कोटगेट और सांखला रेल
फाटकों को शहर की सबसे बड़ी समस्या मान लिया जाना चाहिए इसके साथ यह भी कि हमारी
सबसे बड़ी मांग भी यही है और असल जरूरत भी।
जिले के प्रभारी मंत्री
राजकुमार रिणवा कल यहीं थे और दिन भर उन्होंने शहर और जिले के हितों पर चर्चा करने
में अपने को व्यस्त रखा। सिरेमिक्स हब, केन्द्रीय विश्वविद्यालय, रिंग रोड आदि मुद्दों पर चर्चा करने के अलावा उन्होंने
विशेष रूप से मंडल रेल प्रबन्धक के साथ बैठक कर
कोटगेट और सांखला रेल फाटकों की समस्या के व्यावहारिक पक्षों को जाना-समझा।
मोटा-मोट यही निकलकर आया कि रेल बाइपास का समाधान घोर अव्यावहारिक है, कोटगेट फाटक पर अण्डरपास
मात्र चेपे का समाधान साबित होगा, ऊपरी रेल पुलिया
संभव नहीं है। एकमात्र समाधान बचा तो एलिवेटेड रोड ही।
‘विनायक’ इस समस्या पर चर्चा पिछले
साढ़े तीन साल में कम-से-कम चार-पांच बार इसी कालम में कर चुका है और आज फिर इसलिए
कर रहा कि यह समस्या दिन-ब-दिन विकराल होती जा रही है। अपनी बात को ‘विनायक’ फिर इसलिए दोहरा रहा है
कि शहरवासियों को इस सबसे बड़ी समस्या का व्यावहारिक समाधन हासिल हो सके।
बाइपास की बात करें तो
पहले तो यह कि इस देश में तो कम-से-कम कोई ऐसा उदाहरण नहीं कि यातायात समस्या के
समाधान के लिए रेलवे लाइन को शहर से बाहर कहीं शिफ्ट किया गया हो! इसमें कई
व्यावहारिक कठिनाइयां होती हैं। बाहर शिफ्ट करना न केवल बहुत महंगा समाधान है
बल्कि रेलमार्ग के बढ़ने से रेलवे को उन लम्बी दूरी की सवारी गाड़ियों के बढ़े समय से
जूझना पड़ेगा, जिनके समय को कम करने में
वह बराबर सचेत है। बीकानेर के सन्दर्भ से बात करें तो नोखा, श्रीडूंगरगढ़ की ओर से
बीकानेर स्टेशन आने वाली वह गाड़ियां जिन्हें सूरतगढ़, फलौदी की ओर जाना हो या आना हो, वे पहले बीकानेर स्टेशन
आएंगी और लौटकर नये बाइपास स्टेशन से अपने गंतव्य की ओर जायेंगी। यह स्टेशन
बीकानेर इस्ट और उदयरामसर के बीच कहीं बनाना होगा। यदि ऐसा करेंगे तो प्रत्येक
गाड़ी का पहुंच समय न्यूनतम डेढ़ घंटा बढ़ जायेगा। और यदि ऐसा न करें यानी सभी
गाड़ियों को बीकानेर स्टेशन न लाकर बीकानेर बाइपास स्टेशन से ही गुजारें तो भी
प्रत्येक रेलगाड़ी के पहुंच समय में पैंतीस से पैंतालीस मिनट का इजाफा हो जायेगा।
मान लेते हैं ऐसा कर भी लें तो क्या वह स्थाई समाधान है? शहर बढे़गा ही, ऐसे में पचास साल बाद
बाइपास भी क्या पुन: शहर के बीच नहीं आ जायेगा। और केवल मालगाड़ियों के लिए ही
बाइपास बनाएंगे और सवारी गाड़ियां ज्यों-की-त्यों शहर के बीच से निकलें तो समस्या
ज्यों-की-त्यों बनी रहेगी। क्योंकि बीकानेर होकर गुजरने वाली सवारी गाड़ियों का
संचालन प्रतिवर्ष बढ़ ही रहा है। अन्दाज लगाइये ऐसी नई दो सवारी गाड़ियां ही शहर को
प्रतिवर्ष मिलती हैं तो आना-जाना शामिल कर सांखला और कोटगेट रेल फाटकों की बन्द
होने की आवृत्ति प्रतिवर्ष प्रत्येक चौबीस घंटे में चार तक बढ़ जानी है।
रही बात रेल अण्डरब्रिज
की, यह सांखला फाटक पर तो बन
ही नहीं सकता। कोटगेट फाटक पर भी धिंगाणिया ही बनाया जा सकता है, रेलवे भी ‘हां’ अपनी डाई उतारने के लिए
ही कह रही है। पहली समस्या तो इस अण्डरब्रिज की यह कि शहर के इस मुख्य बाजार का
बड़ा हिस्सा खत्म हो जायेगा। दूसरी, यह कि इस कोटगेट फाटक के एक तरफ शहर का मुकुट कोटगेट है तो
दूसरी तरफ फड़बाजार चौराहा। ऐसे में जैसे-तैसे इसे बना भी लिया तो तकनीकी तौर से न
ढलान रखी जा सकेगी और ना ही बारिश के दिनों में आधे अन्दरूनी शहर से आने वाले पानी
को संभाला जा सकेगा। कहने को तो कहा जा रहा है कि उस पानी को मोटी पाइप लाइन के
