Tuesday, July 1, 2014

सांताक्लॉज की भूमिका में नहीं दिखीं वसुंधरा

सरकार हमारे द्वार से लौट गई है। शासन और शीर्ष प्रशासन बारह दिन तक बीकानेर संभाग में रहा। कार्यक्रम बना तभी तय था कि आखिरी दिन मंत्रिमंडल की बैठक यहीं होगी। ऐजेन्डा जाहिर कभी किया नहीं। संभाग के लोगों, खासकर मीडिया और बीकानेर के बाशिन्दों ने उम्मीदें बहुत बांध ली थी कैबिनेट की इस बैठक को लेकर। ब्रॉडशीट के अखबारी पन्नों को उम्मीदों से रोज भरा जाने लगा, उक्त बैठक को प्रभावित करने के लिए डेरे से बाहर कर दिए गये लूनकरणसर विधायक मानिकचन्द सुराना ने भी शनिवार को संवाददाता सम्मेलन बुलाकर उम्मीदें जाहिर कीं। कार्यक्रम की तारीखों की घोषणा होते ही 'विनायक' ने भी तीन जून के अंक में 'वसुंधरा राजे से बीकानेर की उम्मीदें' शीर्षक से अपनी बात रखी।
ऐसे सभी प्रयासों के बावजूद वसुंधरा राजे की सरकार के संसदीय कार्यमंत्री की हैसियत से संवाददाताओं के मुखातिब राजेन्द्रसिंह राठौड़ ने कल ऐसा कुछ नहीं बताया जिसे यहां का मीडिया उछल कर सुर्खियां दे। सुबह के अखबारों में कैबिनेट के निर्णयों और राठौड़ के हवाले से आधे-आधे पृष्ठ भरे गये हैं। उनमें से सावचेती से गुजर जाने के बावजूद ऐसा कुछ नहीं पाएंगे जिसे बीकानेर का मीडिया आपसे उत्साह से साझा कर सके। बीकानेर के लिए ही क्यों, कैबिनेट की मीटिंग में प्रदेशस्तरीय कुछ बड़े निर्णय ही हुए होते तो भी इस शासन-प्रवास और मंत्रिमंडलीय बैठक को उसी बहाने याद किया जाता रहता।
इसके मानी यह भी नहीं है कि शासन ने यहां कुछ किया ही नहीं। अखबारों के आधे-आधे पृष्ठ जिन निर्णयों से भरे, ऐसे प्रशासनिक कामों को निबटाने के साथ संभाग और बीकानेर जिले के लोगों की आकांक्षाओं पर जमकर अभ्यास हुआ है। तीन जून के 'विनायक' के अंक में जताई उम्मीदों के अलावा अन्य अखबारों द्वारा उठाए मुद्दों पर विस्तार से चर्चाएं हुई हैं। कुछ मुद्दों पर अन्तिम राय भी बन जाने का सुना गया जिसमें शहर के कोटगेट, सांखला फाटक की समस्या पर राय यही बनी कि कोटगेट फाटक पर अण्डरब्रिज ही बनाया जायेगा, ऐलिवेटेड रोड के निर्णय पर पिछली बार के कुछ व्यापारियों के विरोध की आड़ ली गई, लेकिन असली कारण है इस ऐलिवेटेड रोड के लिए बजट तब से तीन गुना बढ़ गया और सरकार ठिठक गई। हो सकता है कोटगेट अण्डरब्रिज की घोषणा राजे बाद में या बजट में करें। यह अवकाश यहां के बाशिन्दों और उनके नुमाइंदों को शायद इसलिए मिला है कि कम-से-कम अब तो इसके समाधान पर कोई एक व्यावहारिक राय बना लें अन्यथा अण्डरब्रिज को ही भुगतना होगा। लगता है जोधपुर-जैसलमेर बाइपास पर अन्तिम राय बना ली गई है जिस पर देवीसिंह भाटी को एतराज नहीं होगा। तकनीकी विश्वविद्यालय का मुद्दा भी 'पुलिस प्रशिक्षण केन्द्र' की तरह ही ठण्डे बस्ते में डालने की मंशा लग रही है।
इस क्षेत्र को अच्छा लगने जैसी एक घोषणा जरूर हुई कि एक नई केटेगरी में ऊंट को राज्यपशु घोषित कर दिया गया है, वन पशु के रूप में चिंकारा को यह 'सुरक्षा' पहले ही मिली हुई है। यह बात अलग है कि बावजूद इसके चिंकारा की तरह ही ऊंट को भी अपना अस्तित्व बचाए रखने की जद्दोजेहद खुद ही करते रहना होगा। क्योंकि आदमी की फितरत और जरूरतों में बदलाव तेजी से रहा है।
कुल जमा लब्बो-लुवाब 'लॉयन एक्सप्रेस' के माध्यम से 23 जून को कही अपनी उस बात-सा ही है जिसे यहां आज पुन: उद्धृत करना जरूरी लग रहा है।
'सूबे की मुखिया का मिजाज उनके पहले के कार्यकाल से भिन्न लगता है। वह इस बार सांताक्लॉज की भूमिका में नहीं दीख रही कि आईं और पोटली खोलकर सबको कुछ--कुछ दे दिया'

1 जुलाई, 2014

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