Monday, December 29, 2014

'बेटर बीकानेर' और जिला कलक्टर

जिला कलक्टर आरती डोगरा ने अपनी पहचान एक व्यवस्थित और नामवरी से दूर रहने वाले प्रशासनिक अधिकारी की बनायी है। डोगरा का जब बीकानेर स्थानान्तरण हुआ तो इनके पिछले बून्दी कलक्टर कार्यकाल की जानकारी जुटाने पर मालूम हो गया था कि ये अपने काम से काम रखने वाली अधिकारी हैं, जानकर अच्छा लगा। बीकानेर आते ही अपनी कार्य-क्षमता का अधिकतम उपयोग जिले के ग्रामीण क्षेत्रों के लिए किया। जिला, जनसम्पर्क कार्यालय से जारी प्रेसनोट के अलावा अपने प्रचार-प्रसार से सामान्यत: दूरी बनाये रखी। हालांकि शहर के उन कुछ स्वागत समूहों से वह बच नहीं पायी जो अभिनन्दन-स्वागत के बहाने ही नजदीकियां बनाते हैं और इसका उपयोग कर अपने निजी हितों को साधने से नहीं चूकते।
कार्यकाल अवधि एक वर्ष होते-होते चुनावी दौर शुरू हो गया, 2013 के अन्त में विधानसभा के, 2014 की शुरू में लोकसभा और 2014 के अन्त में नगर निगम के चुनाव हुए और 2015 की शुरुआत में पंचायतराज चुनावों के बाद लोकतंत्र के इन अनुष्ठानों से एक बारगी राहत मिलेगी। हालांकि चुनाव आयोग को ऐसा कोई रास्ता निकालना चाहिए ताकि ढाई साल की प्रक्रिया को दो-तीन माह में समेटने के लिए इन चारों ही चुनावों के मतदान एक ही दिन में करवाये जा सकें। इससे समय, कार्य घण्टों और अरबों के धन की महती बचत हो सकती है, इस मुद्दे पर फिर कभी चर्चा कर लेंगे।
आज बात जिला कलक्टर के 'बेटर बीकानेरÓ के आह्वान पर कर लेते हैं। हो सकता है यह अभियान जब तक अपनी व्यावहारिक गति को हासिल होने को आये तब तक सामान्य प्रशासनिक प्रक्रिया के तहत आरती डोगरा को यहां से विदा लेनी पड़े। ऐसा कम ही देखा गया है कि आने वाला नया अधिकारी अपने पूर्ववर्ती की कार्यप्रणाली का अनुसरण करे। ऐसे में डोगरा की जिम्मेदारी बनती है कि अपनी इस कार्ययोजना को इस तरह व्यवस्थित करें कि यह स्थानीय बाशिन्दों की रोजमर्रा की गतिविधियों का हिस्सा बन जाये और इसके लिए उन्हें इसमें थोड़ा परिवर्तन करना चाहिए।
शनिवार को इस मुद्दे पर बुलाई बैठक में उन्होंने 'मौजिजों' और 'संस्थाओं' को आमन्त्रित किया। इनमें से अधिकांश पूरे शहर स्तर के आयोजनों के लिए जाने जाते हैं। ऐसे में इनके बस का यह काम नहीं है। इस कार्यक्रम को छोटे-छोटे भौगोलिक क्षेत्रों में बांट कर ही परिणाम हासिल किए जा सकते हैं।
इसके लिए मोहल्ला और क्षेत्रवार कमेटियों का गठन हो। प्रत्येक कमेटी के जिम्मे कोई बड़ा क्षेत्र हो। और इन कमेटियों में तो नामचीन लोग हों और ही वे हों जो ज्यादा हलर-फलर में लगे हों। सामान्यत: देखा गया है कि ऐसे लोग बजाय प्रेरक के, बाधक की भूमिका में ही ज्यादा होते हैं।
हर मोहल्ले और क्षेत्र में दस-बीस ऐसे लोग मिल जाएंगे जो साफ-सफाई, रोड लाइट, पौधरोपण और उनकी संभाल आदि-आदि जरूरी कामों की देखरेख ज्यादा अच्छी तरह कर पायेंगे। व्यवस्था यह भी करें कि इनकी पहुंच सीधे जिला कलक्टर तक हो या चार-छह बड़े क्षेत्रों में बंटे ऐसे छोटे-छोटे क्षेत्रों के लोगों के साथ जिला कलक्टर का महीने में कम-से-कम एक बार सीधा संवाद हो और उस समय संबंधित अधिकारी कलक्टर के साथ उपस्थित रहें ताकि उनकी जवाबदेही तय हो सके। इस तरह की बैठकों से यह होगा कि जिन क्षेत्रों में 'दिखावटीÓ लोग गये हैं उनकी छंटनी भी साथ-साथ हो जायेगी। इस तरह एक सिस्टम विकसित हो जायेगा जो अपने-अपने क्षेत्रों की सामान्य जरूरतों का खयाल खुद रख सके और उनके माध्यम से सरकारी मशीनरी को भी सुचारु रखा जा सकेगा।

29 दिसम्बर, 2014

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