Monday, June 23, 2014

चतुराई बरतने का समय

बीकानेर संभाग की सुध लेने आयीं सूबे की मुखिया वसुन्धरा राजे को शहर द्वार पर पांचवां दिन है कुल बारह दिनों का उम्मीदों भरा उनका यह प्रवास कब गुजर जाएगा पता ही नहीं चलेगा। सुकून की बात इतनी ही है कि मीडिया वाले वर्ष के इन सबसे बड़े दिनों में भी नाउम्मीदी की ऊब का एहसास नहीं होने दे रहे।
विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका के साथ चौथे खम्भे के रूप में लोकतंत्र को थामे इस मीडिया ने सरकार के यहां आने की आहट से पखवाड़े भर पहले से ही उम्मीदों को सजाना शुरू कर दिया जो संभवतः तीस तक जारी रहेगा। लेकिन समझने वाली बात यह है कि सजावट तरतीम से हो रही है या केवल स्थान और समय भरपाई में ही लगे हैं हम। मीडिया से यह उम्मीद करना तो अनुचित होगा कि वह एक ही सुर साधे लेकिन जो भी साधे, साधने से पहले इतना जरूर समझ लेना चाहिए कि किस काम के सधने से अधिकतम जनता लाभान्वित होगी और यह भी कि उन कामों को करवाने की प्राथमिकता क्या हो। क्योंकि सूबे की मुखिया का मिजाज उनके पहले के कार्यकाल से भिन्न लगता है। वह इस बार सांताक्लॉज की भूमिका में नहीं दीख रहीं कि आईं और पोटली खोल कर सबको कुछ--कुछ दे दिया। इसलिए मीडिया को कुछ ऐसे मुद्दों को प्राथमिकता देनी और उन्हें सिरे तक पहुंचाने की जुगत बनानी होगी ताकि लगे कि कुछ ऐसा हासिल किया जिससे यहां के अधिकतम बाशिन्दे लाभान्वित हुए।
वसुन्धरा राजे इस बार इस मूड में तो लगती है कि प्रशासन को चुस्त-दुरुस्त, समयबद्ध, और जवाबदेह बनाया जाय, जिस तरह वह इसे अंजाम दे रही हैं, लगता भी है कि भ्रष्टाचार के जंग के बावजूद वे कुछ परिणाम दिखा पाएंगी। उनकी इस कार्यशैली को बिना नजर अन्दाज किए शहर, जिले और सम्भाग की छोटी-बड़ी सभी योजनाओं और समस्याओं के पीछे लगना होगा। इस यात्रा के दौरान यदि इन सबको किसी रास्ते नहीं डलवाया तो सकता है राजे के पास इस क्षेत्र के लिए अगले पांच वर्षों में इतना समय नहीं हो कि हम उन्हें इसके लिए फिर प्रेरित कर सकें। इस सबके लिए प्रभावी माध्यम की भूमिका फिलहाल अखबारों और खबरिया चैनलों के पास ही है। मुद्दे चुनो, व्यावहारिक समाधान सुझाओ और पीछे लगो। जिनकी आवाज ऊंची है, यानी जो बड़े अखबार और चैनल हैं उनकी जिम्मेदारी भी ऊंची है, वे यदि ऐसा मान लेते हैं तो अपनी चतुराई ही दिखाएंगे। पत्रकार के लिए चतुराई बरतना उसके पेशे की सकारत्मक जरूरत है.
22 जून, 2014


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