Friday, July 4, 2014

प्रशासन का मुंह ही क्यों ताकते हैं हम

तब शहर की एक ही विधानसभा सीट हुआ करती थी, कुछ बाहरी शहरी क्षेत्र को कोलायत विधानसभा क्षेत्र में शामिल किया हुआ था। आजादी बाद 1948 से ही समाजवादी विचारधारा से प्रभावित तब के युवा मुरलीधर व्यास शहर के सार्वजनिक जीवन में प्रवेश करते हैं। 1948 में आयोजित समाजवादियों के पहले राज्य स्तरीय सम्मेलन और राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में सक्रिय भूमिका निभाते आगे बढ़ते 1951 के आम चुनावों में क्षेत्र में अपनी पहचान बनाने के प्रयोजन से लोकसभा और विधानसभा, दोनों का चुनाव लड़ते हैं, यद्यपि हार जाते हैं लेकिन लगातार सक्रियता के चलते 1957 में और फिर 1962 के विधानसभा चुनाव जीत कर राज्यव्यापी पहचान बना लेते हैं।
इस सब का फिर उल्लेख यह बताने के लिए किया कि मुरलीधर व्यास शहर के आम-आवाम से अपने को किस तरह जोड़े रखते थे। उस्ता या सोढ़ाबारी के अन्दर निवास करने वाले व्यास प्रतिदिन शहर के विभिन्न रास्तों से होकर पैदल ही दूसरे किनारे पर स्थित कचहरी पहुंचते थे। इस बीच वे कितनों से मिलते, कितनों का दु:-दर्द केवल सुनते बल्कि उन्हें अपने साथ लेकर सम्बन्धित गंतव्य तक पहुंच कर उसे सन्तोष भी प्रदान करते।
विधानसभा में व्यास की अति सक्रियता मुख्यमंत्री सुखाडिय़ा को रास नहीं आई और साम-दाम, दण्ड-भेद जैसी सभी करतूतों से व्यवस्था कर ली कि चौथी विधानसभा में व्यास पहुंच नहीं पाएं। सुखाडिय़ा घाघ राजनेता गोकुल प्रसाद पुरोहित के माध्यम से सफल भी हुए। यह बात अलग है कि चौथी विधानसभा का अवसान होने से पहले खुद सुखाडिय़ा को यह पद छोडऩा पड़ा।
राजस्थान के निर्माण और बीकानेर रियासत के उसमें विलय को 64 साल बीत गए हैं। इस काल में बीकानेर के साथ हुए दुभांतों की सूची लम्बी बनेंगी और इसके केवल और केवल जिम्मेदार हमारे वे जनप्रतिनिधि हैं जिन्हें विजयी कर भेजते रहे हैं। शुरू में मुरलीधर व्यास केवल विरोध की राजनीति करते रहे हालांकि आम-आवाम के साथ उनके रिश्ते से उन्हें जननायक का संबोधन मिला। लेकिन प्रदेश सरकार से इस क्षेत्र के लिए वे कुछ भी हासिल नहीं कर पाए।
लोकसभा में डॉ. करणीसिंह और विधानसभा में व्यास के बाद गोकुलप्रसाद पुरोहित गोपाल जोशी ने नुमाइंदगी की, सरकारें उनकी होते हुए भी प्रदेश सरकार से इस शहर के लिए कुछ भी हासिल नहीं कर पाए। इनके बाद आए महबूब अली ने जरूर शहरी पेयजल आपूर्ति का आधारभूत ढांचा खड़ा करवाया जिसका लाभ शहर आज भी ले रहा है।
इनके बाद डॉ. कल्ला, नन्दलाल व्यास, और गोपाल जोशी ने प्रतिनिधित्व किया। इस दौरान अकेले कल्ला ने पांच बार नुमाइंदगी की। शहर को उनके दाय का जिक्र 'विनायक' कई बार कर चुका है। वे हमेशा संभागीय या जिला मुख्यालय हिसाब से बारी आए कुछ हासिल को अपनी उपलब्धियों में गिनवाते रहे हैं। उनकी दृष्टि की बानगी 'सरकार आपके द्वार' पर दो दिन पहले की उनकी प्रतिक्रिया में ही मिल जायेगी कि अभी भी वे रेल बाइपास की बींटणी थामे हैं।
गोपाल जोशी का लगातार यह दूसरा कार्यकाल है, अब तो सरकार भी उनकी है। पिछली नहीं भी थी तो भी शहर का कोई उल्लेखनीय मुद्दा उन्होंने नहीं उठाया। दूसरी विधायक सिद्धीकुमारी सिर्फ प्रतिष्ठा और टाइमपास के लिए विधायक बनती हैं। रेल फाटकों, शैक्षिक विकास, सूरसागर, रवीन्द्र रंगमंच, रिंगरोड लिंकरोड पर इन दोनों की अपनी कोई दृष्टि है ऐसा इन दोनों ने कभी जाहिर नहीं किया।
शहर के लोगों ने भी अपनी इन समस्याओं को लेकर अपने जनप्रतिनिधियों को हुड़ा दिया हो याद नहीं पड़ता। हमेशा प्रशासन का मुंह ताकते हैं। यहां की परेशान जनता पता नहीं अपने जनप्रतिनिधियों को इस काबिल कब समझना शुरू करेगी। इसीलिए जनजुड़ाव की राजनीति करने वाले मुरलीधर व्यास को आज फिर याद किया है।

4 जुलाई, 2014

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