Monday, January 5, 2015

बीकानेर : आयोजनों से भरा दिन

कल शहर चकरीबम था, शहर सही प्रेस फोटोग्राफरों के लिए तो भागम-भाग का दिन कहा ही जा सकता है। 2015 के इस पहले रविवार को इस्लाम का पवित्र दिन ईद-मिलादुन्नबी हिजरी संवत् से तय ही था। मुहम्मद साहब का जन्म इसी दिन हुआ था, और उनकी वफात भी यानी मृत्यु भी इसी दिन हुई। इस्लाम में आस्था रखने वालों के लिए इस तरह यह विशेष दिन हो गया।
देश-विदेश के पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए प्रतिवर्ष सरकारी स्तर पर आयोजित होने वाले दो दिवसीय ऊंट उत्सव का भी कल पहला दिन था। चूंकि कार्यक्रम सरकारी था इसलिए आम-अवाम की भागीदारी इसमें के बराबर होती है या कहें जिन्हें इससे कुछ हासिल होना होता है वे तो लगे रहते हैं शेष सब अखबारों और खबरियां चैनलों से इसकी जानकारी उसी तरह लेते हैं जैसे देश-विदेश में अन्यत्र होने वाले अन्य आयोजनों की लेते रहते हैं। शहर में सबसे बड़े स्तर पर होने वाले इस आयोजन के बाद शिकवा-शिकायतों का दौर चलता है, प्रतियोगिताओं में पक्षपात के आरोपों के अलावा किस-किस को कैसे-कैसे लाभ पहुंचाया, खोटे-खरे बिलों पर किस तरह लेन-देन हुए आदि-आदि सब अब तो रीत के रायते में शामिल है। ये कोई नहीं देखता कि कितना खर्च करके कितना हासिल हुआ। पर्यटक इससे आकर्षित होते हैं या नहीं! सर्दियों में वैसे भी आपमते आने वाले पर्यटकों की आम-दरफ्त बढ़ती है, ऐसे में पर्यटन विभाग की भी ठीक-ठाक सज जाती है, अखबार वालों को पृष्ठों की और खबरियां चैनल वालों को समय की भरपायी करने में इन दो दिनों में खास दिक्कत नहीं आती।
शिमला के भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान की स्थानीय गंगासिंह विश्वविद्यालय के साथ तीन दिवसीय अन्तरराष्ट्रीय संगोष्ठी भी कल शुरू हुई। 'परम्परा, परिवर्तन और स्वराज' विषय पर अकादमिक तौर पर क्या हासिल किया जायेगा, ये तो बाद में पता चलेगा पर सामान्यत: ऐसे आयोजन सामान्य-प्रक्रिया के तहत ही होते आए हैं। भारतीय विश्वविद्यालयों में अधिकांशत: ऐसी संगोष्ठियों में पिष्ट-पेषण यानी पिसे हुए को पीसा जाता है। कुलपति चन्द्रकला पाडिया कुछ अधिक संजीदा हैं तो हो सकता है वे इस आयोजन से कुछ विशेष दर्ज करवा पाएं।
केन्द्र की साहित्य अकादमी के सहयोग से स्थानीय संस्था मुक्ति द्वारा आयोजित राजस्थानी के चार दिवंगत लेखकों के अवदान पर एक दिवसीय संगोष्ठी भी कल हुई। विजयदान देथा, अन्नाराम 'सुदामा', यादवेन्द्र शर्मा 'चन्द्र' और लक्ष्मीकुमारी चूंडावत पर केन्द्रित ठीक-ठाक रहे इस आयोजन की उपलब्धि उनके स्मरण से ज्यादा की नहीं रही। इस संगोष्ठी का मकसद भी शायद यही रहा होगा। केन्द्रीय अकादमी में राजस्थानी के परामर्शक मण्डल के संयोजक कवि-नाटककार अर्जुनदेव चारण का उद्बोधन हमेशा की तरह प्रभावी था। विजयदान देथा 'बिज्जी' के पुत्र कैलाश कबीर ने निराश किया पर इसकी भरपाई बिज्जी के मानसपुत्र की हैसियत बना रहे कहानीकार मालचन्द तिवाड़ी ने प्रभावी ढंग से कर दी। व्यंग्यकार बुलाकी शर्मा के चन्द्रजी से रहे आत्मीय रिश्ते के चलते उनका पर्चा बोझिल नहीं रहा।
इस तरह की संगोष्ठियों की रूपरेखा बदलनी चाहिए। पर्चा पढऩे वालों को केवल विषय देकर ऐसे वक्ताओं का पैनल बना कर उन्हीं से पूछना चाहिए कि आपने सम्बन्धित पर नई बरामदगियां क्या की हैं और इसी आधार पर फिर वक्ताओं का चयन भी होना चाहिए अन्यथा ऐसे आयोजन लेखक के व्यक्तित्व-कृतित्व और कथा-कहानी के सार तक सिमट कर रह जाते हैं। ऐसे में इन आयोजनों में वही होता है जो वरिष्ठ लेखकों पर होने वाले पहले के आयोजनों में दो-पांच, दस-बीस बार हो चुका होता है। साहित्य सृजन और पठन में लगे स्थानीयों को ऐसे आयोजनों से कुछ लाभ नहीं होता।
अलावा इसके बीकानेर के संगीत मनीषी डॉ. जयचन्द्र शर्मा की स्मृति में प्रतिवर्ष होने वाले संगीतोत्सव के तीन दिवसीय आयोजन का भी कल दूसरा दिन था। सांगीतिक प्रस्तुतियों के अलावा राष्ट्रीय कला उपनिषद और चित्रकला प्रतियोगिता हुई। प्रतिवर्ष होने वाले इस आयोजन का महत्त्व निजी प्रयासों से इसका होना है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ परिवार की इकाई विश्व हिन्दू परिषद का स्वर्ण जयन्ती समारोह भी कल ही आयोज्य था। इस तरह कल का दिन आयोजनधर्मियों और उनसे सम्बन्धितों के लिए विशेष ताबड़-तोड़ी का दिन ही रहा।

5 जनवरी, 2015

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