Monday, October 13, 2014

आरसीए और क्रिकेट : खेल भावना गई पानी लेने

देश के दक्षिण-पूर्वी तट पर कल जब समुद्री तूफान 'हुदहुद' हदें पार कर रहा था उससे एक दिन पहले उत्तर-पश्चिम भारत के जयपुर में हुई खदबदाहट में हेकड़ीबाज ललित मोदी को उस राजस्थान क्रिकेट एसोसिएशन के अध्यक्ष पद से अपदस्थ कर दिया गया जिस पर वे लम्बे समय से देश से बाहर होने के बावजूद इसी मई में चुनाव परिणाम की लम्बी न्यायिक प्रक्रिया के बाद अच्छे-खासे बहुमत से काबिज हुए थे। प्रदेश की जिला क्रिकेट संघों ने मोदी के साथी रहे और राजनेता अमीन पठान को कल आरसीए की अध्यक्षी सौंप दी।
ललित मोदी वसुंधरा राजे की पिछली सरकार के समय तब चर्चित हुए थे जब हिमाचल प्रदेश क्रिकेट एसोसिएशन की सदस्यता छोड़ 2005 में उन्होंने राजस्थान क्रिकेट एसोसिएशन में घुसपैठ की। 2008 में इण्डियन प्रीमियर लीग की शुरुआत के साथ क्रिकेट को खेल से तमाशा बना दिया गया, इसी दौरान मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को सार्वजनिक तौर पर 'वसु' नाम से सम्बोधित कर उनसे अपनी अति निकटता को प्रदर्शित किया।
क्रिकेट को तमाशा बनाने की असफल कोशिश ललित मोदी से पहले 1977 में ऑस्ट्रेलियन धनपति कैरी पैकर ने पैकर सर्कस के माध्यम से की। टेलीविजन नेटवर्क, प्रकाशन व्यवसाय के साथ ही दुनिया के बड़े जुआरियों में शुमार कैरी क्रिकेट को धंधा बनाने में सफल नहीं हो पाए। कैरी के इस दुस्साहस का ही सबक था कि सभी तरह के संसाधनों में कैरी से बहुत कमतर ललित मोदी क्रिकेट का कबाड़ा करने में अधिकृत तौर पर सफल हो गये। केवल सफल हुए बल्कि क्रिकेट को उस गर्त तक धकेलने में भी सफल हुए जिसमें पैसे की बन्दरबांट तो अनाप-शनाप है लेकिन खेल भावना का कहीं नामो-निशान नहीं।
ललित मोदी की हेकड़ी भरी कार्यशैली और किसी अन्य को कुछ समझने का उनका मिजाज क्रिकेट जैसे खेल के उच्च-भू्र अखाड़चियों को रास नहीं आया। इस के चलते ललित मोदी दो वर्षों में ही आइपीएल से बेदखल कर दिए गये। सभी जानते हैं कि क्रिकेट एसोसिएशनें राजनीतिक और कोरपोरेट दबंगों का चरागाह हैं। वे अपनी विलासिता के साधन इसी से जुटाते हैं। इन सभी से ज्यादा नकचढ़े ललित मोदी का ऐसा इंतजाम करवा दिया कि देश लौट आते हैं तो उनकी गत 'सहाराश्रीहीन' सुब्रत राय सी होगी। ललित मोदी विदेशों में रहकर केवल अपना व्यवसाय चला रहे हैं बल्कि वहीं बैठे भारत के क्रिकेटबाजों का दिन का चैन और रातों की नींद हराम करने का कोई अवसर नहीं चूकते।
दिसम्बर 2013 में हुए राजस्थान क्रिकेट एसोसिएशन चुनाव की गोटियां ललित मोदी ने विदेश में बैठे ऐसे फिट की कि भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड की अनिच्छा और घुड़की के बावजूद प्रदेश के जिला क्रिकेट संघों की तैतीस में से छब्बीस वोट लेकर मानों वे बीसीसीआई की छाती पर ही चढ़ बैठें।
अंग्रेजों द्वारा यूरोप में शुरू किया गया यह क्रिकेट का खेल पिछले कई दशकों से गैर यूरोपियन देशों की मिल्कीयत बन चुका है और इसका कबाड़ा भी इन्हीं गैर यूरोपियन देशों ने ही किया है। भारत में खेल से लगभग तमाशा बना दिया गया ये क्रिकेट भारत में अब बजाय खेल प्रेमियों के सट्टेबाजों के गोरखधंध, इसके एसोसिएशनों पर काबिज राजनेताओं और कॉरपोरेटरों की विलासिता के साधन जुटाने का जरीया मात्र है।
जीवन के सभी सक्रिय आयामों में राजनेताओं, कॉरपोरेटरों और दबंगों का बोलबाला जब बढ़ ही रहा है तो क्रिकेट भी इससे अछूता इसलिए नहीं रह सकता क्योंकि यह टकसाल जो बन चुका है।
पिछले दो दिनों से मन यह स्वीकार ही नहीं कर रहा है कि आरसीए के पिछले दो दिनों के तमाशों का मास्टर माइंड ललित मोदी नहीं है। बीसीसीआई के दबाव में हो सकता है ललित मोदी ने ही पहले अपने को हटवाया और फिर अपने ही अमीन पठान को अध्यक्ष बनवा लिया ताकि बीसीसीआई का कलेजा कुछ ठण्डा हो जाय और कब्जा भी छूटे। अगर ऐसा ही है तो यह असम्भव भी नहीं है क्योंकि खेल भावना को पानी लेने कभी का भेज दिया गया है। इस खेल में कहीं 'पानी' बचा हो तभी तो उसे लेकर लौटेगी खेल भावना!

13 अक्टूबर, 2014

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