Thursday, February 19, 2015

राजा को नंगा कहने वाला बुद्धिहीन

नरेन्द्र मोदी देश के प्रधानमंत्री हैं और पिछले नौ महीनों से हैं। लेकिन राज का काज वैसे ही चल रहा जैसे संप्रग-एक दो की सरकार के समय मनमोहन सिंह चलाते थे। कहा जा सकता है मनमोहनसिंह कुछ करते नहीं थे तो मोदी को कुछ कर दिखाने के लिए समय नहीं मिलता। कहने को मोदी कुल चौबीस में से बीस घण्टे काम करते हैं। लेकिन काम है कि नजर ही नहीं आता, जो नजर आता है उसका इस देश से, देश के आम-अवाम से कोई लेना-देना नहीं। सुना है मोदी के दिन का अधिकांश समय पोशाक बदलने और पोशाक का ट्रायल लेने-देने में ही बीत जाता है।
लोक में एक राजा की कथा प्रचलित है- वह राजा अपने मोदी सा ही शौक फरमाते थे। कह यूं भी सकते हैं कि मोदी का शौक भी उन राजा सा ही है। उन्हें नयी-नयी पोशाकों का शौक था, उनके शासन में कपड़े बनाने वाले बुनकर और पोशाक सिलने वाले दर्जी बेचारे चुक चुके थे। रोज नये तरह के कपड़े और रोज ही उन्हें नये तरीके से सिलें तो कैसे सिलें। मशीनें थी और ही डिजाइन के लिए कम्प्यूटर। पड़ोसी रियासत के किसी चतुर को पता चला तो पहुंच गया राजा के दरबार में ड्रैस डिजाइनर बनकर। राजा से कहा कि वह ऐसी पोशाक तैयार कर सकता है जिसके पहनने के बाद आपका डंका चहुं ओर बजने लगेगा।
चतुर की अपनी ब्रांड अम्बेसेडरिंग ऐसी थी कि राजा लालच में आए बिना नहीं रह सके। चतुर ने महल के कमरे में अपना कारखाना लगाया और रोज जंगल की तरफ जाता और लौट आता। खाता-पीता और दरवाजा बन्द करके आराम करता। कोई दरबारी पूछता कि पोशाक बन गई तो कहता बन ही रही है। किसी ने पूछ लिया, कहां और कैसे बन रही है तो उसने यह स्थापित करना शुरू कर दिया कि वह जो पोशाक बना रहा है वह सिर्फ बुद्धिमान को दिखेगी। धीरे-धीरे यह बात महलों और महलों से रियासत के बाशिन्दों तक पहुंची। बात बुद्धिमानी पर गई तो सब चौकस हो लिए बुद्धिमान बने रहने के लिए!
राजा को पता चला तो वे भी ठिठके लेकिन बात बुद्धिहीन कहलाने के डर पर जा टिकी सो राजा भी चुप। दो पखवाड़े बीतने के बाद नई पोशाक की सजधज के उतावले राजा ने पूछ ही लिया कि कब तक तैयार हो जायेगी पोशाक! चतुर ने कहलवा दिया कि अभी कपड़ा बुना जा रहा है, कम से कम तीन महीने तो लगेंगे। महीने तीन भी गये। चतुर ने केवल उसे पहनने की तारीख मुकर्रर करवा दी बल्कि राजा को इसके लिए भी तैयार कर लिया कि वह अद्भुत पोशाक पहनकर सवारी पर शहर भी जाएंगे। तय दिन पर चार दरबारियों के हाथों पर रखे थाल में पोशाक रखी गई। चतुर ने पोशाक समेटने, करीने से रखने का स्वांग कर उन्हें संभल कर चलने की हिदायत दी और चल पड़े राजा के निजी कक्ष की ओर। पोशाक लेकर चलने वाले और महल के गलियारों में मिले सभी दरबारी बुद्धिमान बने रहने को लेकर सावचेत थे। चतुर ने सब को बाहर किया और राजा के पहने कपड़ों को तहजीब से उतारा और अपनी अद्भुत पोशाक को नजाकत से पहनाने का स्वांग करने लगा। राजा भी 'बुद्धिमान' बन पहनते रहे। चतुर ने ही अपनी पोशाक की तारीफ करते हुए राजा को सूचित किया कि आप सजधज गये हैं, पहले महल में पहुंचकर दरबारियों को दर्शन दें और फिर अपनी रियाया को भी कृतार्थ करें। राजा एक बार तो झिझका लेकिन तुरन्त ध्यान आया कि शंका प्रकट करूंगा तो मेरे बुद्धिहीन होने का पता सब को चल जायेगा।
राजा दरबार में पहुंचे, दरबार में सभी बुद्धिमान नजर आने लगे। राजा अब रथ पर सवार हो लिए। चतुर की हिदायत अनुसार सिंहासन पर नहीं बैठे और खड़े-खड़े ही हाथ हिला-हिला कर नगरवासियों को कृतार्थ करते रहे। लगभग जाहिर हो गया कि पूरा शहर बुद्धिमान है। शहर में जो गरीबी की रेखा से नीचे जीवन यापन कर रहे थे उन्हें सवारी के रास्ते से हमेशा की तरह दूर रखा गया। प्रजा अधिकांश थी भी वही यदि उन्हें सवारी देखने की इजाजत दी जाती तो सवारी का रंग खराब हो जाता।
एक निर्वस्त्र गरीब बालक राजा को नई पोशाक में देखने के अपने लोभ को छोड़ नहीं पाया। वह जैसे-तैसे छिपता-छिपाता ठीक उस समय और ठीक उसी स्थान पर प्रकट हुआ जहां से राजा गुजर रहे थे। बालक अपनी बुद्धिहीनता का प्रमाण देते हुए तपाक से बोल पड़ा कि राजा तो मेरी तरह ही नंगा है। फिर क्या था राजा सहित सभी एकबारगी सकते में गये। सुरक्षाकर्मी तत्काल उस बुद्धिहीन बालक को पीटते हुए बाहर ले गये और राजा की सवारी उस बुद्धिमान शहर से गुजर कर महल में लौट आयी। राजधर्म निभाने की मंशा से आया चतुर अपनी मेहनत को बेकार गई मान घोर निराश हुआ और सवारी के महल में पहुंचने से पूर्व ही अपनी रियासत लौट गया।
अब तय करने वाली बात यह है कि यहां क्या मोदी और वह चतुर एक ही हैं और क्या उस बालक की भूमिका बराक ओबामा निभा रहे हैं या कोई और निभाएगा। उस बालक जितनी हिम्मत ओबामा ने यहां तो नहीं दिखाई लेकिन अमेरिका लौट कर आईना जरूर दिखाया या कहें ओबामा उस भूमिका में हैं जिसे अपना मात्र उल्लू सीधा करना है। यह तो तय हो ही गया कि भाजपाई और मोदीनिष्ठ तो वफादार दरबारी की भूमिकाओं में ही हैं। देखना यह है संघनिष्ठ इस भूमिका से कब बाहर आते हैं।

19 फरवरी, 2015

No comments: