूरत की जिन्सों की महंगाई कम करना, किसान को बदहाली से निकालना व स्त्रियों को उन पर होने वाले जुल्मों से छुटकारा दिलाने जैसे वादे न केवल जुमलों में तबदील हो लिए हैं बल्कि इन सबकी व्यथाएं बजाय कम होने के लगातार बढ़ ही रही हैं। 9/11 मुम्बई हमले के दोषी अजमल कसाब और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को बिरयानी खिलाने की बात पर 'चिलगम' मचा देने वाले मोदी खुद पद ग्रहण करने के दूसरे दिन ही नवाज को बिरयानी खिलाने से नहीं चूके जबकि अजमल कसाब को बिरयानी खिलाने की बात झूठी साबित हुई है।
प्रधानमंत्री मोदी के गृह राज्य मंत्री ने संसद को बताया कि उन्हें पता ही नहीं कि दाउद इब्राहिम है कहां? कल आए इस बयान के बाद सरकार की लगातार थू-थू हो रही है। अब शायद मोदी को भी समझ में आने लगा होगा कि गुजरात को हांकना और देश को चलाने में बहुत फर्क है। देखने वाली बात यही है कि देश को चलाने में लगभग अनाड़ी साबित होते मोदी अपनी हेकड़ी में इसे स्वीकार भी करेंगे कि नहीं। हो सकता है भाजपा के जानने समझने वाले लोग मुंह खोलने लगें यदि वे और अनुकूलता का इंतजार कर रहे हैं तो देश के साथ अच्छा नहीं कर रहे। भाजपा में इस पद के कोई भी दावेदार रहे नेता, मोदी से अच्छे प्रधानमंत्री साबित होंगे, अब इस में दो राय नहीं है। अपने को असली राष्ट्रवादी कहने वाली यह पार्टी और उसकी पितृसंस्था आरएसएस की समझ में नहीं आ रहा लगता कि इन परिस्थितियों में वे क्या करें। चमगूंगे हुए मोदी को अपनी दबी इच्छाएं पूरी करने के अलावा कुछ सूझ नहीं रहा है। दुनिया घूमना और अच्छा और हर बार नये पहनने की उनकी भोगेच्छाएं—इस देश को कैसे दिन दिखलाएगी, कह नहीं सकते।
6 मई, 2015

No comments: