Wednesday, December 31, 2014

देवीसिंह आज धमाका करेंगे या निकलेगी फुसकी

आज सुबह-सुबह वाट्सएप पर एक सूचना फ्लैश हुई जिसमें बताया गया कि देवीसिंह भाटी आज धमाका करेंगे, फिर धीरे-धीरे इस पहेली को खोला गया कि कांग्रेस नेता हुक्माराम बिश्नोई को वे आज भारतीय जनता पार्टी में शामिल करवा रहे हैं। इसे समझना कोई टेढ़ी खीर नहीं हो सकता लेकिन पेंच है कि फूफाजी बुआजी का मन होने पर लेने पहुंच रहे हैं या यह मनाकर लाने की कोई कवायद है।
व्यावहारिक राजनीति जिस तरह की स्वकेन्द्रित हो गई है उसमें तो विचार की गुंजाइश बची है और ही जनसेवा की। हर नेता अपनी-अपनी अनुकूलताएं अधिकतम बनाये रखना चाहता है ताकि लूट में हिस्सेदारी वह ज्यादा-से-ज्यादा सूंत सके। दोपहर एक बजे देवीसिंह भाटी के यहां होने वाली प्रेस कान्फ्रेंस में फुसकी निकलेगी या धमाका होगा कह नहीं सकते।  यदि हुक्माराम बिश्नोई खुद भाजपा में दाखिल हो रहे हैं तो इसे धमाका कैसे कहा जा सकता है!
कोलायत जैसे बिश्नोई प्रभावी विधानसभा क्षेत्र में हुक्माराम बिश्नोई का महत्त्व जातीय से ज्यादा का नहीं है। बिश्नोई इस विधानसभा क्षेत्र से देवीसिंह के खिलाफ कांग्रेस से दो बार उम्मीदवारी कर चुके हैं। 1993 के चुनावों में हुक्माराम साढ़े बावन हजार वोट जुटाने के बावजूद इक्कीस हजार वोटों से देवीसिंह से हार गये थे। चुनाव के समय कोलायत क्षेत्र का बड़ा हिस्सा बीकानेर शहर में था।
उस चुनाव अभियान का आखिरी दौर याद गया, जब पब्लिक पार्क में दो गुटों के आमने-सामने की झड़प में कहा गया था कि हुक्माराम बिश्नोई के लोगों ने आग्नेय शस्त्रों का प्रयोग किया।
इस गोलीबारी ने चुनाव अभियान के शुरू की आशंकाओं की पुष्टि कर दी। हुक्माराम को कांग्रेस का टिकट मिलते ही यह हवा बनी कि कोलायत क्षेत्र का चुनाव इस बार बिना खून-खराबे के नहीं निबटेगा और यह भी प्रचारित किया गया कि यदि हुक्माराम जीत गया तो शहर की शान्ति पर भी असर पड़ेगा। इस चुनाव तक जनता देवीसिंह भाटी से ऊबने लगी थी। भाटी की यह चौथी उम्मीदवारी थी और उन्होंने अपने तीन विधायकी कालों में क्षेत्र के मतदाताओं को निराश ही किया था। उधर कांग्रेस को इस क्षेत्र के लिए भाटी के जोड़ का ही कोई उम्मीदवार चाहिए था जो कोलायत मगरे की इस मांद में प्रभावी उपस्थिति बना सके, हुक्माराम ने बनाई भी अन्यथा उन्हें साढ़े बावन हजार वोट नहीं मिलते। वह तो भाटी समर्थकों की उकसावे की रणनीति सफल हो गई और हुक्माराम के समर्थक फट पड़े और गोलीबारी की घटना हो गई। यदि उस चुनाव में कांग्रेस गोपाल जोशी को ही अपना उम्मीदवार बनाती तो परिणाम शायद दूसरे होते और यह भी कि पब्लिक पार्क में गोलीबारी की घटना नहीं होती तो हार-जीत का फैसला दो-तीन हजार वोट में सिमट जाता। गोलीबारी ने हुक्माराम की साख के बट्टे पर ठप्पा लगा दिया और मतदान की देहरी पर हुई इस घटना ने अधिकांश शहरी मतदाताओं को फिर से देवीसिंह की ओर मुडऩे को मजबूर कर दिया।
परिसीमन के बाद हुए 2008 के चुनावों में कांग्रेस ने फिर से हुक्माराम पर दावं खेलने की गलती की। पूरी तरह ग्रामीण विधानसभा क्षेत्र हो जाने के बावजूद हुक्माराम हार के पिछले अन्तर को कम-ज्यादा नहीं कर सके।
अब जब देवीसिंह अपने सार्वजनिक सक्रियता के आखिरी दौर में अपने क्षेत्र में परम्परागत प्रतिद्वंद्वी रहे रुघनाथसिंह के बेटे से इस लहर में भी पिछला चुनाव हार चुके हैं, ऐसे में उन्हें अब कुछ नहीं सूझ रहा। मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे देवीसिंह की पिछली हेकडिय़ों को नजरअन्दाज कर पूरा मान दे रही हैं, तभी हारे हुए देवीसिंह भाटी में कुछ आत्मविश्वास लौटा है अन्यथा वे एकबारगी तो बेसके ही पड़ गये थे।
लगता यही है कि कोलायत विधायक भंवरसिंह भाटी की अपने क्षेत्र में सक्रियता देखकर हुक्माराम ने कांग्रेस में अपनी गुंजाइश खत्म मान ली हो और उन्हें लगता हो कि फिलहाल देवीसिंह के सहारे और फिर बाद में अपनी दावेदारी के आधार पर अपनी हैसियत का खेल खड़ा रख सकेंगे। लेकिन लगता नहीं है देवीसिंह भाटी अपनी 'जागीरÓ सोरे सांस किसी अन्य को सौंप देंगे। यह आलेख जब तक आपको पढऩे को मिलेगा, हो सकता है हुक्माराम अपने सैकड़ों समर्थकों के साथ बजाय तिरंगे के भगवा हो चुके हों। वैसे भी व्यावहारिक राजनीति में अब लेबल ही बदलते हैं, अन्दर तो सब कुछ वैसा ही रहता है।

31 दिसम्बर, 2014

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