Monday, April 6, 2015

बीकानेर के असल मुद्दों पर उद्वेलन जरूरी

यह असमंजस शायद बना ही रहेगा कि शहर का राजनेता और बौद्धिकवर्ग यहां की जरूरतों और समस्याओं की उठापटक किन्हीं तय प्राथमिकताओं के आधार पर करते हैं या किसी सनक में। हो यह भी सकता है कि इन मुद्दों को अपनी सुविधा या स्वार्थ के अनुसार खड़ा किया जाता हो। ऐसा मानने में कोई अतिशयोक्ति इसलिए नहीं है कि शहर के प्रभावी राजनेताओं पर ऐसे आरोप जब तब लगते रहे हैं और इनका खण्डन तो दूर कभी सफाई देना भी ये जरूरी नहीं समझते।
फिलहाल जिले का बड़ा मुद्दा बारिश, तूफान और ओलों से हुए फसलों के नुकसान का है। किसानों को समय पर उचित मुआवजा कैसे मिले, प्राथमिकता से बात फिलहाल इस पर होनी चाहिए। शहर की बात करें तो बड़ी समस्या कोटगेट और सांखला रेल फाटकों की है, जिसके किसी एक समाधान पर एकराय होने और गैर राजनीतिक तौर पर व्यवस्थित अभियान की जरूरत है ताकि राज्य सरकार उसे अमलीजामा पहना कर काम शीघ्र शुरू करवा सके।
लेकिन हो क्या रहा हैये लोग केन्द्रीय विश्वविद्यालय की बात पर समय जाया कर रहे हैं। सामान्य केन्द्रीय विश्वविद्यालय प्रो. विजयशंकर व्यास कमेटी की बीकानेर में खोलने की अनुशंसा को दरकिनार कर कांग्रेस की प्रदेश सरकार ने इसे किसनगढ़ में खुलवा दिया। भाजपा की सरकार में जब केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय की घोषणा हुई तो बजाय बीकानेर के कृषि विश्वविद्यालय को दरजा दिलवाने के मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे इसके लिए अपने चुनावी क्षेत्र में सर्वे करवा रही हैं। इसे गलत इसलिए नहीं कहा जा सकता कि बीकानेर कृषि विश्वविद्यालय का आधारभूत ढांचा लगभग पूर्ण विकसित है। हां, कोई रिसर्च आदि का काम विशेष नहीं हो रहा है तो शुद्ध राजनीतिक नियुक्तियों पर आए कुलपतियों से जवाब पूछा जाना चाहिए। वसुंधरा राजे यदि इस हेतु अन्यत्र प्रयास कर रही हैं तो इसमें गलत इसलिए नहीं कि इस केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय को विकसित करने का बजट जब केन्द्र सरकार दे ही रही है तो ठीक बीकानेर के उलट दिशा में ही खोला जाना प्रदेश के हित में होगा। ऐसे में वसुंधरा खुद के और अपने बेटे के चुनावी क्षेत्रों में खुलवाने का मन बना रही हैं तो भला गलत क्या है? बीकानेर वाले क्या यह चाहते हैं कि अन्य जगह से चुने जनप्रतिनिधि भी बीकानेर के जनप्रतिनिधियों जैसे ही निकलें जो किसी काम-काज के नहीं। आखिर वसुंधरा राजे और दुष्यन्तसिंह को वहां की जनता ने वोट किन्हीं उम्मीदों से ही दिया होगा।
दूसरा मुद्दा, जिसे कांग्रेस लपके हुए है, तकनीकी विश्वविद्यालय की मांग का है। इस पर वे केवल शहर बन्द करवा चुके हैं बल्कि बीडी कल्ला के कल के बीकानेर प्रवास पर शहर कांग्रेस ने बैठक करके इस मांग के आंदोलन को संभाग स्तर तक फैलाने की घोषणा कर दी है। लोक में एक कहावत प्रचलित हैपहला रहता यूं तो तबला जाता क्यूं। ये कांग्रेसी और खासतौर से प्रदेश स्तरीय नेता बीडी कल्ला अपनी सरकार के समय क्या कर रहे थे? क्यों नहीं अध्यादेश को विधेयक के रूप में पारित करवाने को प्रयासरत दिखे। ऐसा कोई प्रयासविशेष किया हो तो खोलकर बताएं। अब जब दूसरी सरकार गई है तो वह भी राजनीति ही करेगीवह अधूरे काम (अध्यादेश) की पूरी क्रेडिट कांग्रेस को कैसे लेने देगी। भाजपा सरकार को तकनीकी विश्वविद्यालय बीकानेर में खोलना ही होगा तो कांग्रेसी घोषणा को पहले पूरी तरह धुलने देगी। फिर नये सिरे से घोषणा कर पूरी क्रेडिट खुद के खाते में डलवायेगी।
इसलिए कांग्रेसियों को चाहिए कि मुद्दा तो यह खड़ा रखें लेकिन अपनी ऊर्जा उन्हें बीकानेर के तीनों रेल फाटकों की समस्या का समाधान निकालने में लगानी चाहिए। सांखला और कोटगेट फाटकों के अलावा रानी बाजार के बन्द फाटक पर अण्डरब्रिज बनवाने की मांग वहां के बाशिन्दे कर रहे हैं। यह समाधान मुश्किल इसलिए नहीं है कि यहां रेलवे लाइन पहले से पर्याप्त ऊंचाई पर है इसलिए इस अण्डरब्रिज के लिए रकम कम ही लगनी है। शासन-प्रशासन चाहे नहीं चाहे शहर के दोनों विधायक चाहें तो यह कार्य त्वरित हो सकता है।
रही बात कोटगेट और सांखला रेल फाटकों की तो पिछले सप्ताह ही 'विनायक' ने लगातार तीन दिन तक इसके समाधानों पर विस्तार से बात की है। कांग्रेस सचमुच शहर के लिए कुछ करना चाहती हो तो इन में से किसी एक पर एकराय बना कर बड़ा आन्दोलन खड़ा करे। तकनीकी विश्वविद्यालय को नाक का सवाल बनाने की जरूरत तो अब जिले के चार भाजपाई विधायकों के लिए होनी चाहिए। यदि वे ऐसा नहीं करते हैं तो उन्हें जनप्रतिनिधि कहलाने का हक ही नहीं। बीकानेर के तकनीकी विश्वविद्यालय का मामला कोई केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय जैसा तो है नहीं कि मुख्यमंत्री के इलाके से छीनकर लाना हो।

6 अप्रेल, 2015

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