Friday, January 16, 2015

'विनायक' के मानवीय और संवैधानिक सरोकारों की पुष्टि '

'विनायक' के सरोकार मानवीय और संवैधानिक हैं। इसकी पुष्टि कल की दो घटनाओं से होती है। राजस्थान के पंचायतीराज में उम्मीदवारी के लिए शैक्षिक योग्यता की अनिवार्यता के अध्यादेश के खिलाफ अपील पर राजस्थान उच्च न्यायालय ने कल इसे ग्रामीणों के संवैधानिक अधिकार छीनने वाला तो बताया लेकिन तत्काल हस्तक्षेप से इसलिए मना कर दिया क्योंकि चुनावी प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। इसलिए न्यायालय ने इस प्रक्रिया को प्रभावित करने वाला कोई आदेश देने में असमर्थता जाहिर की। उम्मीद है इस अध्यादेश के खिलाफ आवाज उठाने वाले चुनावी प्रक्रिया पूर्ण होने के बाद पुन: अपील करेंगे। लेकिन इस दौरान चल रहे चुनावों को लडऩे से वंचितों के हक तो एक बारगी खूंटी चढ़ा ही दिए गये हैं। इससे निराश होने की जरूरत नहीं है, शासन व्यवस्थाओं में लोकतांत्रिक विकास कभी खत्म होने वाली सतत प्रक्रिया है। आज जितने हक हासिल हैं उन्हें हासिल करने में सैकड़ों वर्ष लगे हैं और बहुत सारे लोकतांत्रिक हकों को अभी हासिल करना शेष है।
प्रदेश में वसुन्धरा सरकार के लाए इस अध्यादेश के बाद 'विनायक' ने तीस जनवरी के अंक में 'पंचायतीराज में शैक्षिक अनिवार्यता का अनाड़ीपन क्यों?' शीर्षक के अपने सम्पादकीय में चुनाव लडऩे के लिए तय की गई शैक्षिक योग्यता पर कई सवाल खड़े किए थे। राजस्थान उच्च न्यायालय द्वारा की गई टिप्पणी से 'विनायक' के इस संवैधानिक सरोकारों की पुष्टि हुई है।
इसी तरह पेरिस की कार्टून पत्रिका 'चार्ली हेब्डो' द्वारा गत सात जनवरी को उसके मुख्यालय पर हुए आतंकवादी हमले के बाद जब प्रकाशन जिस अतिरेक के साथ परसों से फिर शुरू किया तो रोमन कैथोलिक ईसाइयों के सर्वोच्च धर्मगुरु पोप फ्रांसिसी ने उस आयोजन पर टिप्पणी करते हुए कहा कि किसी और धर्म के खिलाफ उकसाने वाली बात करना गलत है। उन्होंने चेतावनी दी कि यदि ऐसा करते हैं तो ऐसे ही हमलों के लिए तैयार रहना पड़ेगा। पाठकों को ज्ञात ही है कि पत्रिका 'चार्ली हेब्डो' ने हमले के बाद प्रकाशित इस अंक के मुख पृष्ठ पर फिर से इसलामिक पैगम्बर मुहम्मद साहब की छवि वाला केरीकेचर प्रकाशित किया गया है। इसलाम के अनुयायी इस अपनी आस्था पर चोट मानते हैं। पोप ने यह भी कहा कि अभिव्यक्ति की आजादी की अपनी सीमाएं हैं जिसे नजरअन्दाज नहीं किया जाना चाहिए।
उल्लेखनीय है कि 'चार्ली हेब्डो' प्रकाशन समूह को चलाने वालों की पहचान ईसाई समुदाय से है। ऐसे में पोप का उक्त बयान मायने रखता है।
हमले के तुरन्त बाद आठ जनवरी को 'विनायक' ने 'पेरिस हमले के बहाने आत्मावलोकन' शीर्षक के अपने सम्पादकीय के अन्त में ऐसी ही बात कही थी-'दूसरे के धर्म और आस्था की निन्दा से बचना चाहिए, क्योंकि ऐसे मसले सर्वाधिक संवेदनशील माने गये हैं। निन्दा भी वाचा हिंसा में ही आती है और वाचा हिंसा भी हिंसा की अंगुली पकडऩा ही माना जायेगा, जो कलाई पकडऩे की गुंजाइश देती है।'
'चार्ली हेब्डो' को पुन:प्रकाशन को परसों जिस तरह से आयोजित किया गया उसे पोप की ही तरह 'विनायक' ने भी अनुचित माना। इस आयोजन पर लिखे कल के अपने संपादकीय के कुछ अंश उद्धृत यह बताने के लिए कर रहे हैं कि 'विनायक' के सरोकार मानवीय भी हैं।
'चार्ली हेब्डो ' कार्टून में मुहम्मद साहब की जो छवि बनाई उसे सराहा नहीं जा सकता। उन्हें संयम बरतने की जरूरत इसलिए थी कि वह पत्रिका इसलामिक धर्मावलम्बियों द्वारा संचालित प्रकाशित नहीं है। किसी धर्मविशेष में कुछ रूढियां हैं या कुछ कमियां हैं तो उन पर विचार करने या विरोध करने का हक उसी धर्म के धर्मावलम्बियों का माना जाना चाहिए। हालांकि आलोचना की ऐसी गुंजाइश किसी धर्मविशेष में नहीं है तो हश्र अच्छा नहीं होता। बावजूद इसके धर्म और आस्था की पहली शर्त सहिष्णुता ही होनी चाहिए।
मुहम्मद साहब की छवि के साथ कवर पर छपे इस संस्करण को अतिवादी लोग चुनौती के रूप में लेंगे और वे अपने उन ढुलमुल धर्मावलम्बियों को इस आयोजन के आधार पर दुष्प्रेरित करने में भी सफल हो सकते हैं जो इसलाम की व्याख्या को लेकर असमंजस में हैं।

16 जनवरी, 2015

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