Thursday, March 26, 2015

विधानसभा में बीकानेर

राजस्थान विधानसभा का बजट सत्र चल रहा है। प्रथम ग्रास: मक्षिका पात की तर्ज पर इस सत्र के पहले ही दिन हुए हंगामे में विपक्ष के नौ विधायकों का निलम्बन हुआ और फिर बाद में रद्द किया गया। पांच-चौथाई जैसे ' भूतो' बहुमत के साथ आयी सरकार को भी लगा होगा कि इस तरह से विधानसभा चलाना लोकतांत्रिक नाइंसाफी होगी। यद्यपि विधानसभा अध्यक्ष जरूर वसुन्धरा राजे के ऋण से मुक्त होने की भूमिका निभाते दिख रहे हैं।
स्थानीय मीडिया की अति मुस्तैदी मानें या हमारे विधायकों की चुस्ती कि इस बार बीकानेर जिले के मुद्दे बराबर उठाए जाने के  समाचार कुछ विशेष मिल रहे हैं। फिर  चाहे वह निर्दलीय मानिकचन्द सुराना हों या कांग्रेस के भंवरसिंह भाटी या खुद सत्ता पक्ष के गोपाल जोशी। जिले के सात में से ये तीन विधायक विधानसभा में सक्रियता का धर्म पूरा निभा रहे लगते हैं। हालांकि नेता प्रतिपक्ष जैसी भारी-भरकम जिम्मेदारी भी जिले से ही विधायक रामेश्वर डूडी को मिली हुई है। हो सकता है वह प्रदेश स्तरीय इस जिम्मेदारी का दबाव ज्यादा महसूस रहे हों सो अपने क्षेत्र की बात रखने का समय नहीं निकाल पा रहे। हो यह भी सकता है कि वे विशेष सावचेती बरत रहे हों ताकि नेता प्रतिपक्ष पर क्षेत्र-विशेष के लिए ही कुछ करने का आरोप लगे। वैसे, पहले भी जिले से विधायक रहे डॉ. बी.डी. कल्ला ऐसी जिम्मेदारी इसी तरह निभा चुके हैं।
शेष, तीनों विधायक सत्तारूढ़ भाजपा से ही हैं- -डॉ. विश्वनाथ मेघवाल, किसनाराम नाई और सिद्धीकुमारी। सौगंद के साचे कहलाने जितना ये सभी बोल चुके हैं। इन समकक्षों में प्रथम विश्वनाथ को मान सकते हैं। छाछ को फूंक-फूंक कर पीने के अन्दाज में ये क्षेत्र के मुद्दे उठाते तो हैं लेकिन यह सावचेती जरूर बरतते हैं कि मंत्रिमंडल फेरबदल की अगली सूची में सकने वाला इनका नाम कहीं कट जाए। किसनाराम नाई काफी बुजुर्ग हैं, नियमित विधानसभा जा भी पाते हैं या नहीं जानकारी की जरूरत है, शायद वे मान चुके हैं कि इसके बाद उन्हें चुनाव तो लडऩा नहीं है। सिद्धीकुमारी ने कुछ कहने-करने को  चुनाव नहीं लड़ा था। अपना पिछला विधायकी काल भी उन्होंने ऐसी निष्क्रियता से गुजारा, बावजूद इसके जनता ने फिर चुन लिया। ऐसे में शायद वे मान बैठी हैं कि क्षेत्र की जनता ने चुनाव में जिता कर उनके निष्क्रिय रहने की पुष्टि ही की है। उन्हें यह भी लगता होगा कि सक्रिय हुईं तो क्षेत्र के मतदाता अगले चुनाव में कहीं नकार दें। वे शायद यह भी मान रही हों कि उनको विधायकी का यह विशेष दर्जा लोकतंत्र के चलते नहीं, सामन्ती विरासत के चलते मिला है। यदि वे ऐसा मान रही हैं तो प्रकारान्तर से अपने तईं ठीक ही मान रही हैं। क्योंकि अधिकांश जनता भी चुन उन्हें इसी भाव से रही है-- इसीलिए भुगत भी रही है।
सुराना अपने क्षेत्र के मुद्दों के साथ नीतिगत मुद्दे भी उठाते रहे हैं। उन जैसे मंझे राजनेता से उम्मीद भी ऐसी ही की जाती है। लेकिन उनसे उम्मीद यह भी की जाती है कि जिला मुख्यालय से सम्बन्धित मुद्दे भी वे उठाएं। सिद्धीकुमारी की निष्क्रियता के चलते गोपाल जोशी अकेले पड़ जाते हैं। दूसरा, जोशी चूंकि सत्तारूढ़ दल से हैं इसलिए कुछ मर्यादाओं का खयाल भी उन्हें रखना होता है। यद्यपि इस सत्र में इन मर्यादाओं का अतिक्रमण होते भी देखा गया। जोशी ने बीकानेर की सड़कों-नालियों की दुर्दशा पर अपने ही निगम को कल आड़े हाथ लिया। निगम बोर्ड की बात करें तो लग यही रहा है कि नारायण चौपड़ा ने पिछले महापौर भवानीशंकर शर्मा को अच्छा कहलाने का पूरा मन बना लिया है।
विधायक जोशी इस बार रेल फाटकों जैसी शहर की अव्वल समस्या पर खास सक्रियता दिखा रहे हैं--उन्होंने इस मुद्दे को एक से अधिक बार उठाया। पहले जब इस समस्या को उठाया तो एलिवेटेड रोड के साथ धीमे से बाइपास का स्वर भी उच्चारित कर दिया। क्या प्रतिपक्ष के कुछ नेताओं की तरह जोशी के भी कुछ पर्सनल इन्टरेस्ट बाइपास में जुड़े हैं या कोई नाड़ दब रही थी? यह तो मान नहीं सकते कि जोशी जैसे सुलझे राजनेता को व्यावहारिक समाधान की समझ नहीं। हालांकि कल जब इस मुद्दे को फिर से उठाया तो उन्होंने इस समस्या के अण्डरब्रिज समाधान को नकार असल समाधान एलिवेटेड रोड की पैरवी की। अण्डरब्रिज के समाधान पर उनकी आपत्ति को अनुचित नहीं कहा जा सकता। वे सत्तापक्ष से हैं और इतनी हैसियत में तो वे हैं कि किसी एक समाधान पर कायम हों और उसे किसी मुकाम तक भी पहुंचाएं। गोपाल जोशी यदि ऐसा संभव कर देते हैं तो वे बीकानेर की आम अवाम के एक बड़े ऋण से मुक्त हो लेंगे। नहीं तो इन सड़सठ वर्षों में कितने ही विधायक हो लिए पर मुरलीधर व्यासके अलावा असल सम्मान किसी के प्रति नहीं देखा जाता।
कोलायत विधायक भंवरसिंह पहली बार चुनकर गये हैं। विपक्ष में रहते भी वे विधानसभा में बराबर रहते और अपने क्षेत्र के मुद्दों और समस्याओं को उठाने से कभी नहीं चूकते। अपने क्षेत्र की सबसे बड़ी समस्या अवैध जिप्सम खनन का मुद्दा उन्होंने एकाधिक बार उठाकर साहस का ही परिचय दिया है। सभी जानते हैं कि अवैध खान में लगे लोग कितने ताकतवर हो लिए और उन्हें किन-किन दिग्गज राजनेताओं की शह है। भंवरसिंह भाटी अपने कद से बड़ी सक्रियता दिखा कर यह जाहिर करने की कोशिश में लगे हैं कि कोलायत के असल जनप्रतिनिधि वे ही हैं।

26 मार्च, 2015

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