Wednesday, April 1, 2015

रेल फाटकों के समाधान का कच्चा-पक्का चिट्ठा-तीन

राजस्थान अरबन इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट प्रोजेक्ट (आरयूआइडीपी) के दक्ष तकनीकी आयोजकों को राज्य सरकार की ओर से शहरी समस्याओं की पड़ताल करने और उनका व्यावहारिक समाधान देने को कहा गया। बीकानेर के कोटगेट और सांखला रेल फाटकों की बड़ी समस्या पर उनका ध्यान गया। उनके द्वारा अपने तईं किए इस काम के दौरान कोई राजनीतिक हस्तक्षेप था और ही कोई हित विशेष के दबाव थे। उन्होंने इन दो रेल फाटकों की समस्या का बहुत ही व्यावहारिक समाधान ऐलिवेटेड रोड के रूप में तब सुझाया जब शहर के राजनेता और अन्य मुखर लोग बाइपास का राग अलाप रहे थे। उन्होंने केवल परियोजना बनाई बल्कि मॉडल बना शहर में प्रदर्शित किया और आमजन से इस ऐलिवेटेड रोड पर राय चाही। उस दौरान सकारात्मक हजारों अनुसंशाओं के बीच बहुत थोड़े लोगों ने यह कहकर विरोध जताया कि इससे महात्मा गांधी रोड के व्यापार पर विपरीत असर पड़ेगा। 2007-08 में आरयूआइडीपी द्वारा की गई इस रायशुमारी के समानांतर राजस्थान पत्रिका ने पाठकों की राय भी ली जिसे बराबर प्रकाशित भी किया था। बताया गया कि कुल प्राप्त पचानबे-छानबे प्रतिक्रियाओं में से मात्र दो-तीन ही इस ऐलिवेटेड रोड के खिलाफ थीं। बावजूद इसके शहर के असरकारी लोगों के प्रभाव के चलते तब मात्र चौबीस करोड़ के इस प्रोजेक्ट को ठण्डे बस्ते में पहुंचा दिया गया। कहते हैं इसके साथ ही क्षेत्र के लिए शहरी सुविधाओं के पूरे साठ करोड़ झालावाड़ को दे दिए गये।
पाठकों की सुविधा के लिए एक बार पुन: उस प्रोजेक्ट की जानकारी साझा कर रहे हैं--लगभग 26 फीट चौड़ाई की यह डबललेन ऐलिवेटेड रोड महात्मा गांधी रोड स्थित रिखब मेडिकल स्टोर वाले बड़े चौक से चढ़कर फड़बाजार चौराहे से सांखला फाटक की ओर घूमनी थी। वहां से नागरी भण्डार  पहुंच  दो शाखाओं में विभक्त होकर एक शाखा रेलवे स्टेशन जाने वाले यातायात के लिए मोहता रसायनशाला के आगे उतरती तो दूसरी शाखा अन्दरूनी शहर की ओर जाने वालों के लिए फोर्ट स्कूल के पास राजीव मार्ग पर।
सभी जानते हैं कि फिलहाल महात्मा गांधी रोड और स्टेशन रोड से गुजरने वाले यातायात में सत्तर प्रतिशत वह है जिन्हें इन दोनों ही बाजारों से कुछ भी लेना देना नहीं होता, वे या तो स्टेशन या अन्दरूनी शहर से आकर पब्लिक पार्क की ओर जाते हैं या लौटते हैं। इन सत्तर प्रतिशत गैर ग्राहकीय यातायात के चलते इस बाजार में तीस प्रतिशत ग्राहकीय यातायात को कितनी परेशानी उठानी होती है शायद इसका भान किसी को नहीं है। ऐलिवेटेड रोड यदि बनती है तो वह सत्तर प्रतिशत गैर ग्राहकीय यातायात ऐलिवेटेड रोड से 'बाइपास' कर जायेगा और केवल वह तीस प्रतिशत ग्राहकीय यातायात इत्तमीनान से इन बाजारों में खरीदारी कर सकेगा बल्कि जिन ग्राहकों ने जाम से घबराकर महात्मा गांधी रोड और स्टेशन रोड आना बन्द कर दिया, वे भी पुन: आने की हिम्मत जुटाने लगेंगे।
