Wednesday, November 26, 2014

चर्चा इन चुनाव परिणामों की

कांग्रेस की केन्द्र सरकार से ऊब की तीव्रता और उसे भुनाने की नरेन्द्र मोदी की कूवत के परिणाम अभी तक सामने रहे हैं, जबकि शासन के दस माह बाद भी वसुन्धरा वादे पूरे कर पा रही हैं और ही अपने छह माह के शासन में मोदी अपने द्वारा दिए भ्रमों को असलियत में तबदील ही कर पाए हैं। बावजूद इसके प्रदेश के स्थानीय निकायों चुनावों में जनता ने भाजपा से मोदी एण्ड शाह एसोसिएट्स बन चुकी पार्टी को टोकरे भर-भर के बहुमत दिया है।
वसुन्धरा राजे के चौबीस घण्टे बिजली देने और प्रशासन को चुस्त-दुरुस्त करने के बात अभी तक हवा में है। बल्कि 'सरकार आपके द्वारÓ कार्यक्रम भी इसलिए फ्लॉप कहे जा सकते हैं कि जहां-जहां ये हुए, वहां कि जनता ने इसके किन्हीं लाभों का एहसास नहीं किया है। नरेन्द्र मोदी ने अपने आठ माह के चुनाव अभियान में जिन पांच मुद्दों पर संप्रग-दो को घेरते हुए कांग्रेस को लगभग खांचे में ढकेल दिया था, वह सभी पांच मुद्दे अभी तक वैसे ही मुंह बाए खड़े हैं- कालाधन, भ्रष्टाचार, महंगाई और चीन-पाकिस्तान की हरकतें बदस्तूर जारी हैं।
इस सबके बावजूद राजस्थान के स्थानीय निकायों के चुनावों में जनता ने कांग्रेस को केवल धूल चटा दी है बल्कि भाजपा को फिंगरने जैसा बहुमत देकर जैसे बकार ही लिया हो कि बोलो अब और क्या चाहिए।
मोदी और वसुन्धरा सचमुच कुछ करना चाहते हैं, संशय इसलिए कि दोनों ही ने वोट लेने की हवस में जनता को बरगलाने की हदें पार कर ली थीं। उम्मीद करनी चाहिए कि जल्द ही होने वाले पंचायत चुनावों में ऐसे ही परिणामों के बाद पंचायत, स्थानीय निकायों, प्रदेशों और देश की सरकार पर काबिज मोदी एण्ड शाह एसोसिएट्स इतना कुछ करने में तो सफल होगा कि जनता कम से कम अपने को ठगा तो महसूस करे। यह उम्मीदें दिवास्वप्न सी इसलिए लग रही है कि वर्तमान व्यवस्था में आम-अवाम के लिए कुछ सकारात्मक परिणाम लेना लगभग असंभव है। केन्द्र में मोदी और प्रदेश में वसुन्धरा सरकार ने ऐसी कोई मंशा अभी तक नहीं जताई है कि भ्रष्ट, नाकारा और धनपतियों का आश्रय बन चुकी इस व्यवस्था में वे कुछ बदलाव लाएंगे। बदलने की मंशा होती तो सबसे पहले चुनावों में लगने वाले अनाप-शनाप कालेधन को रोकने और वोट लेने के अनैतिक, अलोकतांत्रिक और अमानवीय हथकण्डों पर अंकुश लगाने को कुछ तो करते। अभी के बदलाव केवल राज-गिरोह के बदलाव हैं।
बात अब कुछ कांग्रेस की कर लेते हैं, कांग्रेस ने सड़सठ वर्षों में जो-जो बोया है, उसे काटने को उससे शातिर जाने पर उसका यही हश्र होना था। पार्टी के उच्च पायदान पर अभी दरबारियों का दबदबा है। कोई कुछ बदलाव के लिए सुगबुगाता भी है तो ये दरबारी उस पर इसलिए टूट पड़ते हैं ताकि अन्य कोई कुछ कहने की सोच भी रहा हो तो ऐसा करने का अपना विचार तक स्वत: ही कुन्द कर ले। प्रदेश पार्टी दिग्गजों का हाल तो यह है कि प्रदेश अध्यक्ष के अपने क्षेत्र पुष्कर पालिका में पार्टी को एक सीट मिली है तो सीपी जोशी और गिरजा व्यास जैसे अन्य फुफकारने वाले इन परिणामों के बाद अपना चेहरा दिखाने भी आएंगे, कह नहीं सकते। हां, अशोक गहलोत अपने जोधपुर के परिणामों से कम से कम मुंह दिखाने जैसे तो रहे ही हैं।
रही बात बीकानेर की तो विनायक अपनी बात को फिर दोहराता है कि यह शहर कांग्रेस शासनों में बावजूद सौतेले व्यवहारों के और ऐसे चुनावी माहौल में भी अपनी कांगे्रसी तासीर को अभी तक बचाए है। जबकि यहां के तमाम कांग्रेसी दिग्गज और नेता लगभग नाकारा साबित हुए हैं। बावजूद इसके कि निवृतमान हो रहे महापौर भानीभाई और कांग्रेस राज में न्यास अध्यक्ष रहे मकसूद अहमद ने अपने पदों पर रहते हुए असल दायित्वों को पूरा किया हो-बावजूद इसके कि बीडी कल्ला जैसे प्रदेश स्तरीय दिग्गज अपनी प्रतिष्ठा के वार्ड 15 और 38 के अपने दोनों निजी उम्मीदवारों को नहीं जीता पाए हों-बावजूद इसके कि वार्ड नं. 35 से कांग्रेस का उम्मीदवार ही नहीं रहा हो-तब भी यहां की आम-अवाम ने 60 पार्षदों के मण्डल में से 16 कांग्रेसी पार्षदों पर भरोसा जताया है।

26 नवम्बर, 2014

No comments: