Thursday, April 16, 2015

राहुल का कल्पवास से लौटना और अश्वमेध पर ही सवार मोदी

कुछ दिनों पहले कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने व्यक्तिगत बातचीत में पार्टी के हालात पर स्वीकारा कि मोदी का रंग उतरे बिना कांग्रेस शायद ही कुछ कर पाये। इसमें उनका यह अपरोक्ष स्वीकृति भी थी कि राहुल गांधी से कुछ उम्मीदें नहीं हैं। मोदी को प्रधानमंत्री बने एक साल होने को है, जनता की उम्मीदों के गुब्बारे को फुलाते उन्हें पूरा डेढ़ वर्ष हो जायेगा। यह गुब्बारा अब बजाय अपना आयतन बढ़ाने के, घटाने लगा है। जनता की उम्मीदें टूटती लग रही हैं। मोदी जब से आए हैं, तब से प्रचारित यही है कि वे बजाय जनता को दिए सपनों को पूरा करने के, अपने मुफलिसी के दिनों की लालसाओं को पूरा करने और ऐसी हैसियत को हासिल करने में जिनका सहयोग रहा उनका चुकारा करने में लगे हैं। मोदी कभी कहते थे कि मुझे कभी कुछ महंगा बापरने की इच्छा नहीं हुई। लेकिन प्रधानमंत्री बनने के बाद लगता है सस्ते जैसे शब्दों से उन्हें वितृष्णा हो गई है। महंगे से महंगा पहनना और सरकारी वायुयान को अश्वमेध का घोड़ा समझना उनका शगल हो गया है।
प्रधानमंत्री मोदी अपने भू-अधिग्रहण अध्यादेश को कानून बनाने पर जिस तरह कायम हैं, वह उनकी दृढ़ इच्छा-शक्ति में नहीं, अडिय़लपने में आता है। मोदी अपने को शत-प्रतिशत सही भी मानते हैं तो उन्हें यह खयाल तो रखना ही होगा कि वे लोकतांत्रिक देश के मुखिया हैं। ऐसे में वे अपने को सही मानते हैं तो भी दूसरों की बातों का मान भी रखना होता है।
केन्द्र की भाजपा सरकार ने लोकसभा चुनावों में जनता की आकांक्षाओं की लीक इतनी लम्बी खींच दी थी कि मानों उन्हें इस पर खरा उतरने को कुछ नहीं करना होगा। मोदी जब आश्वासन-उम्मीदें बांट रहे थे तब ही लग रहा था कि वे इतनी उम्मीदों को इस व्यवस्था में भला कैसे पूरा कर पाएंगे। खुद मोदी जिस व्यवस्था से आए धन से अपना चुनाव अभियान चला रहे थे उसे समाप्त करना उनकी मंशा में था और ही मन:स्थितिक-बूते में।
संप्रंग-दो से धाई-धापी जनता ने जिस तरह मोदी को चुना, ठीक उसी तरह वह मोदी से भी धाप सकती है। मनमोहनसिंह ने जनता को कोई बड़ी उम्मीदें दी भी नहीं, लेकिन मोदी ने जनता को उम्मीदों का जो पिटारा पकड़वाया, उस के खोखलेपन का आभास जनता को होने लगा है। भू-अधिग्रहण बिल पर मोदी का इस तरह अडऩा उनकी बड़ी भूल में सकता है।
खुद मोदी उधर अश्वमेध पर ही सवार विश्व विजय पर हैं। इधर पप्पू की पहचान बना चुके कांग्रेस उपाध्यक्ष लगभग दो माह के अज्ञातवास से लौट रहे हैं, वे कहांक्या कर रहे थे, यह सब रहस्य है। माना तो यह जा रहा है कि राहुल बजाय माघ मास के, चैत्र का कल्पवास करके लौट रहे हैं, इस वास से उन्होंने कुछ हासिल किया है या नहीं, 19 को आयोजित किसान रैली में पता लग जाना है। वैसे कांग्रेसियों ने मुनादी करवाई है कि किसान बजाय परम्परागत सिर ढकने की पोशाकों के, टोपियां लगा कर ही आएं। सही भी है राज कोई भी करे टोपी तो जनता को ही पहनाई जानी है। इस कांग्रेसी रैली की सफलता की गुंजाइश खुद मोदी की कार्य प्रद्धति और जीवनशैली ने ही दी है। इस तरह स्थानीय कांग्रेसी नेता के जिस हवाले आज की बात शुरू की वह भी सिद्ध होती लग रही है। यानी राहुल जैसे-जो भी हैं, जनता की मजबूरी है कि मोदी से निराश होकर लौटना राहुल की ओर ही पड़ेगा।

16 अप्रेल, 2015

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