महात्मा गांधी रोड के प्रेमजीपॉइंट से सांखला फाटक तक स्टेशन रोड लगभग चालीस से चौवालीस फीट चौड़ी हैऐसे में छब्बीस फीट की ऐलिवेटेड रोड के दोनों तरफ हवा-रोशनी की पर्याप्त गुंजाइश रहेगी वहीं मात्र छह फीट चौड़े ऐलिवेटेड रोड के एकल खम्भों के बीच छायादार पार्किंग बन जायेगी। ऐसे में दुकानों के आगे खड़े वाहनों से दुकानों तक पहुंचने में ग्राहकों को जो बाधा आती है उसमें बहुत कमी जायेगी। अलावा इसके रिहायश से लगभग बाजार में तबदील हो चुके इन मार्गों के इर्द-गिर्द के भवनों की दूसरी-तीसरी मंजिलों पर अच्छे-खासे शो-केस विकसित हो सकते हैं जो ऐलिवेटेड रोड से गुजरने वालों को लुभाए बिना नहीं रहेंगे।
ऐतिहासिक कोटगेट से लगभग सात-आठ सौ फीट दूर से ही दिशा बदलने वाली इस ऐलिवेटेड रोड से कोटगेट के सौन्दर्य-दर्शन में कुछ खास अन्तर नहीं आना है।
रेलवे को अब-तक प्रशासन और राज्य सरकार की ओर से रेल बाइपास और अण्डरब्रिज के प्रस्ताव ही दिए गए हैं। ऐसे में रेलवे अधिकारिक तौर पर इन दो पर ही बात करता है। ऐलिवेटेड रोड पर तो रेलवे को आज तक कुछ कहा ही नहीं गया। अन्यथा रेलवे के तकनीकी लोग यह मानते हैं कि तब हम सबसे 'फिजीबल' ऐलिवेटेड रोड के इस प्रोजेक्ट को ही बताएंगे। ऐलिवेटेड रोड के जो अन्य विकल्प सुझाये गये हैं वे तकनीकी और आर्थिक, दोनों मोर्चों पर व्यावहारिक नहीं हैं। दूसरा, इनमें कुछ निजी और सरकारी भवनों का अधिग्रहण कर तोड़कर हटाना होगा जबकि आरयूआइडीपी की सुझाई ऐलिवेटेड रोड में एक भी भवन नहीं टूटना है।
रही बात निर्माण के दौरान व्यापारियों को होने वाली असुविधा की तो अब निर्माण हेतु इतने एडवांस साधन लिए हैं कि आस-पड़ोस को कोई खास दिक्कत नहीं होती है। खम्भे ढालने के काम के लिए बीच सड़क पर बारह फीट एरिया को दोनों तरफ से बन्द करके गलियारा बनाया जा सकता है और इस शर्त पर ठेका दिया जा सकता है कि मिक्सचर प्लांट कहीं दूर लगेंगे और काम रात आठ बजे से सुबह आठ बजे तक ही होगा। इस तरह इस अस्थाई गलियारे के दोनों तरफ बारह से पन्द्रह फीट का रास्ता भी निर्माण के दौरान चालू रहेगा।
पिलर ढलाई के बाद जिन प्रिस्ट्रेस गर्डर पर सड़क बनेगी, ये गर्डर यदि आरसीसी के ढलने हैं तो शहर से बाहर ढलेंगे अन्यथा प्रोजेक्ट में परिवर्तन कर स्टील के बनवाए जा सकते हैं। इन गर्डरों को भी रात्रि में ही फिट किया जा सकता है। ऐसे में दो-ढाई वर्ष थोड़ी बहुत दिक्कत होनी है तो बाद में इसका सुख भी भोगेंगे।
जरूरत अब रेल बाइपास, रेल अण्डरब्रिज और ऐलिवेटेड रोड--इन तीनों में से किसी एक पर एकराय बनाने की है ताकि साथ में खड़े होकर एक सुर में कोई निर्णय करवा सकें और जमीन पर उसे उतरवाने के लिए सरकार को बाध्य कर सकें। तीनों ही समाधान का खर्चा राज्य सरकार को ही उठाना है। ऐसे में रेलवे का कोई खास लेना देना आर्थिक तौर पर नहीं है। जो निर्माण पर खर्च रेलवे को करना है उसका भुगतान भी राज्य सरकार रेलवे को करेगी ही।
समाप्त

1 अप्रेल, 2015

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