Tuesday, June 3, 2014

वसुन्धरा राजे से बीकानेर की उम्मीदें

विधानसभा चुनाव जीतते ही वसुन्धरा राजे शासन को कुछ दिनों के लिए भरतपुर संभाग लेकर गईं, तभी घोषणा कर दी थी कि ऐसा अगला पड़ाव बीकानेर में होगा। संभाग या जिलेवार भाजपा को मिली विधानसभा सीटों से आकलन किया जाए तो प्रदेश के सात में से भरतपुर और बीकानेर संभाग ही ऐसे थे जहां पार्टी को अन्य संभागों जैसी सफलता नहीं मिली। भारी बहुमत से विधानसभा में  पहुंची भाजपा को इन्हीं दो संभागों में वैसा समर्थन नहीं मिला जैसा अन्य संभागों में उसे मिल गया था। बीकानेर जिले की सात में से चार सीटें ही भाजपा हासिल कर पायीं यानी डैमेज कन्ट्रोल के लिए 2008 में शासन को बीकानेर लाकर जो चार सीटें तब हासिल कीं, 2013 के माहौल में उनमें एक का इजाफा भी नहीं हुआ। परिणाम आते ही वसुन्धरा ने तय कर लिया कि माहौल को बदलना है। बीच में लोकसभा चुनावों की आचार संहिता के चलते संभव नहीं हुआ सो कल से ही चर्चा है कि वसुंधरा राजे इसी माह के तीसरे सप्ताह में कभी अपने पूरे लवाजमे के साथ यहां पड़ाव डालेंगी।
इस कालम के माध्यम से बीकानेर की जरूरतों को लगातार उठाते रहे हैं, फिर अवसर मिला है कि शहरी विकास के मॉडल के रूप में प्रदेश के सबसे पिछड़े इस संभागीय मुख्यालय की आधारभूत जरूरतों की ओर शासन का ध्यान खींचा जाए। हालांकि 2008 की हबड़ा-तबड़ी जैसे इस बार काम होता इसलिए नहीं लग रहा है कि संभावित तारीख में घट रहे लगभग एक पखवाड़े में वह सब संभव नहीं है। बिन्दुवार उन मुद्दों पर चर्चा करेंगे जिन्हें अमलीजामा पहनाना जरूरी है-
-सबसे पहले शहर की सबसे बड़ी रेल फाटकों की समस्या से बात शुरू करेंगे, जिस पर शहरवासी पिछले तीस से ज्यादा वर्षों से उद्वेलित हैं। इसके लिए पिछले वसुन्धरा काल में एलिवेटेड रोड की व्यावहारिक योजना बनी थी, लेकिन छिट-पुट विरोध के चलते सिरे चढ़ी योजना को दाखिल दफ्तर कर दिया गया। रोष का कारण यह भी है कि शहर में यह बात फैली कि उक्त योजना हेतु आए धन को वसुन्धरा राजे को अपने क्षेत्र में ले जाना था सो आम सहमति के बावजूद ना कुछ से विरोध की आड़ में बीकानेर को रेल फाटकों के इस समाधान से वंचित किया गया। यहां, उन बाइपास समर्थकों और कोटगेट फाटक पर अण्डरब्रिज समर्थकों और विरोधियों से अनुरोध है कि शहर के हित में किसी सार्थक समाधान तक पहुंचने के मिले अवसर से हासिल करने की मंशा बनाएं अन्यथा शहर को रेल फाटकों से लगते जाम को भुगतते रहना होगा। मुख्यमंत्री चाहें तो उस एलिवेटेड योजना का तुरन्त क्रियान्वयन की घोषणा कर शहर को बड़ी सौगात दे सकती हैं।
-दूसरी समस्या सूरसागर की है जिसे पूर्व रूप में लाने की कोशिशें पिछले सात-आठ सालों से चल रही हैं, वह इसलिए संभव नहीं कि तब इसके रूप को प्रकृति सहेजती थी- आगौर के माध्यम से आने वाले वर्षाजल से भरा जाता था, आगौर रहे नहीं, ऐसे में कभी पांच-पांच ट्यूबवैलों और कभी नहरी पानी से इसे भरने की कवायद की जा रही है। इन कृत्रिम और अव्यावहारिक तरीकों से इस के जलस्तर को पिछले सात वर्षों में एक बार भी चार फुट तक नहीं लाया जा सका तो इसे पूरा भरना और यहां पडऩे वाली गर्मी में इसे भरे रखना कितना महंगा पड़ेगा? यह महंगा केवल धन से ही नहीं बल्कि जिस डार्कजोन को हम जिले में न्योत रहे हैं, उसमें भी यह विलासिता से कम साबित नहीं होगा। वसुन्धरा राजे चाहें तो इस खेचळ को रोककर इसे मरु उद्यान के रूप में विकसित करवा सकती हैं जिसमें मरुक्षेत्र के पेड़ वनस्पतियां और कुछ सुकून देने वाले प्राकृतिक रूप के फव्वारें हों। इस तरह इसे घूमने-फिरने के एक आदर्श स्थान के रूप में विकसित किया जा सकता है।
