Wednesday, May 13, 2015

नरेन्द्र मोदी की चीन यात्रा

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी कल से तीन दिन की यात्रा पर चीन जा रहे हैं। पद संभालने के बाद से ही लगता है मोदी खुद ही अश्वमेध पर सवार हैं। शायद वे अनभिज्ञ हैं कि इस वैदिक-आकांक्षा में सर्व विजय की इच्छा रखने वाला राजा स्वयं घोड़े पर सवार नहीं होता। खैर, चीन जाने का मोदी का मकसद पूरा होगा कि नहीं, ये तो समय बताएगा। क्योंकि चीन के शासकों के बारे में यह धारणा आम है कि वे तेल लगाए पहलवान होते हैं इसलिए दूसरे को पकड़ की गुंजाइश नहीं देते। माक्र्सवादी चीन अब शुद्ध धंधेबाज चीन हो गया है और वे सभी हथकण्डे अपनाने में संकोच नहीं करता जिससे दो पैसों का भी लाभ होता हो।
मोदी हालांकि कुछ वैसी ही मंशा रखने वाले केवल राजनेता हैं बल्कि वे उस गुजरात से भी आते हैं, व्यापार जिनके खून में रचा-बसा है। मोदी की कार्यशैली बताती है कि चीन ही की तरह मोदी भी नैतिकता, मानवीय मूल्यों और सच को खूंटी टांगे रखते हैं और दिखावे की जरूरत पर उन्हें मालीपानों के रूप में काम ले लेते हैं। हो सकता है चीन की यह यात्रा इस मानी में दिलचस्प हो कि कौन किसे बनाने में सफल होता है या कुश्ती बराबर पर छूटकर बैक टू पैविलियन होते हैं।  पिछले लगभग पचीस वर्षों से देश में जारी नई आर्थिक नीतियों के अनुसरण में चीन आज भारतीय बाजार में लगातार अपना कब्जा बढ़ा रहा है। यहां तक जिन लोकप्रिय ब्राण्डों की भारतीय बाजारों में खपत अच्छी खासी थी, वीआईपी सूटकेस और लिबर्टी जूते-चप्पल जैसे उत्पाद भी अब चीन से बन कर आने लगे हैं। ऐसे उत्पादों के कारखाने मालिक लोग इस तर्क पर बन्द कर रहे हैं कि जब कम लागत में, वैसी ही या उससे अच्छी क्वालिटी के उत्पाद चीनी बनाकर दे रहा है तो यहां कारखानों के प्रबन्धन का तनाव अलग से क्यों झेलें? इस तरह भारतीय श्रमिकों के लिए रोजगार के अवसर लगातार खत्म हो रहे हैं। वहीं रोजमर्रा जरूरत की हर छिटपुट उपभोक्ता वस्तुएं यहां तक कि तीज-त्योहारों में काम आने वाली चीजें यथा दीपावली के दीए, सजावटी लाइटें, होली के रंग-पिचकारी, डोर-पतंग आदि-आदि के अधिकांश स्थानीय बाजार पर चीनी उत्पाद लगातार बढ़त बना रहे हैं। ये सब उत्पाद ऐसे हैं जो एक तरह से स्थानीय कुटीर उद्योगों के आधार हैं। ऐसे में 'मेक इन इण्डिया' का नारा देने वाले मोदी अपनी इस चीन यात्रा से 'उलटे बांस बरेली को' जैसी उक्ति को क्या संभव कर पाएंगे? लगता तो नहीं है।
वैसे मोदी रंग में रंगी अबकी भाजपा अपने सभी दावे, नारे और लेबलों को धुंधला करने पर तुली है। कश्मीर, राम मन्दिर, धर्मान्तरण जैसे मुद्दों पर पार्टी का रवैया ढुलमुल होना देश और मानवीय हित में है। लेकिन चीन से संबंध बनाने के नाम पर 1959 से देश में शरण पाए दलाईलामा को नजरअंदाज करना भाजपाइयों की 'संस्कृति' को उघाड़ा ही कर रहा है। अब से पहले देश की सरकारें दलाईलामा पर चीन के अनमने होने की परवाह नहीं करती थी। जबकि भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की दो मई को दलाईलामा से तय भेंट को इसलिए रद्द किया गया कि इस भेंट की छाया मोदी की चीन यात्रा पर पड़ सकती है। ऐसे कदम भाजपा की किस संस्कृति को जाहिर करतें हैं?
जो भी होना है वह सब समय के गर्भ में है, यह भी कि मोदी अपनी ऐसी सभी कवायदों से देश और आम-अवाम को क्या हासिल कराते हैं। लेकिन यह सिद्ध है कि साधन यदि शुद्ध नहीं है तो प्राप्त साध्य शुद्ध नहीं होगा। अश्वमेध पर सवार को यह भी मालूम होना चाहिए कि अन्त में जब हवन होगा उसमें आहुति उसी अश्वी की चर्बी की लगती है।

13 मई, 2015

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