Monday, November 17, 2014

मतदान पर्चियां नहीं बंटेंगी इस बार

विधानसभा और लोकसभा के पिछले चुनावों में मतदान प्रतिशत बढ़ाने के लिए निर्वाचन विभाग जिस ताबड़-तोड़ कोशिशों में जुटा और सफल भी हुआ, वैसी कोई कोशिश नगम निगम के आगामी चुनावों में नजर नहीं रही है। बल्कि पिछले दोनों चुनावों में मतदान प्रतिशत बढऩे का एक बड़ा कारण रहा निर्वाचन विभाग की ओर से ही मतदान पर्ची घर-घर बंटवाने का अभ्यास भी इस बार नहीं हो रहा है।
कोई बड़ी और जरूरी सूचना किस तरह लोप हो जाती है, उसका यह बड़ा उदाहरण है। राजस्थान पत्रिका इस सूचना को रोशनी में नहीं लाती तो आगामी शनिवार को ऊहा-पोह में ही चुनाव निबट जाते। हालांकि पत्रिका की सूचना पर्याप्त इसलिए नहीं है कि प्रत्येक मतदाता तक पहुंच की इसकी सीमाएं हैं। चूंकि इस खबर को ब्रेक राजस्थान पत्रिका ने दिया इसलिए अन्य अखबार इसे प्रसारित करना अपनी हेठी मानेंगे। ऐसे में निर्वाचन विभाग की ही जिम्मेदारी बनती है कि वह मतदाताओं को इस जानकारी से वाकिफ करवाए कि इस बार उन्हें मतदान पर्चियां विभाग की ओर से नहीं दी जायेंगी और यह भी कहें कि मतदाता अपने प्रयासों से मतदान केन्द्रों तक पहुंचे और नाम तलाश कर वोट डालने की अपनी जिम्मेदारी को निभाएं।
सरकारी कारकुनों की जमात के मशीनी मानसिकता से काम करने का यह बड़ा उदाहरण है कि मतदाताओं तक मतदान पर्ची पहुंचाने के इस जरूरी अभ्यास को उन्होंने कहां अटका दिया पता ही नहीं चला। वैसे भी आम मतदाता की रुचि और उत्साह मतदान के लिए कितना होता है, इससे अधिकांश वाकिफ हैं। मतदाता अधिकांशत: या तो किसी दबाव में या अपनी किसी बळत से ही मतदान केन्द्र तक जाने की तोहमत उठाता है, ऐसे में उस तक मतदान पर्ची पहुंचना, उसे मतदान केन्द्र  तक पहुंचने का बहाना ही उपलब्ध करवाएगी।
हाल ही के लोकसभा और विधानसभा चुनावों से पहले तक इन मतदान पर्चियों को पहुंचाने का काम क्षेत्र से खड़े प्रत्याशियों या उनकी पार्टियां ही करती रही हैं। ऐसे में इस पर्ची के बहाने ही सही मतदाता प्रभावित हुए बिना नहीं रहता था। ऐसे कई उदाहरण स्मरण हो आते हैं जिसमें '' को वोट देने का मन बना चुका मतदाता परिवार मन इसलिए बदल लेता है कि '' के लोगों ने तो उसे पर्ची तक नहीं पहुंचाई, और केवल इसी बिना पर पहले की अपनी खुन्नस को दरकिनार कर वे वोट '' को डाल आते थे।
लोकतंत्र के इस महत्त्वपूर्ण अनुष्ठान को जब इन छोटी-छोटी बातों पर ही दावं लगा दिया जाता हो वहां पर निर्वाचन विभाग द्वारा शुरू की गई मतदान पर्ची बंटवाने की जरूरी और महत्त्वपूर्ण कवायद को प्रशासनिक लापरवाही की भेंट चढ़ा देना गंभीर मामला है।
अब जब मतदान में मात्र पांच दिन बचे हैं ऐसे में उम्मीदवार और पार्टियां भी मतदान पर्चियां तैयार करवाने और उन्हें बंटवाने का सोचे तो यह हड़बड़ी से कम नहीं होगा और जो उम्मीदवार समय पर सलीके से इस काम को कर पायेगा उसे इसका 'लाभ' भी मिलेगा।
बावजूद इसके राज्य निर्वाचन विभाग को इस निर्णयहीनता की जिम्मेदारी से मुक्त नहीं किया जा सकता। क्योंकि स्थानीय निर्वाचन विभागों के माध्यम से मतदान पर्ची बंटवाने के बहुआयामी सकारात्मक परिणाम सामने आए, जिसमें सबसे महत्त्वपूर्ण तो मतदान प्रतिशत में बढ़ोतरी था और दूसरा यह कि इस पर्ची बांटने की आड़ में मतदाता को प्रभावित करने की कोशिशों पर भी लगाम लगी। हो सकता है निगम चुनावों में उम्मीदवारों की अपने मतदाताओं तक सीधे और व्यक्तिगत पहुंच के चलते मतदान प्रतिशत में कोई ज्यादा अन्तर आए, लेकिन ऐसी ही लापरवाही आगे के लोकसभा और विधानसभा चुनावों में हुई तो मतदान प्रतिशत में कमी को रोका नहीं जा सकेगा। उम्मीदवारों और पार्टियों की ओर से मतदान पर्चियां बंटवाने पर हमारे देश के 'भोले' मतदाताओं को प्रभावित होने से रोकना मुश्किल है।

17 अक्टूबर, 2014

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