जरिये शहर के बाहर छोड़ा जायेगा। क्या तीन-चार किलोमीटर लम्बी इस पाइप लाइन को
सुचारु रखा जा सकेगा। उदाहरण सामने है सूरसागर कासूरसागर में बारिश का पानी न जाए
इसके लिए उसके दो तरफ जालियों के चेम्बर लगाकर सिवर के पाइप डाले गये हैं जो हर बारिश
में डट जाते हैं और गंदा और बरसाती पानी सूरसागर में जाये बिना नहीं रहता। इस तरह
जब सामान्य सड़क के बरसाती पानी को सुचारु रूप से नहीं निकाल सकते तो सड़क से
तेरह-चौदह फीट नीचे के अण्डरब्रिज के बरसाती पानी को भला कैसे निकालेंगे! दिल्ली
देश की राजधानी है, वहां सारी रेल
लाइनें शहर के बीच से गुजरती हैं। मुख्य स्टेशन भी चांदनी चौक के सामने है। वहां
कनाट प्लेस के मुहाने पर अंग्रेजों के जमाने का रेल हाफ अंडरब्रिज बना हैमिण्टो
ब्रिज नाम से। यह हाफ अण्डरब्रिज भी हर बारिश में लबालब हो जाता है, राजधानी होते हुए और कनाट
प्लेस शहर की नाक जैसी जगह पर होने के बावजूद। उसके पानी की निकासी को वहां का
प्रशासन सुचारु नहीं रख पाता है। ऐसे में अंदाजा लगाएं कि बारिश के मौसम में
कोटगेट अण्डरब्रिज के क्या हाल होंगे!
व्यावहारिक समाधान मात्र
एलिवेटेड रोड ही है। वह मॉडल जो आरयूआइडीपी द्वारा 2007 में प्रदर्शित किया गया वही आदर्शतम है। इसके बन जाने से न
केवल इन फाटकों के बन्द होने पर यातायात समस्या का समाधान होगा बल्कि महात्मा
गांधी रोड और स्टेशन रोड वही लोग आएंगे जिन्हें खरीदारी करनी होगी। शेष जिन्हें
शहर के अन्दर या रेलवे स्टेशन, पब्लिक पार्क की
ओर जाना व आना होगा वे एलिवेटेड रोड का इस्तेमाल करेंगे। यानी जिन्हें खरीदारी
नहीं करनी है वे इन बाजारों में भीड़ नहीं करेंगे। ऐसे में इन बाजारों में एलिवेटेड
रोड के खम्भों के बीच पार्किंग की सुविधा भी मिलेगी और हो सकता है एक तरफा यातायात
व्यवस्था को भी मुल्तवी किया जा सके। एलिवेटेड रोड यदि बनती है तो कम-से-कम आगामी पचास
सालों में यातायात का जो दबाव बढ़ेगा उसे भी वह झेल सकेगा।
आम-अवाम को भी प्रेरित कर
साथ लेना होगा। इसलिए पिछले बीस साल से भी ज्यादा समय से इन दोनों फाटकों की
समस्या के समाधान के लिए जूझ रहे जननेता रामकृष्णदास गुप्ता से भी गुजारिश है कि
अपनी बाइपास की मांग पर पुनर्विचार करें और नेतृत्व देकर शहर में ऐसी फिजा बनायें
कि आगामी वित्तीय वर्ष में ही एलिवेटेड रोड का निर्माण कार्य शुरू करने के लिए
सरकार मजबूर हो जाए। इसे बनने में कम-से-कम तीन वर्ष का समय लगेगा यानी तब भी
आगामी तीन-चार वर्षों तक तो कोटगेट और सांखला रेल फाटकों की समस्या को शहरवासियों
को भुगतना होगा। उम्मीद करते हैं कि केईएम रोड व्यापार मण्डल और उसके माध्यम से
बीकानेर व्यापार मण्डल सकारात्मक सोच के साथ जनप्रतिनिधियों को इस एलिवेटेड रोड के
लिए सक्रिय करेंगे।
इसी कालम से बीकानेर के
अखबारों और खबरिया चैनलों के पत्रकार मित्रों से भी अनुरोध है कि शहर की इस सबसे
बड़ी समस्या के समाधान को अपना प्राथमिक दायित्व मानें और इसके लिए हर वह पत्रकारीय
रणनीति अपनाएं जिससे इस समस्या का हल शहर को जल्द मिल सके। ‘विनायक’ का मानना है कि
जनप्रतिनिधि, मौजिज व्यापारी, जननेता और मीडिया मिलकर
इस समस्या पर यदि एक सुर में बात करें तो हल पाने में देर नहीं लगेगी। देखना यही
है कि ऐसी अनुकूलता बनने में कितने महीने लगते हैं। अच्छी तरह समझ लें कि ऐसी
अनुकूलता बनने के बाद भी समाधान मिलने में कई वर्ष लगेंगे। जो गुजर गया उसे बिसार
दें व जितना जल्द हो सके अब भी चेत जाएं और लग जायें।
12 फरवरी, 2015
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