-तीसरा कार्य भी वसुन्धरा राजे के पिछले कार्यकाल में हाथ में लिया गया था लेकिन पूर्ण नहीं हुआ। अन्य शहरों की भांति बीकानेर में किसी से पूछा जाय कि गौरवपथ कौन-सा है तो बहुत कम लोग इसका उत्तर दे पाएंगे, क्योंकि उसे उस परवान तक चढ़ाया ही नहीं गया जिस की कल्पना की गयी थी। म्यूजियम तिराहे से नापासर फांटे तक घोषित इस गौरव पथ को पूर्वयोजना अनुसार पूर्ण करवाया जा सकता है, इसमें बड़ी बाधा इस मार्ग पर स्थित सांगलपुरा क्षेत्र के कब्जे हो सकते हैं जो सड़क मानक क्षेत्र में गये हैं।
-बीकानेर शहर में भारी यातायात के दबाव को कम करने के लिए टुकड़ों-टुकड़ों में विभिन्न राजमार्गों के बीच बने बाइपासों को रिंगरोड का रूप देना जरूरी है अन्यथा आए दिन शहर में ही ऐसी दुर्घटनाएं होती हैं जिसमें घर-परिवारों के उजड़ते देर नहीं लगती। इसके लिए जोधपुर की ओर के राष्ट्रीय राजमार्ग और जैसलमेर की ओर के राष्ट्रीय राजमार्ग को जोडऩे वाले बाइपास का बनना बेहद जरूरी है। पिछले वर्षों में यह सिरे इसलिए नहीं चढ़ा क्योंकि इलाके के भारी भरकम दिग्गज देवीसिंह भाटी ने गोचर के नाम पर इसे बनने देना नाक का सवाल बना लिया था, जो शहर के लिए कतई जायज नहीं था। गोचर की एवज में उतनी ही राजस्व भूमि नामित करके इसे पूर्ण किया जाना जरूरी है।
-पिछले दो दशकों से बन रहा रवीन्द्र रंगमंच यहां के सृजनधर्मियों की रड़क का बड़ा कारण है। इसमें देरी होने के कारणों को छोड़ दें, अब समय है किसी अधिकारी की समयबद्ध जिम्मेदारी तय करके इसे शुरू करवाने का। रवीन्द्र रंगमंच के बावजूद टाउन हॉल की जरूरत बनी रहेगी। अत: लगभग : दशक पुराने इस हॉल को भी नई आयोजना के साथ सज्जित करने की जरूरत है।
-इनके अलावा दो छिट-पुट लेकिन काम की सड़कों को विकसित किया जाना भी जरूरी है। इनकी योजना पिछली सरकार के समय ही बनी लेकिन स्थानीय नेताओं की इच्छाशक्ति के अभाव में पूरी नहीं हो पायीं। पहली, जैन स्कूल के पास से मोहता सराय तक की लिंक रोड, जिसे पता नहीं क्यों ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। दूसरी सड़क भी इतनी ही महत्त्वपूर्ण है- भुट्टों के चौराहे से लालगढ़ रेलवे स्टेशन तक के मार्ग को कब्जे हटाकर सुचारु करवाना। यह मार्ग शहर के उन लोगों के लिए जिन्हें लालगढ़ स्टेशन जाना होता है, करीब 2 कि.मी. का उनका रास्ता कम हो जाता है। वसुन्धरा राजे चाहें तो प्रशासन को अग्रिम आदेश देकर इन दोनों ही मार्गों का उद्घाटन इस यात्रा के दौरान चौखूंटी पुलिया के साथ कर सकती हैं। हां, थोड़ी हबड़ा-तबड़ी जरूर होगी लेकिन कई काम इसी तरह करवाए जा सकते हैं।
-सूरज सिनेमा चौराहे से रेलवे स्टेशन के मुख्य प्रवेशद्वार तक की सड़क को भी सुचारु करवाना जरूरी है। इस मार्ग पर पीडब्ल्यूडी के डाक बंगले और कई निजी भूखण्डों के थोड़े-थोड़े हिस्सों को अवाप्त करना और गन्दे पानी के नाले को ढकने के काम है। यह मार्ग सुचारु होता है तो रेलवे स्टेशन की और जाने वाले अन्य मार्गों पर भार कम होगा। अलावा इसके पुरानी जेल की जमीन के निस्तारण का उचित समाधान जरूरी है, इसको विकसित करने में लगे करोड़ों रुपये मिट्टी में मिल गये। इस बड़े भूखण्ड की पेचीदगियों को सुलझाना लगता है स्थानीय नेताओं के बस का है और ही स्थानीय प्रशासन के। ये कुछ छोटे-छोटे काम हैं जो मुख्यमंत्री चाहें तो चुटकियों में हल करवा सकती हैं।

इस वर्ष होने वाले निगम के चुनावों में भाजपा के लिए कोई बड़ी चुनौती नहीं लगती है लेकिन उक्त कुछ कामों को सिरे तक चढ़ा दें तो केवल महापौरी और बोर्ड आसानी से मिल जाएंगे बल्कि उक्त में से कुछ लम्बी योजनाएं यथा एलिवेटेड रोड, जोधपुर-जैसलमेर बाइपास रोड और सूरसागर का मरु उद्यान के रूप में विकास आगामी विधानसभा चुनावों में भी पार्टी की राह आसान बनाने में काम आएंगे। इच्छाशक्तिविहीन नेताओं की भीड़ वाले इस शहर में विकास की सून को खिलखिलाहट में बदलना जरूरी है।                                       ( 3 जून 2014 )

No comments: