Monday, May 18, 2015

पुलिस और पत्रकार

शहर में पहचान बना चुके एक पत्रकार ने उलाहने के अंदाज में एक बार बताया कि परिचित हमारा उपयोग किस तरह करते हैंऐसे परिचित बिना हेलमेट रोक लिए जाने पर तुरंत मोबाइल पर कॉल कर लेते हैं और धड़ाम से इसकी सूचना देते हुए पुलिसकर्मी को मोबाइल पकड़ा देते हैं।
इससे अलग पांचे' साल पुराना चश्मदीदी उदाहरण यह भी है कि एक व्यस्त चौराहे पर पुलिस की गाड़ी रुकी, पांच-छह कर्मी उतरे ही थे कि उन्हें बिना हेलमेट के स्कूटर चालक आता दीख गया, रोकने पर चालक ने विनम्रता से गलती स्वीकारते हुए जुर्माना भरने की पेशकश की। तभी पुलिसकर्मी ने पूछ लियालाइसेंस है? चालक ने जवाब दिया, आज तो नहीं है। इतने में ही पुलिसकर्मी की नजर आगे की नम्बर प्लेट पर पड़ी, देखा कि रंगपेंट-ब्रश से लिखे नम्बरों का अंक उखड़ा है। इन तीनों कमियों का हिसाब बना कर तब कुल साढ़े आठ सौ की मांग रखी। स्कूटर सवार रुपया निकाल कर देने लगा, इतने में ही पुलिस वाला बोला— 'थे जावो यार' अपरिचय होने पर भी यह वाक्य सुन स्कूटर सवार ने पूछ लियाक्यों, क्या हुआ? पुलिसकर्मी ने बताया कि यहां तो बिना हेलमेट हर दुपहिया सवार एसपी, कलक्टर, कल्लाजी, नन्दूमहाराज से कम पर बात नहीं करता। इतना कह कर पुलिसकर्मी ने दुबारा आग्रहपूर्वक उसे रवाना कर दिया।
इसी गुरुवार को पंचशती चौराहे पर प्रेस फोटोग्राफर को एक चौपहिये वाहन के चालक ने लापरवाही से गाड़ी चलाते हुए गिरा गया। फोटोग्राफर ने हेलमेट नहीं पहना हुआ था, गिरे और थोड़ी देर में अचेतन अवस्था में पहुंच गए। तत्काल अस्पताल की सेवाएं उन्हें उपलब्ध हो गईं, अब वे कुछ सहज हैं। थोड़ी गहरी चोट होती या तत्काल अस्पताल नहीं पहुंचाया जाता तो कमोबेश बुरा भी घटित हो सकता था।
इसी शनिवार को एक वाकिआ और हुआ। बिना हेलमेट पहने जा रहे एक पत्रकार को पुलिसकर्मियों द्वारा जब रोका गया तो कुछ कहा-सुनी हो गई। असहज करने वाला यह वाकिआ पत्रकारों को नागवार गुजरा। हो सकता है पुलिसकर्मियों ने कुछ ज्यादा ही अभद्रता की हो। पुलिस आला अधिकारियों ने पत्रकारों के रोष को मान देते हुए सम्बन्धित थानाधिकारी को वहां से हटाया और तीन पुलिसकर्मियों को लाइन हाजिर कर दिया। माना जाता है कि ऐसा होना पुलिसकर्मियों के लिए सजा और चेतावनी, दोनों ही होता है।
इस अवसर पर एक और घटना का जिक्र किया जाना जरूरी है। कुछ वर्ष पूर्व ही तोलियासर भैरूंजी तिराहे पर एक महिला पुलिसकर्मी ने गुस्से में डंडे से ऑटोरिक्शा का शीशा तोड़ दिया। तब इन ऑटोरिक्शाओं की यूनियन ने पुलिसकर्मी की उस करतूत का पुरजोर विरोध किया। आला अधिकारियों ने महिला पुलिसकर्मी को निर्देश दिए कि वह उस ऑटो चालक से माफी मांगे, ऐसा हुआ भी। यह नौबत तब आई जबकि वह ऑटोरिक्शा चालक 'नो पार्किंग' क्षेत्र से बार-बार कहने पर भी गाड़ी नहीं हटा रहा था।
उक्त सभी घटनाएं पुलिसकर्मियों से संबंधित तो है ही, कुछ पत्रकारों से भी सीधे संबंधित हैं। वैसे ये सभी घटनाएं चूंकि समाज से संबंधित हैइसलिए अपरोक्ष रूप से इनका संबंध पत्रकारिता के पेशे से हो ही जाता है।
पुलिस महकमें की स्थिति से सभी वाकिफ हैं, उसकी जिम्मेदारी जैसे-तैसे कानून व्यवस्था को सजाए रखना होता है। ऐसे में प्रत्येक ऊपर का अधिकारी जरूरत होने पर अपने-से नीचे वाले अधिकारी-कर्मी के आत्म सम्मान को ताक पर टांग देता है। बाजदफा यह भी होता है कि पुलिसकर्मी-अधिकारी सही भी होता है। लेकिन उसे उस सही को भी गलत स्वीकार करना पड़ता है। हो सकता है ऐसे में कुंठित पुलिस कर्मी कानून को हाथ में लेने को मजबूर हो जाते होंगे। यह भी कि ये पुलिसकर्मी भी होते मनुष्य ही हैं सो प्रचलित सामान्य मानवीय कमजोरियों के वशीभूत भी हो ही जाते होंगे।
ऐसे में पत्रकारों से उम्मीद यह की जाती है कि वे ऐसे तमाम अवसरों की रिपोर्टिंग में भी संजीदगी दिखाएं। जिस तरह वे हेलमेट विहीन पुलिकर्मियों की फोटुएं प्रकाशित करते हैं वैसे कभी हेलमेट विहीन 'प्रेस' लिखे दुपहिया वाहन चालक या 'प्रेस' लिखे बिना बेल्ट लगाए चौपहिया वाहन चालकों के भी फोटो दिखाएं और छापें। यह छूट हरगिज नहीं लें कि शहर में इसकी जरूरत नहीं है। शहर के प्रतिवर्ष के ही कई उदाहरण होंगे जिनमें बिना हेलमेट वाले दुपहिया चालक सिर की चोट के चलते या तो खत्म हो जाते हैं या किसी स्थाई व्याधि के शिकार हो जाते हैं। शहर में बेल्ट और हेलमेट लगाने को जो गैर जरूरी समझते हैं, वह या तो न्यायालय में इस प्रावधान को चुनौती दें या अलग बहस चलाएं। लेकिन जब तक प्रावधान है तब तक उन पर अमल करने की जिम्मेदारी प्रत्येक नागरिक की है और अमल करवाने की जिनकी जिम्मेदारी है, उनमें पत्रकार भी शामिल हैं। अन्त में एक बात और कि हमें यह अहसास भी होना चाहिए कि जिस तरह आत्मसम्मान पत्रकारों का होता है कुछ वैसा ही आत्मसम्मान अन्य का भी हो सकता है। चूंकि पत्रकार ने समाज की निगरानी का पेशा चुना है इसलिए इस अहसास की जिम्मेदारी भी उनकी कुछ ज्यादा बनती है।

18 मई, 2015

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