Friday, June 27, 2014

विद्यार्थियों के साथ खिलवाड़

अभी कुछ दिन पहले ही राजस्थान के अखबारों के बड़े संस्करणों में राजस्थान प्री-मेडिकल टेस्ट (आरपीएमटी) में सफल हुए विद्यार्थियों के मुसकराते फोटो छपे थे। आज उन्हीं विज्ञापनों को देखें तो वही शक्लें एकबारगी मुरझाई-सी दिखेंगी। ये सभी फोटो उन कोचिंग संस्थानों द्वारा दिए गए विज्ञापनों का हिस्सा थे जिन्हें लाखों खर्च करके छपवाया गया था। जब से परिणाम आए तभी से इस टेस्ट प्रक्रिया पर सवाल खड़े होने लगे थे और मामला राजस्थान उच्च न्यायालय तक पहुंच गया। न्यायालय ने त्वरित सुनवाई कर कल फैसला भी दे दिया जिसमें इस परीक्षा को रद्द घोषित कर दिया गया।
बताया जाता है कि राजस्थान स्वास्थ्य विज्ञान विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित इस परीक्षा में पैंतालीस हजार विद्यार्थी बैठे थे। परीक्षा करवाने के तौर-तरीकों में बरती गई लापरवाहियों के चलते रही खामियों को ढकने के लिए कई अव्यावहारिक उपायों की सभी दलीलों को न्यायालय ने दरकिनार कर पूरी परीक्षा को अवैध, असंवैधानिक बताते हुए खामियों को ढकने को अपनाए गए पर्सेन्टाइल फार्मूले को समानता के अधिकार के खिलाफ करार दिया।
जिन पाठ्यक्रमों की डिग्री हासिल हो जाने पर आदमी के पैसे कमाने की मशीन में तबदील होने की संभावनाएं ज्यादा होती हैं, ऐसे विषयों में प्रवेश के लिए होने वाली परीक्षाओं तथा वे भर्ती परीक्षाएं जिनमें सफल होने पर व्यक्ति सरकारी नौकरी हासिल करने का पात्र हो जाता है। इन दोनों ही तरह की परीक्षाओं में गड़बड़झाले के समाचार आते ही रहते हैं।
मध्यप्रदेश में तीसरी दफा शिवराजसिंह के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी की सरकार है, साफ-सुथरे कहे जाने वाले इस शासन में ऐसी ही परीक्षाओं में बड़े गड़बड़झाले के समाचार कुछ दिनों से आने लगे हैं। मेडिकल प्रवेश परीक्षा सहित कई तरह के पैसा कमाऊ व्यवसायों और नौकरियों के लिए मध्यप्रदेश में परीक्षाएं आयोजित करने वाली सरकारी इकाई व्यापमं (व्यावसायिक परीक्षा मंडल) में घोटालों की व्याप्ति की सुर्खियां प्रतिदिन देखने-सुनने को मिल रही हैं। 2006 से पटरी से उतरे या राजनेताओं द्वारा उतार दिए गए इस व्यापमं के लगभग सभी परिणाम सवालों के घेरे में है। यहां तक कि मुन्नाभाई तरीके से मेडिकल प्रवेश परीक्षा पास किए 450 युवक-युवतियां तो डॉक्टर की डिग्री तक हासिल कर चुके हैं।
राजस्थान में 1969 से आयोजित होने वाली इस आरपीएमटी परीक्षा में इतनी लापरवाही पहली बार देखी गई है। इस लापरवाही के खमियाजे की पड़ताल करें तो धन, विद्यार्थियों का मनोबल और मेडिकल कॉलेजों के दाखिले में इसके कारण होने वाली देरी जैसी हानियां ऐसी हैं जिनकी भरपाई संभव नहीं है। इस लापरवाही जनित खामियों के जो भी जिम्मेदार हैं, आशंका पूरी है उनका कुछ नहीं बिगड़ेगा क्योंकि जिस भ्रष्टाचार से दुष्प्रेरित होकर वे लापरवाह हुए उसी भ्रष्टाचार की बदौलत वे अपनी गैर जिम्मेदारियों से बरी भी हो जाएंगे। कल के फैसले में न्यायालय ने जिम्मेदारों को फटकार तो लगाई लेकिन लापरवाहों को चिह्नित करके उनके लिए कोई सजा मुकर्रर नहीं की। ऐसे मामलों में न्यायालय को चाहिए कि स्वत: संज्ञान लेकर मुकदमे चलाए और जिम्मेदारों को उचित सजा दे ताकि अन्य कोई जिम्मेदार इस कदर गैर जिम्मेदार होने का दुस्साहस करे। सरकारें चाहें कांग्रेस की हो या भाजपा की, दोनों ही ऐसी गड़बडिय़ों पर मिट्टी डालने-डलवाने का ही काम करती हैं। अन्यथा इस तरह की परीक्षाओं में बैठने वाली पीढ़ी यही मान लेगी कि खोटे-खरों का ही युग है, ऐसी धारणा बनने तो लग ही गई है, स्थापित भी हो जायेगी।

27 जून, 2014

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